RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
राज कुछ नही बोला चुप-चाप चला गया।
शाम को सतीश घर आया। राज उस समय घर पर नही था।
“तुमने इतनी जल्दी शादी क्यों की?” सतीश ने पूछा।
“कुछ हालात ही ऐसे हो गये थे की मुझे शादी करनी पड़ी।”
“क्या हुआ था?”
“बताती हूँ ,” कहकर शीतल ने शुरू से अंत तक की सारी कहानी सुना दी की कैसे वो राज से मिली?उसकी शादी कैसे हुई?उसने क्या कुछ सहा?सब कुछ उसने सतीश से कह दिया।
शीतल की कहानी सुन कर सतीश की आँखों में आँसू आ गये।
“तुम इतना सब कुछ अकेले सह रही थी।”
“नही,राज का साथ था।”
“क्या कोई इतना अच्छा हो सकता है?”
“पता नही,पर राज है।”
कुछ देर तक दोनों चुप रहे फिर सतीश जाने लगा,तभी राज आ गया पर सतीश राज से बिना कुछ बोले ही चला गया।
“सतीश, क्यों आया था?”राज ने पूछा।
“मुझसे मिलने।”
“थोड़ा दूर रहो इससे।”
“क्यों?तुम्हे वो पसंद नही या मुझ पर भरोसा नही।”
“कोशिश करो आज के बाद ना मिलने की।”
इतना कहकर राज गौरी के साथ खेलने लगा। शीतल भी कुछ नही बोली।
अगले दिन राज के जाने के कुछ देर बाद ही सतीश शीतल से मिलने के लिए आया। शीतल को उसके इस तरह आने की कोई उम्मीद नही थी।
“तुम इतनी सुबह।”
“मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
“बोलो।”
“अंदर बैठ कर बात करें।”
शीतल उसे मना नही कर पायी,बेमन से उसने उसे अंदर आने के लिए कहा।
“कहो,क्या बात करनी है?”
“शीतल , राज तुम्हें धोखा दे रहा।”
“कोई भी बात करो पर राज के बारे में कुछ नही।”
“मुझे सिर्फ़ राज के बारे में ही बात करनी है।”
“तो फिर जा सकते हो।”
“शीतल , राज ने ही तुम्हारी जिंदगी बर्बाद की है। वो अच्छा नही है।”
“कैसा भी हो ,कुछ भी किया हो मुझे कुछ नही जानना,तुम जाओ यहाँ से,”शीतल ने कहा।
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