RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“मुझे कोई पसंद नही आया पर तुम्हारा दिल ज़रूर किसी ना किसी पर आ गया होगा ,हर बार की तरह,” राज ने कहा।
शीतल हँस दी-“क्या मैं इतनी बुरी हूँ?”
“मैंने बुरा नही कहा…………। मेरा मतलब था की तुम्हारा कोई दोस्त बन गया होगा।”
“इशारा कुछ ऐसा ही था………। अब कोई दोस्त नही है मेरा ना कोई लड़की ना ही लड़का।” शीतल ने अपने हाथों की उंगलियों को राज की उंगलियों में जकड़ते हुए कहा। -“इन हाथों में सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही अच्छा लगता है। ”
“अफ़सोस की ये हाथ कभी मिलते ही नही,” राज ने कहा।
दोनों खामोश हो गये,नज़रें एक-दूसरे से चुराने की कोशिश कर रहे थे। पर हाथों की पकड़ मजबूत हो गयी थी।
राज ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा-“लौट क्यों नही चलती मेरे साथ। ”
“किसी का खून किया है……। ,नही चल सकती हूँ आख़िर सज़ा भी तो मिलनी है पुलिस से ना सही किस्मत से ही।”
“जय जैसे का खून करने में कोई गुनाह नही है।”
“फिर भी मैं नही चल सकती हूँ………। मुझसे वपास लौटने के लिए मत कहो।”
“ठीक है,नही कहूँगा……………………। एक गिलास पानी मिलेगा।”
“नही मिलेगा,” शीतल ने हँसते हुए कहा और पानी लेने के लिए उठ गयी।
“7 बज गये हैं,खाना नही बनाओगी,” राज ने कहा।
शीतल ने पानी देते हुए बोला-“तुम थोड़ी देर आराम करो तब तक मैं बना देती हूँ। ”
“आराम क्यों?मैं भी तुम्हारा साथ दूँगा,जैसे पहले देता था।”
“शीतल,जब जय ने तुम्हारे साथ ऐसा कुछ किया था तो फिर वो बाद में शादी क्यों करना चाह रहा था?” राज ने पूछा।
“शायद उसे डर था की कहीं मैं उसके खिलाफ कुछ करूँ ना,” शीतल ने कहा।
दोनों ने मिलकर खाना बनाया और फिर एक साथ खाया। इस बीच दोनों की आपस में कई बार बहस हुई कभी सब्जी को काटने को लेकर तो कभी बनाने को लेकर।
शीतल ने सोने के लिए ज़मीन पर एक चादर बिछाई। उसके पास दो चादर थीं एक वो ओढती थी,एक बिछाती।
उसने राज के लिए एक चादर बिछा दी थी और दूसरी उसे ओढ़ने के लिए दे दी। वो खुद अपने दुपट्टे को ज़मीन पर बिछा कर लेट गयी। वो किन हालत में जी रही थी इसका अंदाज़ा लगाना राज के लिए कठिन नही था।
राज ने शीतल को अपने पास लेटने के लिए कहा। पहले तो शीतल कुछ हिचकिचाई फिर उसी चादर पर वो भी लेट गयी,राज के हाथ को तकिया बना कर।
“तुम इतनी ग़रीबी में यहाँ जी कैसे रही हो?” राज ने पूछा।
“हम दोनों ऐसी जिंदगी पहले भी जी चुके हैं।”
“तब मजबूरी थी,आज कौन सी मजबूरी है?”
“कोई नही।”
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