RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“तुमने कुछ भी ग़लत नही किया शीतल,वो तुम्हारी शादी 31साल के आदमी से करा रहे थे,ऐसे में तुम क्या करती,तुमने किसी के प्यार में पड़ कर,उनका दिल दुखा कर घर नही छोड़ा था बल्कि तुम्हारा दिल दुखा था,” सुषमा ने कहा।
“आज का मालूम नही लेकिन मेरी माँ मुझसे बहुत प्यार करती थी। वो मेरी शादी उससे कभी नही करती वो तो सिर्फ़ मुझे देखने आए थे और मम्मी ने जो कुछ भी कहा था उस समय गुस्से में कहा था मैं ही ज़िद कर बैठी थी,” शीतल ने कहा।
कुछ देर दोनों कुछ नही बोले। शीतल , सुषमा का सहारा लेकर खड़ी हुई और बोली-“मुझे मेरे घर छोड़ दो,सह लूँगी मम्मी की डाँट आख़िर कितनी देर गुस्सा रहेंगी। ”
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5.
सुषमा ने उसे अपनी स्कूटी से उसे उसके घर रात के 9 बजे तक छोड़ दिया और खुद वहाँ से तुरंत चली गयी। शीतल दरवाजा खट खटाने जा रही थी की अचानक एकदम से रुक गयी,घर के अंदर से उसकी मम्मी की आवाज़ आ रही थी। वो क्या कह रही थी ये साफ-साफ नही सुनायी पड़ रहा था। शीतल कुछ सोच कर वापस लौटने लगी। उसने दरवाजा नही खटखटाया,शीतल ठीक से चल भी नही पा रही थी,वो लड़खड़ाते हुए कदमों से चल रही थी। घर से कुछ दूर सड़क पर एक किनारे बैठ गयी और किसी गाड़ी का वहाँ से निकलने का इंतज़ार करने लगी। वो एक घंटे तक इंतज़ार करती रही पर वहाँ से कोई नही निकला । वो जहाँ थी वहाँ से रात के समय कोई नही निकलता था। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था,दर्द और थकान के कारण उसे कब नींद आ गयी उसे पता भी नही चला।
सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसने खुद को बेड पर पाया। उसके आस-पास कोई नही था। वो एक कमरे में थी , कमरे से बाहर निकल कर उसने पूरा घर देख डाला पर उसे कोई कहीं नही दिखा । घर का दरवाजा बाहर से बंद था या फिर ताला लगा था। घर बहुत बड़ा और सुंदर था शायद वो किसी के बंगले में थी। वो अभी भी पूरी तरह से ठीक नही थी उसके सिर में अभी भी दर्द हो रहा था। शीतल हॉल में पड़े सोफे पर लेट गयी और किसी के आने का इंतज़ार करने लगी। उसे डर भी लग रहा था की कहीं कुछ बुरा …………कुछ देर बाद वो अचानक से बड़ी ही तेज़ी से खड़ी हुई और अपने-आप को अच्छी तरह से देखने लगी और बहुत ज़्यादा घबरा गयी,उसके कपड़े बदले हुए थे उसने किसी और के कपड़े पहन रखे थे। कहीं किसी ने उसके साथ कुछ किया तो नही या फिर किसी ने…। कोई लड़की थी या फिर कोई लड़का। तरह-तरह की बातें उसके मन में आने लगी वो जितना ज़्यादा सोचती उतना ही ज़्यादा डरने लगती। वो रोने लगी थोड़ी देर रोती रही फिर हॉल से उठकर वापस उसी कमरे में चली गयी और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
उस समय 10 बज रहे थे,वो फिर से बेड पर लेट गयी तभी उसकी नज़र वहीं बेड के बगल में रखी मेज पर गयी। उस पर एक पर्चा और कुछ दवाइयाँ रखी थी । उसने पर्चा उठाया और पढ़ने लगी। उसमें लिखा था - “ तुम्हारी तबीयत ठीक नही है इसलिए ये दवाइयाँ खा लेना और भूख लगे तो कुछ खा लेना।” उसे पढ़ कर शीतल में थोड़ी हिम्मत आई । उसे उम्मीद हुई की शायद कोई अच्छा………। उसने कल से कुछ नही खाया था भूख तो लगी ही थी,वो किचन में गयी वहाँ खाना रखा हुआ था, खाना ताज़ा था किसी ने सुबह ही बनाया था। शीतल ने खाना खाया और वापस कमरे में आकर दवाई खाई। वो थोड़ी देर के लिए लेट गयी लेकिन उसे नींद नही आ रही थी वो उठी और छत पर चली गयी। छत से दूर तक का नज़ारा दिखाई दे रहा था। वहाँ आस-पास कोई घर नही था , दूर-दूर तक कोई दिखाई भी नही दे रहा था । शायद वो किसी का फार्म हाउस था। शीतल को फिर से डर लगने लगा , आख़िर उसे कोई यहाँ क्यों लाया?अगर किसी ने उसकी मदद की थी वो उसे हॉस्पिटल या फिर पुलिस स्टेशन क्यों नही ले गया ? इस सूनसान जगह पर क्यों लाया? वो बड़ी देर तक सोचती रही,उसे डर भी था और एक उम्मीद भी की कोई अच्छा व्यक्ति हो तो। वो उसी कमरे में जाकर लेट गयी थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गयी और वो सो गयी। शाम को जब वो उठी तब भी कोई नही आया था। उसने फिर से कुछ खाया और हॉल में सोफे पर बैठ गयी,वो इंतज़ार कर रही थी किसी के आने का। करीब 9बजे दरवाजा खुला,कोई लड़का था 25-26 साल का उसके साथ और कोई नही था। शीतल उसे मूर्ति बनी देख रही थी,उसके पूरा शरीर कांप रहा था। वो लड़का अंदर आकर सोफे पर बैठ गया।
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