RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
डायरी पढ़ने के बाद सब-इंस्पेक्टर शशिकान्त ने एक नजर लाश पर डाली—कमरे की छत के बीचों-बीच शायद सीलिंग फैन लगाने के लिए लोहे का कुन्दा लगाया गया था, मगर इस वक्त उसमें पंखा नहीं, एक रस्सी लटक रही थी।
रस्सी के निचले सिरे पर फंदे में मुकेश की लाश।
लाश के मुंह पर एक कपड़ा बंधा था, जो इस वक्त ढीला था, मुंह में ठुंसी ढेर सारी रुई का छोटा-सा हिस्सा नजर आ रहा था।
गले की नसें फंदे के कसाव के कारण फूली हुई थीं।
चेहरा पीला जर्द और निस्तेज।
पलकों के किनारों पर आंखें इस कदर लटकी हुई थीं जैसे यदि लाश को जरा भी हिलाया-डुलाया गया तो 'पट्ट' से जमीन पर गिर पड़ेंगी।
फर्श पर एक स्टूल लुढ़का पड़ा था।
कमरे में मौजूद एकमात्र चारपाई की 'अदवायन' गायब थी, बल्कि यूं कहना ज्यादा उचित होगा कि 'अदवायन' लोहे के कुन्दे और लाश की गर्दन के बीच नजर आ रही थी।
जाने कहां से आकर लाश पर कई मक्खियां भिनभिनाने लगीं।
कमरे के अंदर दो कांस्टेबलों और शशिकान्त के अलावा कोई न था—हां, बाहर गली में जरूर हजूम इकट्ठा हो गया था।
मात्र एक व्यक्ति के रोने के आवाज गली से यहां तक आ रही थी और सब-इंस्पेक्टर शशिकान्त जानता था कि यह आवाज अलका की है।
बाहर तीन पुलिसमैन लोगों को कमरे में घुसने से रोकने के लिए तैनात थे और नजरों ही से लाश का निरीक्षण करने के बाद शशिकान्त एक कांस्टेबल से कुछ कहना चाहता था कि चांदनी चौक थाने के इंचार्ज इंस्पेक्टर महेश विश्वास ने कमरे में कदम रखा।
कांस्टेबलों सहित शशिकान्त ने सैल्यूट किया।
महेश विश्वास के साथ पुलिस फोटोग्राफर और फिंगर प्रिन्ट एक्सपर्ट भी थे—कमरे में पहुंचते ही सबकी नजरें लाश पर ठहर गईं।
कुछ देर बाद।
फिंगर प्रिन्ट्स विशेषज्ञ और फोटोग्राफर अपने-अपने काम में मशगूल हो गए। महेश विश्वास ने शशिकान्त से पूछा—"कोई खास बात?"
"चारपाई से यह डायरी और एक पैन मिला है, सर।"
शशिकान्त ने रुमाल से पकड़ी डायरी दिखाते हुए बताया।
"पैन कहां है?"
"चारपाई पर ही पड़ा है, सर।" शशिकान्त ने इशारा किया—"उसे मैंने छेड़ा नहीं है, डायरी उठाने और पढ़ने में भी मैंने सावधानी बरती है कि फिंगर प्रिन्ट्स न मिट पाएं।"
"कोई सुसाइड़ नोट लिखा है?"
"काफी लम्बा है सर।"
फिंगर प्रिन्ट्स एक्सपर्ट को डायरी और पैन से उंगलियों के निशान लेने के हुक्म देने के बाद महेश विश्वास ने सवाल किया—"क्या लिखा है?"
"यूं नोट तो बहुत लम्बा है, सर, स्वयं पढ़ने से ही आप सबकुछ समझ पाएंगे, लब्बो-लुआब ये है कि मकतूल ने आत्महत्या की बात को कबूल करते हुए जिम्मेदार अपने भाई सुरेश को ठहराया है।"
"क्या मतलब?" महेश विश्वास चौंका।
शशिकान्त ने डायरी में लिखीं बातों का सारांश इंस्पेक्टर को बता दिया, सुनने के बाद महेश विश्वास ने पूछा—"क्या सुरेश का पता कोई जानता है?"
"जी हां—प्रत्येक केस में वही मिक्की की जमानत कराता था, अतः थाने के रजिस्टर में उसका पता दर्ज है।"
महेश विश्वास ने एक कांस्टेबल से कहा— "तुम थाने जाओ, रजिस्टर से इसके भाई का 'एड्रेस' लो और उसे तुरन्त यहां लेकर आओ।"
"ऑलराइट सर।" कहने के बाद कांस्टेबल ने एड़ियां बजाईं और बाहर निकल गया। महेश विश्वास ने कहा— "अब तक की कार्यवाही का संक्षेप में विवरण दो।"
"करीब साठ मिनट पहले मौहल्ले के एक व्यक्ति ने थाने फोन करके वारदात की सूचना दी—जब हम यहां पहुंचे, तब गली में जबरदस्त भीड़ थी—पता लगा कि अलका के काफी खटखटाने.....।"
"कौन अलका?"
"इस मकान के सामने वाले मकान में किराए का एक कमरा लेकर रहती है, सर लालकिले पर लोगों को पानी पिलाती है।"
"उसने मिक्की के कमरे का दरवाजा क्यों खटखटाया?"
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