RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
अगले दिन राज गौरी को वहीं छोड़ कर कर वापस अपने उसी घर में आ गया जिसमें शीतल की यादें बसी थीं। उसने पुलिस में भी रिपोर्ट कर दी थी पर कोई खबर नही मिली। राज सतीश से भी मिला पर वो उसके पास नही गयी थी। कुछ दिन बाद राज को किसी काम से दिल्ली जाना पड़ा। वहाँ वो किसी होटल में रुकने की बजाय अपने किसी दोस्त राघव के घर रुका।
राघव का घर बड़ा था। घर में घुसते ही बड़ा सा हॉल जहाँ बैठने के लिए सोफा था। राज को वहाँ 3 दिन के लिए रुकना था। ज़्यादातर राज हॉल में बैठना पसंद करता। राज वहीं सोफे पर बैठा था और हॉल में कोई नौकरानी पोछा लगा रही थी। राज ने उसकी ओर कोई ध्यान नही दिया, वो राघव से बात करने में व्यस्त था। राज का ध्यान उसकी ओर तब गया जब उसे किसी ने बुलाया और वो बोली-“आई”
आवाज़ सुनते ही राज काँप गया उसका ध्यान तुरंत उस नौकरानी की ओर गया। जैसे ही उसकी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी वो उसे देखता ही रह गया। वो उसकी शीतल थी। अभी तक शीतल ने भी राज की ओर ध्यान नही दिया था पर अब दोनों की नज़रें मिल गयी थीं। शीतल ने अपनी नज़रें झुका ली और अंदर कमरे में चली गयी।
शीतल ने जो कपड़े पहने हुए थे वो बहुत ज़्यादा गंदे थे,उसके बाल बिखरे हुए थे,आँखों के नीचे काले धब्बे पड़ गये थे,उसे देखकर ही उसकी खराब हालत का पता लग रहा था। राज ने उससे कुछ भी नही कहा। शीतल भी जितनी जल्दी हो सका वहाँ से चली गयी। कुछ देर बाद राज भी उसके पीछे उस जगह पहुँच गया। शीतल किसी बस्ती में रहती थी। वहाँ सारे घर लगभग एक जैसे थे पर कोई अच्छी हालत में नही था।
राज जो की अपने शहर का बहुत अमीर आदमी था उसकी पत्नी इतनी ग़रीबी से जिंदगी जी रही थी,उसे अपना गुज़रा करने के लिए लोगों के घर काम करना पड़ रहा था।
राज ने दरवाजा खटखटाया,किसी औरत ने खोला शीतल नही थी।
“कौन?”
“मुझे शीतल से मिलना है,” राज ने कहा।
“शीतल,तुमसे कोई मिलने आया है” की आवाज़ के साथ वो औरत अंदर चली गयी।
शीतल ने राज को देखा और उसे अंदर आने को कहा।
“पानी?” शीतल ने पूछा।
“नही।”
“यहाँ क्यों आए हो?”
“तुम्हें अपने साथ ले जाने और किस लिए?” राज ने कहा।
“पर मैं अब तुम्हारे साथ नही चल सकती हूँ।”
“क्यों नही चल सकती हो?”राज ने कहा।
“मैंने वापस लौटने के लिए घर नही छोड़ा है।”
“छोड़ा ही क्यों?किसका खून ? तुम क्या कह रही हो?मुझे कुछ नही सुनना है……। बस तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हे इस तरह से जिंदगी जीने नही दे सकता हूँ,”राज ने कहा।
“क्यों कुछ नही सुनना राज,क्या तुम्हें इससे कोई फ़र्क नही पड़ता की मेरे साथ क्या हुआ?”शीतल ने कहा।
राज कुछ देर चुप रहने के बाद बोला-“सब कुछ सुनना है,तुम्हारे हर दर्द को बाँटना है,लेकिन यहाँ नही शीतल,घर चलो वहाँ।”
“मैं नही चल सकती,राज,तुम मुझसे ज़िद मत करो,” शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला।
“तुम जानना चाहोगे की उन 10 दिन मैं कहा रही,मैंने किसका खून किया है।”
“हाँ।”
“जय का खून……।”
“जय का क्यों?”
“तुमने मुझसे जॉब छोड़ने के लिए कहा था,मैंने उसी दिन जॉब छोड़ दी थी उसके बाद जय से मिलने गयी थी। उससे कहने के लिए कि अब मैं उससे कभी नही मिल सकती हूँ। जय अच्छा इंसान नही था मुझे कई बार ऐसा लगा कि वो सिर्फ़ अच्छा बनने की कोशिश करता है पर मैं ध्यान नही देती थी। उस दिन जब मैंने उससे कहा की अब मैं उससे नही मिल सकती तो उसने मेरे साथ……………। 10 दिन तक वो मेरे साथ खेलता रहा और मैं कुछ नही कर सकी। जी तो चाहता था खुद को मिटा लूँ पर जिंदगी ने मेरे साथ पहली बार तो खेल खेला नही था,मुझे तो आदत सी हो गयी थी जिंदगी के सितम सहने की। जब भागने का मौका मिला तो वापस घर लौट आई लेकिन किसी ने मुझसे मेरा हाल नही पूछा,मुझे भला-बुरा कहा। क्या सिर्फ़ इसलिए की मैं एक लड़की हूँ?मेरे साथ क्या हुआ इससे किसी को कोई फ़र्क नही पड़ा। मैंने सोचा था की तुम मुझसे इतना प्यार करते हो की मेरा दर्द समझ जाओगे,मेरी ताक़त बनोगे, जय को सज़ा दिलाओगे पर ऐसा कुछ नही हुआ। तुमने मुझसे एक बार भी नही पूछा कि मैं कहाँ थी? किस हालत में थी?इस हादसे को भूल कर मैंने फिर से एक नयी जिंदगी की शुरुआत तो कर ली थी लेकिन उसी तरह जी नही सकी। यही वजह थी की कभी तुमसे रूठ जाती तो कभी…………,” शीतल ने कहा।
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