RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“पर भरोसा तो करते हैं।”
“जाने दो,राज। सब के लिए अच्छा है।”
“क्या ? सबके लिए अच्छा है।”
“हमारा अलग होना।”
“और हमारे लिए?”
“नही पता…………। पर अब मैं तुम्हे और दुख नही देना चाहती।”
“तुम मेरी पत्नी और फिर थोड़े दुख तो सबको उठाने ही पड़ते हैं।”
“जो भी हो मैं साथ नही रह सकती।”
राज शांत हो गया। शीतल के पास उसकी हर बात का जवाब था। उससे बात करने से कोई फ़ायदा नही था,वैसे भी वो जिद्दी थी किसी की कहाँ सुनती थी।
“कल से हम दूसरे घर में रहेंगे,” राज ने कहा।
“ठीक है,” शीतल ने कहा।
शीतल आँखें बंद करके लेट गयी। राज ने भी लैपटॉप बंद कर दिया। शीतल के बर्ताव में रूखापन था। वो राज पर गुस्सा नही कर रही थी लेकिन उसकी बातों में अपनापन भी नही था।
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अगले दिन से दोनों नये घर में रहने लगे। वो घर बहुत बड़ा और बहुत सुंदर था किसी बंगले से कम नही था।
दो दिन बीत गये इस बीच दोनों ने एक-दूसरे कोई बात नही की। राज ने कई बार कोशिश की पर शीतल कोई बात नही करती।
शीतल और राज के तलाक़ के बारे में जय को पता चल गया था उसने तलाक़ के कागज तैयार करा लिए। जय ने शीतल के मम्मी-पापा से अपनी और शीतल की शादी की बात कर ली थी। जय ने शीतल को तलाक़ के कागज दे दिए।
“इन कागज पर तुम दोनों अपने साइन कर देना और अगले दिन तुम दोनों की कोर्ट में सुनवाई है,”जय ने शीतल से कहा।
शीतल जय से कुछ नही बोली। उसने उससे कागज लिए और घर चली आई। राज घर पर नही था। वो शाम को 7 बजे घर आया। वो बहुत थका हुआ लग रहा था इसलिए शीतल ने उससे कुछ नही कहा। सोते समय शीतल ने उसे तलाक़ के कागज पकड़ा दिए।
राज ने एक पल का समय लिए बिना उस पर साइन कर दिया। शीतल को तो यकीन ही नही हो रहा था की राज इतनी जल्दी साइन कर देगा। उसे लगा था कि शायद राज एक बार उससे बात करेगा पर राज ने तो………।
शीतल ने खुद साइन नही किए थे। राज ने साइन करके कागज वहीं मेज पर रख दिए। शीतल की हिम्मत उन्हें उठाने की नही हुई। वो आँख बंद करके लेट गयी और जब राज सो गया तब उसने उन कागज को देखा। कुछ देर देखती रही फिर बिना साइन किए सो गयी।
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