RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“मेरे साथ चलो।”
“नही चलना मुझे।”
राज शीतल का हाथ पकड़ के उसे घसीटते हुए बाहर लाया,बोला-“कैसे नही चलोगी?हर समय तुम्हारी मनमानी नही चलेगी।” राज ने बड़े ही गुस्से में कहा। शीतल कुछ नही बोल पाई। चुप-चाप गाड़ी में बैठ गयी।
रास्ते में दोनों ने एक-दूसरे से कोई बात नही की। राज ने एक-दो बार बात करने की कोशिश की लेकिन शीतल नही बोली।
डॉक्टर ने शीतल को कुछ टेस्ट करने को कहा।
रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर बोली-“आपका ऑपरेशन करने की अब कोई ज़रूरत नही है,मैं दवा लिख देती हूँ आपको आराम मिल जाएगा। ”
शीतल ने राज की ओर देखा जैसे कहने जा रही हो की अब कराओ ऑपरेशन,राज ने शीतल से अपनी नज़रें हटा ली। उसका शीतल पर गुस्सा करना बेकार था।
हॉस्पिटल से लौटते समय शीतल बोली-“क्या हुआ? अब नही कराना ऑपरेशन। ”
राज ने ऐसे जताया जैसे उसने बात सुनी ही नही।
“एक बार ऑपरेशन करा चुकी हूँ।”
“फिर मुझे बताया क्यों नही?”
“बस ऐसे ही।”
राज ने गाड़ी एक शॉपिंग माल के सामने रोकी।
“यहाँ किस लिए?” शीतल ने पूछा।
“तुम अपने लिए कुछ कपड़े ले लो।”
शॉपिंग करने के बाद दोनों किसी होटल में गये,वहाँ खाना खाया फिर ताजमहल देखने गये,उन्होने पूरा आगरा घूमा और करीब रात 9 बजे वो वापस लौटे।
शीतल गाड़ी में ही सो गयी थी,राज ने उसे जगाया नही,वो उसे अपनी गोद में उठा कर घर के अंदर लाया और लिटा दिया। आज शीतल अच्छी लग रही थी। राज कुछ देर तक उसे ही देखता रहा फिर उसने शीतल के माथे को चूमा और खुद वहीं उसके बगल में लेट गया।
सुबह जब राज वहाँ से जाने लगा तो उसकी हिम्मत नही हो रही थी की एक बार शीतल से पूछ ले कि क्या वो उसके साथ चलेगी?जानता था शीतल कभी हाँ नही कहेगी।
“क्या हुआ?तुम बहुत खोए हुए हो,” शीतल ने पूछा।
“कुछ नही…।”
“कुछ तो………मुझे छोड़ कर जाने का दिल नही कर रहा है,” शीतल ने कहा।
“गौरी के दिल में छेद है…………उसे देखभाल की बहुत ज़रूरत है।”
“तुम हो ना उसके लिए।”
“शीतल मुझसे नही होता,…………………। मैं हर पल उसके साथ नही रह सकता हूँ…………………। मेरे साथ चलो उसे उसकी माँ चाहिए।”
“मुझे इतना कमजोर मत करो कि मैं तुम्हारे बिना टूट जाऊँ……………।”
राज ने अपने आँसू को छिपाते हुए कहा-“कमजोर तो मैं हो गया हूँ तुम्हारे बिना,अगर गौरी ना होती तो कब का खुद को ख़त्म कर लिया होता।”
“हमारी किस्मत में मिलन से ज़्यादा जुदाई लिखी है………। तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?”
“शीतल,अब तुम यहाँ से कहीं और नही जाओगी और मुझसे वादा करो की तुम्हें कोई भी तकलीफ़ होगी तो तुम मुझे बोल दोगी,” राज ने शीतल से कहा और उसे अपना डेबिट कार्ड दे दिया। “इसे रख लो तुम्हारे काम आएगा। ”
शीतल मना तो करना चाहती थी पर राज को मना नही कर सकी। राज वापस अपने घर लौट आया। कुछ दिन तक तो शीतल के बारे में ही सोचता रहा फिर धीरे-धीरे गौरी की वजह से खुश रहने लगा। वो अब अपने काम पर ध्यान कम और गौरी पर ज़्यादा देता, उसे ज़रा भी तकलीफ़ होती तो वो परेशान हो उठता था। आगरा से वापस लौटे हुए 10 दिन हो गये थे लेकिन राज ने एक भी दिन शीतल को फोन नही किया ना ही कभी शीतल ने।
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