RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
एक घंटे बाद शीतल अपने कमरे से बाहर हॉल में आई। उस समय ज्योति किचन में थी,हॉल में यश सोफे पर बैठा खिलौनों से खेल रहा था। शीतल भी यश के साथ खेलने लगी। तभी ज्योति किचन से निकल कर हॉल में आई।
“तुम कुछ खाओगी?” ज्योति ने पूछा।
“नही दीदी,मुझे मेरे घर छोड़ दीजिए,” शीतल ने कहा।
“जय बाहर गार्डेन में है,तुम उसके साथ चली जाओ,” ज्योति ने कहा।
शीतल बाहर गार्डेन में गयी,जय की नज़रें जब उस पर पड़ी तो उसकी नज़रें शीतल पर ही टिक गयी। शीतल ने रेड टॉप और ब्लू जीन्स पहनी थी।
“जय,मुझे घर छोड़ दो,” शीतल ने कहा।
“ठीक है,” जय ने उससे नज़रें बिना हटाए ही कहा।
शीतल बिना कुछ कहे वहीं थोड़ी ही दूरी पर खड़ी जय की गाड़ी में जा कर बैठ गयी। जय भी कुछ नही बोला और गाड़ी में बैठ गया। करीब 40 मिनट में हाइवे पर आ गये इस 40 मिनट में दोनों ने एक दूसरे से कोई बात नही की।
“बहुत सुंदर दिख रही हो,” जय ने बिना शीतल की ओर देखे ही कहा।
शीतल कुछ नही बोली बस नीचे की ओर देखने लगी। उसे राज की याद आ र्ही थी। राज से वो क्या कहेगी,कहाँ थी वो 2दिन। राज की हालत इतनी तो सुधर गयी थी की वो बोल सकता था सिर्फ़ उसके पैर का फ्रैक्चर ठीक नही हुआ था। उसे रुपयों का इंतज़ाम भी करना था। शीतल की आँखों से कब आँसू बहने लगे उसे पता ही नही चला।
“तुम रो क्यों रही हो?” जय ने शीतल से पूछा।
शीतल कुछ नही बोली जैसे उसने कुछ सुना ही नही। जय ने फिर पूछा इस बार जय ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया था। शीतल ने कोई प्रतिक्रिया नही की सिर्फ़ नज़रें उठा कर जय की ओर देखा,जय ने अपना हाथ हटा लिया। शीतल कुछ देर जय को इसी तरह देखती रही लेकिन कुछ कहा नही। थोड़ी देर बाद उसने अपनी नज़रें झुका ली।
“जय क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकती हूँ?”शीतल ने अपनी आखों से आँसू पोछते हुए जय की ओर देखे बिना ही कहा।
“हाँ,पर बात क्या है?” जय ने गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करते हुए पूछा।
शीतल बिल्कुल शांत हो गयी,वो हिम्मत जुटा रही थी जय को सब कुछ बताने की पर वो कुछ नही कह पायी,किसी गहरी सोच में डूब गयी।
“शीतल क्या हुआ?”जय ने पूछा।
शीतल ने जय की ओर देखा और उसके बाद उसने अपनी पूरी कहानी जय को सुना दी। कैसे उसकी मुलाकात राज से हुई,किस तरह उनकी शादी हुई सभी कुछ जो कुछ उसके साथ घर छोड़ने के बाद हुआ था। अनुज सर के बारे में,उन्होने उसे किस शर्त पर रुपये दिये। राज के घर वालों ने उसके साथ जो व्यवहार किया। उसने हर एक बात जय को बता दी।
जय की आखें भी नम हो गयी थीं। दोनों गाड़ी में ही बैठे थे । जय ने शीतल के आँसू अपने हाथों से पोछे और उसके सर को अपने कंधे पर रख कर उसे दिलासा देने लगा। वो शीतल के बालों को सहलाने लगा,बार-बार उसके सर पर हाथ फेर रहा था लेकिन फिर भी जय उसे किसी भी तरह से शांत नही करा सका। रोते-रोते शीतल कब सो गयी उसे पता ही नही चला। जय ने उसे जगाया नही ना ही उसके सिर को अपने कंधे से हटाया। उसने गाड़ी स्टार्ट करी और वहाँ से चल दिया।
एक घंटे के बाद शीतल की आँख खुली,उसके सामने जय बैठा था और वो सोफे पर लेटी थी। वो अभी भी जय के घर में ही थी। शीतल झटके से उठ कर बैठ गयी।
“मुझे वापस यहाँ क्यों लाए?” शीतल ने पूछा।
“दीदी कह रही हैं कि तुमने सुबह कुछ खाया नही था,” जय ने उसकी बात को टालते हुए कहा।
“मैं वहाँ खाना खा लेती पर तुम मुझे यहाँ क्यों ले आए,”शीतल ने पूछा।
“तुम्हे रुपेयों की ज़रूरत है,ये लो 2 लाख,” जय ने उसे रुपये पकड़ाते हुए कहा।
“मुझे हॉस्पिटल छोड़ दो,” शीतल ने रुपये पकड़ते हुए कहा। उसने रुपये लेने में कोई हिचक नही दिखाई।
“कल चली जाना,” जय ने कहा।
शीतल ने जय की ओर गुस्से से देखा पर ये उसका घर था इसलिए वो उसे कुछ कह नही पाई। ज्योति भी अपने कमरे से बाहर हॉल मे आ गयी थी। वो शीतल का चेहरा देखकर सब समझ गयी।
“शीतल तुम खाना खा लो,फिर मैं तुम्हे छोड़ दूँगी,” ज्योति ने शीतल से कहा।
शीतल कुछ नही बोली,उसने खाना खा लिया।
“मैं कुछ मेडिसिन के नाम लिख दे रही हूँ तुम इन्हे कुछ दिन तक खा लेना,” ज्योति ने शीतल से कहा और उसे मेडिसिन के नाम लिख कर पर्चा पकड़ा दिया।
“जय,शीतल को अभी छोड़ कर आओ,” ज्योति ने जय से कहा।
जय,ज्योति की बात को टाल नही सका। उसे शीतल को हॉस्पिटल छोड़ने जाना पड़ा। जय शीतल को हॉस्पिटल के बाहर छोड़ कर चला गया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
|