RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“तुम्हें मुझसे एक बार कहना तो चाहिए था और जब तुम वापस आ ही गयी थी तो फिर घर क्यों छोड़ा?”राज ने पूछा।
“क्यों क़ि मुझमें जय का अंश पल रहा है,इसलिए मैंने जय को भी मारा और घर भी छोड़ा,” शीतल ने कहा।
“तुमने कुछ भी किया हो, मुझे इससे कोई फ़र्क नही पड़ता। तुम मेरे साथ घर चलो,”राज ने कहा।
“बच्चों की तरह ज़िद ना करो। मैं जैसे भी जी रही हूँ जीने दो मुझे,” शीतल ने कहा।
“मैं नही जी सकता तुम्हारे बिना।”
“गौरी के सहारे जियो……………………। राज वापस चले जाओ,मेरी वजह से कितना सहोगे?अगर मैं तुम्हारे साथ चली भी तो ये समाज हमें नही जीने देगा।”
“हमने समाज की परवाह कब की,शीतल?”
“जो भी हो मुझे यहीं रहना है,इसी घर में,इसी तरह से,” शीतल ने कहा।
“कभी मेरे करीब आना चाहती थी और आज मुझसे ही दूर……………,” राज ने कहा।
“आज दूर होना ही अच्छा है,” शीतल ने कहा।
“शीतल,गौरी के लिए ही चलो।”
“नही चल सकती,………। तुम जाओ यहाँ से।”
राज चला गया,उसके जाने के बाद शीतल तकिये में मुँह दबा कर रोने लगी।
राज अपने दोस्त के घर कुछ दिन इसी आश में रुका रहा क़ि शायद शीतल मान जाए,लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शीतल हर रोज़ वहाँ काम करने आती,उसे कोई फ़र्क नही पड़ता था की राज उसे इस हालत में देख रहा है। ना तो राज ने उससे कभी कोई बात की ना ही उसने कभी कुछ कहा। जब राज को कोई उम्मीद नही दिखी तो वापस अपने शहर आ गया।
गौरी को लेकर अपने घर जाने लगा तो उसकी माँ बोली-“तुम अब यहीं रहो। ”
“शीतल के साथ इस घर में रह सकता हूँ उसके बिना नही,” राज ने कहा।
गौरी को लेकर वो अपने बनाए हुए घर में आ गया। राज सुबह गौरी को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस चला जाता। दोपहर में रिया गौरी को संभालने के लिए आ जाती थी। राज भी 6 बजे तक घर आ जाता था,उसके आने के बाद रिया चली जाती थी।
कुछ महीने बीत गये,इन कुछ महीनो में राज ने अपना बिजनेस बहुत ज़्यादा बड़ा लिया। साथ ही उसने ग़रीब बच्चों के लिए स्कूल भी खोले,ऐसी औरतों के रहने की व्यवस्था की जिन्हे समाज ने ठुकरा दिया या फिर जो मजबूर और बेसहारा हो। उसका सोचना था की शायद इन सब कामों की वजह से शीतल मान जाए। राज ने कई बार उससे बात करने ,मिलने की कोशिश की लेकिन कुछ भी नही हो सका क्यों कि राज के वापस लौटने के बाद शीतल वहाँ से कहीं और चली गयी। कहाँ? किसी को नही पता।
राज बहुत तेज़ी से उँचाई पर जा रहा था। उसके पास पैसों की कोई कमी नही रह गयी थी अब वो शहर के अमीर लोगों में एक था। शहर में उसका नाम भी हो गया था। बाहर की दुनिया को राज ने आबाद कर लिया था लेकिन दिल की दुनिया आज भी बर्बाद थी। जिंदगी में पैसा तो था लेकिन खर्च करने वाली नही।
क्या प्यार किसी को इतना कमजोर कर देता है की सब कुछ होते हुए भी हम कभी खुश नही रह पाते। खुशियाँ हमारे चारो ओर खेल रही होती हैं फिर भी मन उदास होता है किसी की यादों में खोया रहता है। कभी राज के लिए शीतल की आँखों में आँसू थे और आज राज शीतल के लिए रो रहा था। दोनों ने कभी नही सोचा था की उन्हें एक दूसरे से इतना प्यार हो जाएगा।
|