RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“तुम्हें तो अब भी बुखार है और तुम कह रही थी तुम ठीक हो,” जय ने कहा।
“बस हल्का-सा ही तो है,” शीतल ने बड़ी ही मासूमियत से बच्चों की तरह कहा।
जय उसके इस तरह से बोलने पर हँस दिया।
“अब तुम सो जाओ,मुझे तो अभी किसी का इंतज़ार करना है,” जय ने कहा और वो कमरे से बाहर हॉल में चला गया।
शीतल राज से 6 महीने में इतना नही खुली थी जितना वो जय से कुछ घंटों में खुल गयी थी। जय ठीक वैसा था जैसा पति वो चाहती थी। उसने सोचा की क्यों ना एक बार जीन्स ट्राई की जाए। वो कपड़े बदलने जा ही रही थी कि उसका ध्यान पहने हुए कपड़ों पर चला गया जो उसके थे ही नही, वो किसी और लड़की के थे। उसका चेहरा फिर से उतर गया क्या जय ने कल रात को उसके कपड़े बदले थे?वो चुपचाप लेट गयी उसकी सारी खुशी एक पल में चली गयी,वो तरह-तरह की बातें सोचने लगी,उसे समाज,राज सभी का डर सताने लगा,कहीं जय ने उसके साथ कुछ………। ऐसे सोचते-सोचते उसे नींद आ गयी और वो सो गयी । वो कमरे का दरवाजा बंद करना भी भूल गयी। आधी रात को उसके हाथों में कुछ चुभने से उसकी नींद खुली पर कमरे में अंधेरा था और नींद में भरे होने के कारण वो ठीक से देख भी नही पायी की कौन था। शायद उसे कोई इंजेक्शन लगा रहा था। वो ठीक से उठ भी नही पायी थी की इंजेक्शन की वजह से वो बेहोश हो गयी या फिर सो गयी।
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