RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“फिर क्यों?”
“बस ऐसे ही।”
“पागल हो,जो दिल में आया वो करने लगती हो।”
“हाँ,” शीतल ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा।
“तुमने दिल्ली क्यों छोड़ा?”
“तुमसे दूर होने के लिए।”
“फिर मुझे पास क्यों बुलाया?”
“मजबूरी थी,कुछ पैसों की,कुछ दिल की।”
“अब भी मुझसे प्यार है।”
शीतल ने कुछ नही बोला। लेकिन कहना तो चाहती थी-“मैं तुमसे बेपनाह प्यार करती हूँ। जितना डूब कर तुमने मुझसे प्यार किया है उतना ही मैंने भी तुमसे। पूरी तरह से टूट कर चाहा है तुम्हें,मेरे शरीर के हर रोएँ में बस तुम ही बसते हो। "पर अफ़सोस की उसके ये शब्द उसके दिल तक ही सीमित रह गये ज़ुबान से वो कुछ भी नही कह सकी।
“बोलो,क्या अब भी तुम मुझसे प्यार करती हो?”
“हाँ,…………………क्यों कि तुम बहुत अच्छे हो। कितना भी दुख हो पर तुम्हारे करीब होती हूँ तो सब भूल जाती हूँ,मैं खुद को तुम्हारे साथ सुरक्षित महसूस करती हूँ। बहुत दोस्त बने कोई अच्छा तो कोई बुरा पर तुम जैसा मुझे कोई ना मिला। खुद से ज़्यादा भरोसा है तुम पर,दुनिया में अगर किसी को दिल से पाना चाहा है तो सिर्फ़ तुम्हे। मेरे लिए एक पल भी तुम्हारे बिना रहना बहुत मुश्किल है,राज। मैं जय के साथ घूमती ज़रूर थी पर हर पल तुम्हारे बारे में सोचती थी कि काश तुम मेरे साथ होते,मुझे तुम्हारी खुशी चाहिए और कुछ भी नही। मैंने तुम्हे भी इसीलिए छोड़ा ताकि तुम अपने घर वापस लौट जाओ। जिंदगी के गम भुलाने के लिए गौरी की जिंदगी तुम्हारे साथ जोड़ दी……,” शीतल की आँख से आँसू बहने लगे,राज की आँखें भी भर आई थी।
“मैं घर वापस नही गया,मुझे आज भी तुम्हारे वापस लौटने का इंतजार है,” राज ने कहते हुए शीतल के माथे को चूम लिया। शीतल कुछ नही बोली। दोनों बाते करते-करते सो गये। उन्हे सोए हुए कुछ घंटे के बाद शीतल बार-बार करवटें बदलती कई बार उठ कर बैठ जाती फिर सो जाती उसके पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था। दर्द बढ़ता ही जा रहा था।
“राज,बहुत दर्द हो रहा है,” शीतल ने राज को उठाते हुए कहा।
“क्या हुआ शीतल?क्या दर्द हो रहा?”
“पेट में,बहुत तेज दर्द हो रहा,राज कुछ करो मैं बर्दाश्त नही कर सकती हूँ।”
“शीतल कुछ नही होगा,हम हॉस्पिटल चलते हैं।”
“हॉस्पिटल दूर है और मुझे कहीं नही जाना।वहाँ पेनकिलर रखी है मुझे दे दो,” शीतल ने इशारा करते हुए कहा।
राज ने उसे दवा दी। शीतल की आँखों से दर्द के कारण आँसू बहे जा रहे थे वो बच्चों की तरह रो रही थी। राज उसे खुद से लिपटाकर चुप कराने की कोशिश कर रहा था,उसे दर्द बर्दाश्त करने का हिम्मत दे रहा था। उसने उसे कस कर अपनी बाहों में ज़कड़ रखा था। शीतल की सांस बहुत तेज चल रही थी।
“राज अभी भी दर्द हो रहा,मुझ से नही सहा जा रहा है,ठंड भी लग रही है,” शीतल बड़ी मुश्किल से बोल पाई। रोने की वजह से उसकी आवाज़ साफ नही निकल रही थी।
राज ने अपना कोट उसे ओढा दिया,उसके उपर से चादर और फिर उसे खुद से पहले की तरह लिपटाकर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा जैसे की बच्चों का दर्द कम करने के लिए किया जाता है। राज के लिए शीतल किसी बच्ची से कम नही थी , जितने नखरे उसकी बेटी नही दिखाती थी उससे ज़यादा शीतल दिखाती थी। थोड़ी देर में शीतल को नींद आ गयी। राज ने उसे खुद से अलग किया और उसे लिटा दिया। शीतल को अभी भी हल्की-हल्की ठंड लग रही थी,उसे हल्का बुखार भी था। राज उसके पैर के तलवों को रगड़ने लगा जिससे उसे ठंड कम लगे। कुछ देर ऐसा करने के बाद वो शीतल की ओर मुँह करके बगल में लेट गया।
सुबह दोनों देर से उठे,पहले शीतल की आँख खुली,वो उठने लगी तो राज भी जाग गया।
“अब ठीक हो?” राज ने अपनी आँख मलते हुए पूछा।
“हाँ,” शीतल ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।
“दर्द क्यों हो रहा था?”
“अभी सो कर उठे हैं……। थोड़ी देर बाद बात करते हैं।”
राज शांत हो गया।
2 घंटे बाद शीतल राज को चाय पकड़ाते हुए बोली-“कुछ कह रहे थे। ”
“दर्द पहली बार हो रहा था या पहले भी हो चुका है।”
“पहले भी हो चुका है,………। दवा ली है , कल रात को खाना भूल गयी इसीलिए होने लगा।”
“हो क्यों रहा था?”
“बच्चा गिर गया था ,तब से कभी भी दर्द होने लगता है।”
“तुमने किसी अच्छे डॉक्टर को नही दिखाया।”
“सरकारी अस्तपाल में दिखाया है,बोल रहे थे की ऑपरेशन करना पड़ेगा।”
“तो तुमने ऑपरेशन क्यों नही कराया?तुम पागल हो गयी हो। क्या कर रही हो ?अपनी जिंदगी के साथ?” राज ने थोड़ा गुस्से से कहा।
“मुझे ऑपरेशन नही कराना है…………। मैं दवा से ठीक हो जाऊंगी।”
“पागल मत बनो,……चलो मेरे साथ किसी अच्छे डॉक्टर के पास।”
“रहने दो,मुझे कहीं नही जाना।”
“मुझे कुछ नही सुनना है,तुम मेरे साथ चल रही हो।”
“क्यों मेरे पीछे पड़े हो?मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।”
“मुझे तुम्हारी कोई भी बात नही सुननी है,तुम अपनी मनमानी कर चुकी अब जैसा मैं कह रहा हूँ वो करो।”
“तुम चले जाओ,मैं जैसी भी हूँ ठीक हूँ।”
|