RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"आत्महत्या के लिए तैयार की गई मिक्की की स्कीम से जाहिर कि वह इस मनोविज्ञान से वाकिफ था, उसने इस बात के कड़े इन्तजाम कर लिए कि अन्तिम समय में कोशिश के बावजूद अपने-आपको न बचा सके।"
"इस बार वह अपने नसीब को शिकस्त देने में कामयाब हो ही गया सर।"
"शायद यही होना था, ऐसे बदमाशों का अन्त यही होता है शशिकान्त—या तो वे अपने चारों ओर खुद पैदा किए गए हालातों से घबराकर आत्महत्या कर लेते हैं अथवा इन्हीं का कोई संगी-सीधा इनका कत्ल कर देता है।"
शशिकान्त ने वह सवाल किया जिसका जवाब जानने की जिज्ञासा डायरी पढ़ने के बाद से ही उसे थी—"क्या इसके भाई पर कोई केस बनता है सर?"
"शायद नहीं।"
"म.....मगर क्यों नहीं सर?" शशिकान्त ने पूछा—"मिक्की ने डायरी में बिल्कुल साफ-साफ लिखा है कि मौत का जिम्मेदार सुरेश है।"
"इस आधार पर सिर्फ केस चल सकता है, मगर उससे कुछ होगा नहीं।"
"क्यों?"
"जिस घटना और जिन विचारों को लेकर मकतूल ने अपनी मौत की जिम्मेदारी सुरेश पर डाली है, वे दमदार नहीं हैं—सुरेश का उसे पैसा देने से इन्कार करना कोई जुर्म नहीं है, क्योंकि मकतूल का उस पर कुछ चाहिए नहीं था।"
"उस लॉजिक को कैसे भूला जा सकता है सर, जो मिक्की ने स्वयं डायरी में लिखा है, यह कि शुरू में सुरेश पैसा देकर उसकी जरूरतें बढ़ाता रहा और जब जरूरतें नाक तक पहुंच गईं तो पैसा देना बन्द कर दिया—एक तरफ वह मिक्की की जमानत कराता है, दूसरी तरफ अपने घर में अपमान करता है, क्या ये सब बातें किसी को इस हद तक परेशान करने की गवाह नहीं हैं कि मजबूर होकर वह आत्महत्या कर ले?"
"बकवास।" महेश विश्वास बुरा-सा मुंह बनाकर बोला— "मकतूल के जीवन की हर घटना की पीछे सिर्फ और सिर्फ वह 'कुण्ठा' है जो उसने जानकीनाथ द्वारा सुरेश को गोद लिए जाने से स्वयं अपने दिमाग में पाल ली—उसके दिलो-दिमाग में यह बात जम गई कि नसीब उसका सबसे बड़ा दुश्मन है और जिसके दिमाग में यह बात बैठ जाए, वह अपने जीवन में कम ही सफल हो पाएगा—कुण्ठाग्रस्त होने की वजह से ही सुरेश का कोई दोष न होते हुए भी वह उससे डाह करने लगा—इस 'डाह' ने ही उसे गुण्डों की सोहबत में डाला, वह गुण्डा बन गया—मकतूल के चारों ओर जो हालात थे, वे सुरेश ने नहीं, खुद मिक्की ने पैदा किए, जब वह आत्महत्या कर रहा था, तब भी खुद को 'कुण्ठा' और सुरेश के प्रति 'डाह' से मुक्त नहीं कर पाया—इसी डाह से ग्रस्त होकर उसने अपनी मौत की जिम्मेदारी सुरेश पर डाली है—जो व्यक्ति सुरेश से ही नहीं बल्कि उसकी हर वस्तु से ईर्ष्या करता था, क्या उसके बारे में यह नहीं चाहेगा कि मुझे आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने के आरोप में बंधा-बंधा फिरे?"
"आप मकतूल के अन्तिम बयान पर शक रहे हैं, सर जबकि माना यह जाता है कि बुरे-से-बुरा व्यक्ति कम-से-कम मरते वक्त सच बोलता है।"
"हमने यह नहीं कहा कि उसने 'झूठ' लिखा है, बल्कि सिर्फ यह कि 'ठीक' नहीं लिखा।" महेश विश्वास ने कहा— "इसमें शक नहीं कि जब इंसान को यह मालूम हो कि जो कुछ वह लिख रहा है, उसके बाद मरने वाला है तो बेहद भावुक हो उठता है और भावुक व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ सच लिखता है, मगर यहां यह बात गौर करने वाली है शशिकान्त कि जो बात उसके नजरिए से 'ठीक' है, जरूरी नहीं कि 'ठीक' ही हो—मिक्की ने डायरी पूरी ईमानदारी से लिखी है क्योंकि इसमें सुरेश का पक्ष भी है, अगर लिखना चाहता तो यह भी लिख सकता था कि सुरेश ने ही मुझे साफ-साफ आत्महत्या करने के लिए कहा, मगर ऐसा उसने नहीं लिखा—सो जाहिर है कि उसने झूठ नहीं लिखा—अपनी मौत की जिम्मेदारी उसने सुरेश पर सिर्फ अपने नजरिए से डाली है और हम उस नजरिए से सहमत नहीं है, क्योंकि यह नजरिया एक 'कुण्ठाग्रस्त' व्यक्ति का उसके प्रति है, जिससे वह 'डाह' करता था।''
"यहां आकर तो बात उलझ गई, सर।" शशिकान्त ने कहा— "आप मिक्की के नजरिए से सहमत नहीं हैं किन्तु मुमकिन हैं कि मैं हूं।"
"यह तो तुम मानते हो न कि प्रत्येक हत्या के पीछे कोई वजह जरूर होती है?"
"यकीनन, सर।"
"अगर यह हत्या है, अगर सुरेश ने मिक्की को आत्महत्या के लिए विवश किया, तो क्या तुम बता सकते हो कि वह ऐसा किसलिए करेगा—मिक्की के मर जाने से उसे क्या लाभ होने वाला है?"
शशिकान्त बगलें झांकने लगा।
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