RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"यदि आप यहां से चले जाएं तो मुझ पर बड़ी मेहरबानी होगी।" सुरेश के इन शब्दों ने मेरे दिल को छलनी कर दिया—उसका हर नौकर भले ही मुझसे नफरत करता था, हिकारत भरी नजर से देखता था मगर आज.....आज वह पहला मौका था जब उसने अपमान किया—हालांकि मुझे पहले ही शक था कि वह भी मेरे लिए अपने दिल में वैसे ही भाव रखता है, जैसे नौकरों के हैं और मुझे सम्मान देने, इज्जत करने का सिर्फ नाटक करता है मगर वह इतना खूबसूरत नाटक करता था कि मेरा शक कभी विश्वास में न बदल सका।
मगर आज।
खुले अंदाज में मेरा अपमान करके.....खैरात में मिले उस महल से निकल जाने के लिए कहकर उसने साबित कर दिया कि मेरा शक
सही था।
ताजमहल की डमी-सी नजर आने वाले उस महल से जब बाहर निकला तो मेरी झोली, दिलो-दिमाग और जिस्म का जर्रा-जर्रा अपमान से भरा था।
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रात के दो बजे हैं।
अपने कमरे में बैठा मैं ये डायरी लिख रहा हूं।
इस वक्त भी मेरा रोम-रोम अपमान की उस आग में सुलग रहा है जिसका सामना आज पहली बार खुलकर करना पड़ा—मैं सबके द्वारा किया गया अपमान सह गया, मगर जाने क्यों सुरेश द्वारा किए गए अपमान को जज्ब नहीं कर पा रहा हूं।
उफ..... उसका 'अपनी' कोठी से निकल जाने के लिए कहना।
ईश्वर ऐसा मनहूस मंजर किसी को न दिखाए।
वहां से सीधा अपने कमरे में आया.....आते ही यह डायरी लिखनी शुरू कर दी—मुझे नहीं मालूम कि कितने पेज लिख चुका हूं। बस इतना जानता हूं कि अब यह डायरी 'अंत' पर है।
मेरी तरह।
हां।
मैं मरने का फैसला कर चुका हूं।
आप इसे आत्महत्या कहेंगे, क्योंकि मैं खुद मर रहा हूं, मगर मेरी नजरों में यह आत्महत्या नहीं, हत्या है।
हत्यारा है सुरेश।
साफ शब्दों में लिख रहा हूं कि मेरी मौत का जिम्मेदार सुरेश है।
आज मैं कर्जे से इस कदर घिरा हूं कि न इस कमरे में रह सकता हूं, न सड़क पर घूम-फिर सकता हूं—अदालत में इतने केस चल रहे हैं कि लगभग रोज नसीब विफल कर देता है—हर तरफ अपमान, जिल्लत, बेइज्जती, हिकारत और नफरत-भरी नजरें।
जीकर करूं भी क्या?
मेरे चारों ओर इन सब हालातों को इकट्ठा करने वाला सुरेश है। यह सब उसने कैसे किया.....वह मैं विस्तार से लिख चुका हूं। शुरू में मदद की, पैसा देकर मेरी जरूरतें बढ़ाईं और फिर पैसा देना बंद कर दिया।
ऐसे हालातों में जीऊं भी तो कैसे?
अपनी पूरी जिन्दगी में मुझे दो बेवकूफों से प्यार मिला है।
हां, मैं उन्हें बेवकूफ ही कहूंगा।
पहली अलका.....दूसरा रहटू।
सिर्फ इन दोनों को मेरी मौत का दुःख होगा, मगर इन दोनों मूर्खों को मेरी अंतिम सलाह ये है कि किसी को सोच-समझकर प्यार किया करें—प्यार इंसानों से किया जाता हैं, जानवरों से नहीं।
मैंने मरने का सारा इंतजाम कर लिया है, बल्कि अगर यह लिखूं तो गलत न होगा कि पूरी योजना तैयार कर चुका हूं—अपनी आदत के मुताबिक अंतिम क्षणों में योजना को अच्छी तरह ठोक-बजाकर भी देखूंगा।
फिर भी डरता हूं कि हमेशा की तरह मेरा दुश्मन इस अंतिम प्रयास में भी मुझे विफल न कर दे, मगर नसीब के डर से मैंने कभी, अपनी किसी योजना को कार्यान्वित करने में कोताही नहीं बरती।
आज भी नहीं बरतूंगा।
बचपन से आज तक मेरा नसीब मुझे हराता चला आया है, मगर इसके सामने मैंने कभी घुटने नहीं टेके—टकराया हूं—आज भी नहीं टेकूंगा, हमेशा की तरह इस बार भी मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने दुश्मन को शिकस्त दूंगा।
जिन लोगों का कर्ज न दे सका, उनसे माफी चाहता हूं।
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