06-08-2020, 12:13 PM,
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hotaks
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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
राज और गौरी एक-दूसरे के साथ खेल रहे थे तभी किसी ने डोरबेल बजाई,गौरी जल्दी से भागती हुई गयी और दरवाजा खोला। राज भी उसके पीछे-पीछे दरवाजे तक आ गया। दरवाजे पर शीतल खड़ी थी। गौरी उसे देखती ही चिल्ला पड़ी-“पापा,पागल आई पागल………”
शीतल आश्चर्य से गौरी की ओर देखने लगी उसे हँसी भी आ गयी आख़िर गौरी उसे पागल क्यों कह रही है। राज भी गौरी की बात पर हँस दिया।
शीतल ने झुक कर गौरी को गोद में उठा लिया और पूछा-“मुझे पागल क्यों कहा?”
“मैंने आपकी फोटो देखी है,पापा,हर रोज मुझे आपकी फोटो दिखाते हैं और कहते है कि ये पागल की फोटो है,” गौरी ने कहा।
शीतल राज की ओर देखने लगी,बोली-“राज,इसे क्या सिखाया है?”दोनों एक साथ हँस दिए।
“हमेशा के लिए आई हो,”राज ने पूछा।
“हाँ,” शीतल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और अंदर आ गयी।
दिन भर घर में चहल-पहल बनी रही। गौरी की वजह से शीतल और राज आपस में बैठ कर बात नही कर सके। रात को गौरी के सोने के बाद दोनों छत पर बैठ कर बात करने लगे। शीतल राज की बाहों बाहें डालकर बैठी थी,उसके कंधे पर सिर रख कर।
“तुम आज इतनी सुंदर क्यों लग रही हो,” राज ने बोला।
“यहाँ आने से पहले पार्लर गयी थी,” शीतल ने कहा और खिलखिलाकर हँस दी।
“वापस आना था तो उसे दिन मेरे साथ क्यों नही आई?”
“खुद को पहले जैसा निखारना भी तो था,” शीतल ने कहा।
आज सच में दोनो खुश थे,उनको आज कोई भी गम नही था।
“तुम अभी आगे पढ़ाई करोगी?”
“हाँ,पढ़ाई पूरी करूँगी और साथ ही आई.ए.एस. की तैयारी भी।”
“अच्छा है,……………………। पर अगर फिर चली गयी तो।”
“नही जाऊँगी…………।”
“झूठी हो।”
“सच्ची-मुच्ची नही जाऊँगी,” शीतल ने बच्चों की तरह बोला।
“पक्का……………………वादा।”
“वादा……वादा………। वादा…………,” कहते हुए शीतल ने राज के गाल को हल्का-सा चूम लिया।
“बहुत बड़ी पागल हो,” राज ने कहा और खुद हट गया जिससे शीतल गिर गयी,शीतल राज के सहारे बैठी थी।
“आह,क्या हुआ?मुझे गिराया क्यों?”
“बस यूँ ही दिल कर रहा था।”
शीतल रोने का नाटक करने लगी,राज ने उसे उठा कर खुद से लिपटा लिया,शीतल उसकी इस हरकत पर बहुत ज़ोर से हँसी।
“तुमने मुझसे कहा था कि तुम किसी और से प्यार करती हो,कौन है वो?”राज ने पूछा।
“तुम्हारे लिए कहा था,जब से हमने शादी की है तभी से तुम्हे प्यार करती हूँ पर तुम कभी समझ ही नही पाए।”
“तुम इतना लड़ती ही थी और कुछ जय की वजह से नही लगा।”
“मैं मान भी तो जाती थी।”
“बस यही अच्छा लगता था,तुम कितना भी गुस्सा हो शांत होने पर सब भूल जाती थी।”
“और तुम हमेशा मुझे माफ़ कर देते।”
“तुम हो ही ऐसी कि......... ।”
“कैसी?”
“पागल।”
शीतल हल्का-सा मुस्कुरा दी।
“मैंने कुछ लिखा है हम दोनों के लिए,” शीतल ने कहा।
“क्या?”
“कभी तुम थे खफा,
तो कभी हम थे जुदा।
कभी तुम रूठे,
तो कभी हम रूठे।
लाख लिखीं मुक़द्दर ने जुदाई,
मगर हम फिर भी मिले।
क्योंकि,हम दोनों के दरमियाँ,
बस इतनी थी दूरियाँ । ”
***********The End**************
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