RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
शीतल कुछ नही बोली। सुषमा ने बारी-बारी ऑफिस के सभी लोगों को फोन किया लेकिन कोई भी पैसा देने को तैयार नही हुआ,अन्त में सुषमा ने अनुज सर को फोन किया , वो पैसा देने को तैयार हो गये पर वो पहले शीतल से बात करना चाहते थे।
अनुज सर शीतल के सीनियर थे। वो शीतल को बहुत बुरी नज़र से देखते थे,ये बात शीतल भी जानती थी पर आज उसके सामने मजबूरी थी उनसे मदद लेने की।
“शीतल तुम अपने कपड़े बदल लो,”सुषमा ने कहा।
शीतल ने कपड़े बदले और सुषमा के साथ अनुज सर से मिलने के लिए उनके घर गयी। उनके घर पर उनकी एक बेटी और बेटा था। बेटा छोटा था,बेटी शीतल की ही उम्र की थी। उन्होंने शीतल को रुपये दे दिए और शर्त रखी की अगर 1 साल में पूरे रुपये नही चुकाये तो उसे उनसे शादी करनी पड़ेगी। शीतल ने शर्त मान ली और रुपये लेकर हॉस्पिटल की ओर चल दी।
“तुमने ये शर्त क्यों मानी,शीतल?” सुषमा ने पूछा।
और कोई रास्ता भी तो नही था,”शीतल ने कहा।
“लेकिन तुम इतने रुपये 1 साल में कैसे चुकाओगी। इससे तो अच्छा था की तुम राज के घर वालों की बात मान लेती। इस तरह अपना सौदा ना करती,” सुषमा ने कहा।
“मैंने राज से वादा किया था कि मैं उसका साथ कभी नही छोड़ूँगी,” शीतल ने कहा।
“और जब तुम पैसे नही चुका पओगी , तब क्या होगा?राज भी तुम्हारा साथ छोड़ देगा,जब उसे इस बारे में पता चलेगा,” सुषमा ने कहा।
“मुझे नही चुकाना है,पैसा राज चुकाएगा,” शीतल ने कहा।
“कैसे?उसकी हालत देखी है उसे ठीक होने में 6-7 महीने लग जाएँगे,” सुषमा ने कहा।
“मुझे नही मालूम,कैसे?लेकिन पैसा राज चुका देगा,”शीतल ने कहा।
“तुम क्यों इस रिश्ते को बचाना चाहती हो जब तुम दोनो एक-दूसरे से प्यार ही नही करते हो,हर दिन तो तुम दोनों में लड़ाई होती है। तुम्हारे लिए अच्छा होगा की तुम राज के घर वालों की बात मान लो,”सुषमा ने कहा।
“राज मुझसे नही लड़ता, मैं ज़िद करती हूँ , मैं लड़ती हूँ। मैं उनका साथ नही छोड़ सकती चाहे मुझे कितने भी दुख सहने पड़े,” शीतल ने कहा।
सुषमा कुछ नही बोली। थोड़ी देर में हॉस्पिटल आ गया। शीतल ने फीस जमा की और वहीं बेंच पर बैठ गयी। उसके सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा था।
“आप ये इंजेक्शन और दवाइयाँ लेते आइए,” नर्स ने शीतल से कहा।
शीतल ने नर्स से पर्चा लिया और मेडिकल स्टोर चली गयी। वो ठीक से खड़ी भी नही हो पा रही थी फिर भी किसी तरह उसने दवाइयाँ ली और आकर नर्स को दी। अचानक उसे चक्कर आ गया और वो बेहोश होकर गिर गयी। रात को भीगने की वजह से उसकी तबियत खराब हो गयी थी। जब उसे होश आया तो वो भी हॉस्पिटल के एक बेड पर लेटी हुई थी। उसके बगल में सुषमा बैठी थी।
“शीतल,ये कुछ फल खा लो उसके बाद ये दवाइयाँ,” सुषमा ने उसे फल पकड़ाते हुए कहा।
“मैंने तुम्हारी छुट्टी के लिए अप्लिकेशन लगा दी है,” सुषमा ने फिर कहा।
थोड़ी देर रुकने के बाद सुषमा वहाँ से चली गयी। राज का एक्सिडेंट शीतल की जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव लाया। शीतल रात भर राज के पास बैठी रहती और सुबह ऑफिस जाती उसे इस बात का ध्यान ही नही रहता था की उसने सुबह से कुछ खाया है या नही,सुषमा के कहने पर थोड़ा बहुत खा लेती थी। एक तरफ राज की हालत में सुधार आ रहा था तो दूसरी ओर शीतल की तबियत खराब होती जा रही थी। उसने अपने उपर ध्यान देना छोड़ दिया था , उसे सिर्फ़ राज की ही चिंता थी। राज का एक्सिडेंट हुए 1 महीना हो गया था। इस एक महीने में शीतल ने बहुत कुछ सहा था। एक महीने में उसने खुद को बहुत ज़्यादा बदला,कभी छोटी-छोटी बात पर ज़िद करने वाली शीतल बहुत गंभीर हो गयी थी,रात को घर पर अकेले रहने से डर लगता था लेकिन अब वो रात को अकेले कहीं जाने से भी नही डरती थी। उसका बचपना कहीं खो गया था राज के एक्सिडेंट ने उसे बहुत बड़ा बना दिया था।
शीतल कई-कई दिन घर नही जाती थी। हॉस्पिटल से ऑफिस और ओफिसे से हॉस्पिटल यही उसकी दिनचर्या हो गयी थी। सुबह से उसका सिर बहुत तेज दर्द हो रहा था और उसे उल्टियाँ भी आ रही थी , इस वजह से वो ऑफिस नही गयी। शीतल ऑफिस नही गयी थी इसलिए सुषमा उससे मिलने हॉस्पिटल आ गयी।
“राज की हालत कैसी है?”सुषमा ने पूछा।
“ठीक है।”
“और तुम्हारी?” सुषमा ने फिर पूछा।
शीतल कुछ नही बोली।
“तुमने सुबह से कुछ खाया या नही।”
शीतल फिर कुछ नही बोली।
“शीतल,तुम अपनी हालत देख रही हो,मुझे तो लगता है की कहीं तुम ही ना मर जाओ……।”
“तुम अपना थोड़ा तो ख्याल रखो,कितनी सुंदर दिखती थी तुम और अब देखो अपने को……। आज तुम इतनी कमजोर हो गयी हो की ठीक से खड़ी भी नही हो पा रही हो,”सुषमा ने कहा।
“तो मैं क्या करूँ?मुझसे सब कुछ नही संभाला जाता,मैंने आज तक अकेले कुछ नही किया है और आज मुझे सब कुछ अकेले ही करना पड़ रहा है। मुझे किसी का सहारा चाहिए मैं अपना दर्द तो किसी से बाँट सकूँ। पहले राज तो था साथ में, अब कोई नही है,”शीतल ने कहा।
“तुम अपने घर क्यों नही चली जाती। हो सकता है कि उन्होनें तुम्हे माफ़ कर दिया हो,” सुषमा ने कहा।
“जब राज के घरवाले राज की इस हालत में भी उसका साथ नही दे रहे तो क्या मेरे मम्मी-पापा देंगे?मेरी किस्मत में सिर्फ़ रोना ही लिखा है। जब घर नही छोड़ा था तब भी रोयी,घर छोड़ने के बाद भी रोयी,राज के साथ भी रोयी और आज जब राज इस हालत में हैं तब भी रो रही हूँ,” शीतल ने कहा।
“ज़रूरी नही की सबकी सोच एक जैसी हो,हो सकता है की तुम्हारे घरवाले तुम्हारा साथ दें एक बार घर जा कर तो देखो,” सुषमा ने कहा।
“गयी थी एक बार जब मेरी जॉब लगी थी,घर पर प्रिया(शीतल की छोटी बहन) थी मैं उससे कुछ कहती उससे पहले वो मुझसे बोली-‘दीदी,आप यहाँ क्यों आई हो,मम्मी ने देख लिया तो वो मुझे बहुत डाटेंगी। मम्मी आपसे बहुत नफ़रत करती हैं , उन्होंने हमसे भी कहा है कि अगर हम आप से कभी मिले तो मुझसे भी रिश्ता तोड़ देंगी,उनके लिए आप मर चुकी हो………।‘ वो और कुछ कहती उससे पहले ही मैं बिना कुछ कहे लौट आयी,”शीतल ने कहा।
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