RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“पता नही,पर तुम्हारे साथ नही,” शीतल ने कहा।
“जय से शादी कर लेना,तुम्हे प्यार करता है,” राज ने कहा।
“मैं नही करती।”
“क्यों?...............वो बहुत अच्छा है,तुम उसके साथ बहुत खुश रहोगी।”
“मुझे उसके साथ नही रहना।”
“फिर कहाँ रहोगी?”
“कहीं भी रहूं,तुम्हे इससे क्या?...........वैसे तुम खुश रहोगे मेरे बिना।”
“नही जानता,और तुम?”
“नही।”
“फिर भी अलग होना चाहती हो।”
“हाँ।”
“क्यों?”
“हम दोनों के लिए यही अच्छा है और फिर हम प्यार भी तो नही करते हैं।”
“पर भरोसा तो करते हैं।”
“जाने दो,राज। सब के लिए अच्छा है।”
“क्या ? सबके लिए अच्छा है।”
“हमारा अलग होना।”
“और हमारे लिए?”
“नही पता…………। पर अब मैं तुम्हे और दुख नही देना चाहती।”
“तुम मेरी पत्नी और फिर थोड़े दुख तो सबको उठाने ही पड़ते हैं।”
“जो भी हो मैं साथ नही रह सकती।”
राज शांत हो गया। शीतल के पास उसकी हर बात का जवाब था। उससे बात करने से कोई फ़ायदा नही था,वैसे भी वो जिद्दी थी किसी की कहाँ सुनती थी।
“कल से हम दूसरे घर में रहेंगे,” राज ने कहा।
“ठीक है,” शीतल ने कहा।
शीतल आँखें बंद करके लेट गयी। राज ने भी लैपटॉप बंद कर दिया। शीतल के बर्ताव में रूखापन था। वो राज पर गुस्सा नही कर रही थी लेकिन उसकी बातों में अपनापन भी नही था।
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