RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
कमरे के अन्दर घुसते ही उसने मुझे पलंग पर पटक दिया—दरवाजा बंद करने के बाद पलटती हुई गुर्राई—"क्यों रे, कहां मरा पड़ा रहा एक महीने तक?"
मैं चुपचाप उसे देखता रहा।
वह एकदम मेरे करीब आ धमकी और बोली— "जवाब क्यों नहीं देता, कुछ होश भी है कि इस एक महीने में तेरी क्या हालत हो गई?"
"मुझे तेरी हरकतें बिल्कुल पसंद नहीं हैं, अलका।"
"हरकतें तू करता है या मैं?"
"मेरे कमरे में आकर तू इस तरह दरवाजा बन्द कर लेती है।" भिन्नाकर मैंने कहा—"क्या जानती है कि तेरी इस हरकत की वजह से मौहल्ले वाले क्या—क्या बकवास करते हैं?"
"हुंह.....करते रहें, अलका किसी साले की परवाह नहीं करती।" मुंह बनाती हुई अलका ने लापरवाही के साथ कहा। फिर अचानक रोमांटिक अंदाज में बोली— "और इससे ज्यादा कहते भी क्या होंगे कि अलका इस छाकटे की दीवानी है—मुहब्बत करती है मिक्की से—भला इसमें गलत क्या है?"
"वे कहते हैं कि तू मेरी रखैल है, कमरा बन्द करके हम.....।"
"मैं सब जानती हूं—कौन क्या कहता है?" मेरी बात बीच में ही काटकर वह बोल उठी—"बस ये बता कि क्या वे लोग ठीक कहते हैं, क्या कमरा बन्द करके हम यहां कभी पत्नी-पत्नी की तरह रहे हैं?"
"न.....नहीं।"
"क्या तू भी मुझे अपनी रखैल समझता है?"
"न.....नहीं अगर....मगर कुछ नहीं—मुझे दुनिया से क्या, लोग चाहे जो बकते रहें—“ मेरा तो बस तू है—और यदि तूने मुझे कभी कोई गलत बात कही तो मुंह नोच लूंगी।"
"मैं कौन हूं तेरा?"
"हुंह।" उसने मेरे सिर पर चपत मारते हुए पूरी तरह बेबाक अंदाज में कहा— "कितनी बार बताना पड़ेगा कि तू मेरा दिलबर है, जॉनी है मेरा—तू मेरे दिल का राजा है छाकटे, तेरी ही गुलाम हूं मैं।"
"कितनी बार कहूं कि ये सब बकवास है—मैं तुझसे प्यार नहीं करता।"
"मैंने कब कहा कि तुझे मुझसे प्यार है?"
"तो फिर तेरी इस एकतरफा तोता रटंत से फायदा?"
"अरे फायदा तेरी मोटी अक्ल में कहां आएगा छाकटे?" आदत के मुताबिक एक बार फिर उसने मेरे सिर पर चपत मारकर झटके से कहा और अनपढ़ अलका के इस जवाब पर मैं उसे देखता रह गया। समझ में नहीं आया कि उससे कैसे पीछा छुड़ाऊं, बोला— "मेरा ख्याल छोड़कर तुझे किसी भले लड़के से शादी कर लेनी चाहिए।"
"क.....क्या—ये तूने क्या बका रे छाकटे?" अलका ने झपटकर दोनों हाथों से मेरा गिरेबान पकड़ लिया—"तेरा हर सितम मंजूर है, मगर ये बात नहीं—किसी और की तो अब अलका कल्पना भी नहीं कर सकती, अगर फिर कभी ऐसा कहा, तो तेरी कसम, गर्म चिमटे से जुबान खींचकर रख दूंगी।"
"मैं कोई गलत बात नहीं कह.....।"
उसने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया। अचानक पूरी तरह गम्भीर नजर आने लगी वह—उस वक्त अलका का समूचा चेहरा जाने किन-किन जज्बातों से घिरा बुरी तरह तमतमा रहा था—पहली बार मैंने उसकी आंखों में आंसू तैरते देखे। मैं उसे देखता रह गया—हमेशा चहकती रहने वाली अलका की मुद्रा ने मेरे दिलो-दिमाग तक को झंझोड़ ड़ाला था। बेहद नर्म स्वर में कहा उसने—"हाथ जोड़कर तुझसे प्रार्थना करती हूं, मेरे चांद—कुछ भी कह ले, मगर ऐसी गाली न दे—तेरे अलावा किसी के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती, मेरी ये एक बात तो मान लो, मिक्की।"
मैं अवाक रह गया।
सच्चाई ये है कि अलका के उस पागलपन पर झुंझला उठा मैं। जाने क्यों इस बात को और ज्यादा बढ़ाने में मुझे डर लगा। अतः विषय बदलने की गर्ज से बोला—"तूने मकान मालिक को कल पैसे देने का वादा क्यों कर लिया?"
"जब वह किराए के लिए पागल हुआ जा रहा था तो और क्या करती?"
"म.....मगर कल पैसे कहां से देगी तू?"
"अरे वाह, तूने क्या मुझे भी खुद की तरह भुक्कड़ समझ रखा है—कमाती हूं, बैंक में डेढ़ हजार रुपये जमा कर रखे हैं मैंने।"
"तो क्या लोगों को पानी पिलाकर तू इतना कमा लेती है?"
"लालकिले पर खड़ी होती हूं—एक मिनट के लिए भी हाथ नहीं रुकता, इसीलिए तो कहती हूं कि तू भी कोई अच्छी-सी जगह देख ले, मशीन मैं दिला दूंगी, कुछ नहीं रखा इस चोरी-चकारी और मवालियों वाली जिन्दगी में—आराम से लोगों को पानी पिला और खुद फर्स्ट क्लास रोटी खा।"
"मैं ये कहना चाहता था कि तू मकान मालिक को पैसे नहीं देगी।"
"क्यों?" उसने आंखें निकालीं।
|