RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
राज घायल होकर रह गया। यों लगा मानो डॉली ने सैकड़ों नश्तर उसके हृदय में उतार दिए हों। एक पल मौन रहकर वह बोला- 'और तुम्हारा वह अग्नि के इर्द-गिर्द फेरे लेना-अग्नि को साक्षी करके जीवनभर साथ निभाने का वचन लेना।'
'वह-वह भी एक धोखा था।'
'न-न डॉली! ऐसा नहीं हो सकता। कोई भी भारतीय नारी झूठे फेरे नहीं ले सकती। हिंदुस्तान की संस्कृति में जन्मी और पली कोई भी औरत अग्नि को साक्षी मानकर झूठे वचन कभी नहीं दे सकती। तुम-तुम झूठ बोलती हो डॉली! तुम झूठ बोलती हो।'
'यह सच है राज!'
'सच है।' राज उसे पागलों की भांति देखता रहा। फिर वह आगे बढ़ा और डॉली को भगवान की तस्वीर की ओर मोड़कर उसे झिंझोड़ते हुए बोला- 'तो फिर कहो। कहो भगवान के सामने कि वह सब एक नाटक था। कहो कि तुमने झूठ कहा था। कहो कि तुम्हारी मांग में भरा यह सिंदूर मेरा न था। कहो कि तुम मेरी न थीं।
बोलो, जवाब दो डॉली!'
डॉली ने खामोशी से चेहरा झुका लिया।
उसे यों मौन देखकर राज फिर चिल्लाया 'बोलो डॉली! बताओ। कहो कि तुम मुझे वास्तव में धोखा दे रही थीं। छल रही थीं तुम मुझे दर्द का प्याला पिला रही थीं तुम मुझे रिश्तों के नाम पर। लूट रही थीं तुम मुझे।' कहते-कहते राज की आवाज रुंध गई और आंखों में आंसुओं की बूंदें झिलमिला उठीं। डॉली ने फिर भी कुछ न कहा।
राज ने उसे छोड़ दिया और दर्द भरे अंदाज में बोला- 'और यदि यह सच है। यह सच है तो तुमने ठीक न किया डॉली! इससे तो बेहतर था कि तुम मुझे विष देकर मार डालतीं। छुरा उतार देतीं मेरे हृदय में। या फिर उसी वक्त दूर चली जातीं मेरे जीवन से। कम-से-कम इतनी पीड़ाएं तो न मिलतीं मुझे। वो गम जिसे भुलाने के लिए मैंने तुम्हारा सहारा लिया। वो अतीत जिसे भूलने के लिए मैंने तुम्हारे आंचल में मुंह छुपाया-आज इतनी बड़ी चोट तो न देता मुझे।' राज इससे अधिक न कह सका और आंसुओं को रोकने के लिए अपने होंठों को काटने लगा।
डॉली कुछ क्षणों तक तो वहां खड़ी अपने ही विचारों से लड़ती रही। फिर वह मुड़ी और कमरे से बाहर चली गई।
राज अपनी आंखें पोंछता रहा।
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