RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
एक दिन राज को काम पर नही जाना था। वो घर पर ही था। उस दिन राज अपने लिए खाना खुद ही बनाने लगा।
“मैं बना दूँगी,तुम रहने दो,” शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला और जो कर रहा था उसे करता रहा। शीतल उसके पास आई और उससे उसने चाकू छीन ली।
“ये क्या बदतमीज़ी है?” राज ने कहा।
“मैंने कहा ना मैं बना दूँगी फिर क्यों?” शीतल ने कहा।
“तुम्हें मेरे लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नही है,”राज ने कहा।
“मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।”
“पत्नी का काम खाना बनाना नही होता,”राज ने कहा।
शीतल कुछ नही बोल सकी,कुछ दिन पहले तक तो वो खुद राज से यही कह रही थी और आज सब कुछ करने को तैयार थी।
शीतल खुद सब्जी काटने लगी। राज ने भी ज़्यादा कुछ नही कहा और खुद कुछ और करने लगा। शीतल फिर उसके पास चली आई और उसे उस काम को करने से रोक दिया।
“मैं सब कर लूँगी,तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नही है,” शीतल ने कहा।
“तुम्हारी समस्या क्या है,शीतल?जब तुमसे अच्छे से बात करो तब तुम नखरे दिखाती हो और जब ना बोलो तो खुद……………। तुम चाहती क्या हो?कभी कहती हो की तुमसे ये सब नही होगा और कभी खुद करने लगती हो,” राज ने कहा।
“मुझे माफ़ कर दो,मुझसे ग़लती हो गयी अब दोबारा ऐसा कुछ नही करूँगी।”
“शीतल,मुझे परेशान मत करो।”
“तुम मुझसे गुस्सा मत हुआ करो,मैं तुम्हारा गुस्सा नही बर्दाश्त कर सकती,” शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला और जो कर रहा था उस काम को छोड़ कर कमरे में चला गया कुछ देर बाद शीतल भी उसी कमरे आ गयी।
“क्या हुआ ? अब नही बनाना,” राज ने कहा।
“बन रहा है।”
“तुम्हें हो क्या गया था ?तुम इतने दिनों से बहुत अजीब सा व्यवहार कर रही थी।”
“कुछ नही बस थोड़ी तबियत ठीक नही थी। मैं तुम्हें जान बूझ कर परेशान नही करना चाहती थी , बस हो जाता है पर तुम मुझ पर गुस्सा मत हुआ करो,मुझे मना लिया करो। तुम्हारे अलावा और कोई मुझे समझता भी तो नही है,”शीतल ने कहा।
“सॉरी,” राज ने कहा।
“मुझे कुछ पूछना है,” शीतल ने कहा।
“पूछो।”
“मेरे बिना जी लोगे,” शीतल ने कहा।
“क्यों? कहीं जा रही हो,” राज ने कहा।
“पता नही पर तुम बताओ हाँ या नही,” शीतल ने कहा।
“किसी के जाने से किसी की जिंदगी नही रुकती और तुम खुद समझ सकती हो कि मैं …………।” राज ने कहा और कमरे के बाहर चला गया।
रात को राज जल्दी सो गया पर शीतल की आँखों में नींद नही थी उसने फिर से उसी नॉवेल को उठाया(जिसे उस दिन वो छत पर पढ़ रही थी) और उसमें से एक पेज निकाल कर पढ़ने लगी वो राज का लिखा हुआ खत था जो उसने उसे तलाक़ वाली घटना के पहले लिखा था। खत में लिखा था-
“प्यारी शीतल ,
कल तलाक़ के बाद हम दोनों जुदा हो जाएँगे। क्या पता फिर कभी कुछ कहने का मौका मिले या फिर ना मिले इसलिए ये खत ये तुम्हे लिख रहा हूँ। उस दिन घर छोड़ कर तुम मेरे पास कितने विश्वास के साथ आयी थी। तुम्हारा साथ देना नही चाहता था ना ही तुम्हारे लिए मैं कभी घर छोड़ता लेकिन तुम्हारा मुझ पर आँख बंद करके भरोसा करना मुझे अच्छा लगा था। मुझे घर छोड़ने का अफ़सोस होता लेकिन तुम्हारे साथ का अहसास ज़्यादा अच्छा है। जब तुम रोती हो,ज़िद करती हो, मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आता है लेकिन तुम्हें प्यार से शांत कराना मुझे ज़्यादा अच्छा लगता है। बिल्कुल बच्चों की तरह ज़िद करती हो और उतनी ही मासूम भी लगती हो। मुझे तुमसे रूठना और तुम्हें मनाना बहुत अच्छा लगता है। उस दिन जब तुमसे गुस्सा था और खाना नही खा रहा था तो कितनी मासूमियत से तुम मुझे मना रही थी। मैं खाना खाना तो नही चाहता था लेकिन तुम्हारा उदास चेहरा भी मुझसे नही देखा जा रहा था। तुम मुझे हमेशा हसती-बोलती हुई ही अच्छी लगती हो। कभी उदास मत रहा करो,जब तुम उदास होती हो मुझे बहुत दुख होता है। जब तुमने मुझसे कहा था कि-“तुम्हारा हर गिफ्ट मेरे लिए खास है। ” उस पल मेरा दिल कह रहा था कि अभी तुम्हारे माथे को चूम लूँ और कह दूँ कि मेरे लिए तो सिर्फ़ तुम खास हो पर कुछ कह नही सका था। मैं किसी वैशाली से प्यार नही करता हूँ, वो सिर्फ़ मेरी दोस्त थी और कुछ नही। जब से तलाक़ की बात हुई है तब से तुम्हें हर पल खोने का डर लगा रहता है। तलाक़ देना तो नही चाहता था लेकिन साइन करने के लिए तुमने कहा था तुम्हें मना भी तो नही कर सकता था और फिर साथ देने का वादा तुम्हारा था मैंने कोई वादा नही किया था। हमेशा तुमसे दूर जाने की कोशिश की। कभी भी तुम्हें जाहिर नही होने दिया कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ,ना आज कहने की हिम्मत है। शीतल,मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत है,हर वक्त,हर कदम पर। कल अलग हो जाओगी मुझसे लेकिन अपने हाथों से मेरी दी हुई उस अंगूठी को अलग मत करना।
तुम्हारा पति राज”
खत पढ़ते-पढ़ते शीतल की आँखें नम हो गयी पर उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। कुछ पाने की खुशी थी। इस खत को शीतल कई बार पढ़ चुकी थी।
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