RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
गली इतनी संकरी थी कि उसमें मर्सड़ीज दाखिल नहीं हो सकती थी, अतः वर्दीधारी ड्राइवर ने गाड़ी गली के सिरे पर ही रोक दी।
कांस्टेबल के साथ सुरेश बाहर निकला।
इस वक्त उसके चेहरे पर हर तरफ वेदना-ही-वेदना थी, आंखें रह-रहकर भर आतीं और अपने जबड़े उसने सख्ती के साथ भींच रखे थे—साफ जाहिर था कि वह अन्दर से फूट पड़ने वाली रुलाई को रोकने का भरपूर प्रयत्न कर रहा था।
गली में लगी भीड़ को चीरते हुए वे आगे बढ़े।
मुकेश के कमरे के बाहर अलका के मार्मिक रूदन से सारी गली दहल रही थी—सुरेश ने देखा कि कुछ लोगों ने उसे पकड़ रखा है—मस्तक से बहता खून अलका के सारे चेहरे पर फैल चुका था—जाहिर था कि उसने अपना सिर पटक-पटककर दीवारों में मारा है।
तभी लोगों ने उसे पकड़ा होगा।
इस वक्त भी वह दहाड़े मार-मारकर रो रही थी—लोगों की गिरफ्त से निकलने के लिए बुरी तरह मचल रही थी वह—जाने क्या—क्या चीख रही थी।
उसकी हालत देखकर सुरेश की आंखें भर आईं, होंठ कांपे और शीघ्र ही अपने जबड़ों को भींचे वह आगे बढ़ गया—अभी मुकेश के दरवाजे से दूर ही था कि एक इंसान हवा में लहराता नजर आया।
सुरेश के चेहरे पर इतना जबरदस्त घूंसा पड़ा कि न सिर्फ हलक से चीख निकल गई, बल्कि यदि भीड़ ने न संभाल लिया होता तो वह गली में गिर जाता।
अभी सुरेश कुछ समझ भी न पाया था कि—कुल तीन फुट लम्बाई वाले ने बिजली की-सी गति से उछलकर उसके सीने पर फ्लाइंग किक मारी—सुरेश के कण्ठ से एक और चीख निकल गई।
इस बार वह गली में गिर गया।
तीसरा वार करने से पहले ही कांस्टेबल और मुहल्लेवासियों ने रहटू को दबोच लिया और उनके बंधनों से निकलने का असफल प्रयास करता हुआ रहटू हलक फाड़कर चिल्लाया—"छोड़ दो मुझे, मैं इसका खून पी जाऊंगा—इसी ने मिक्की को मारा है, ये हत्यारा है मेरे यार का।"
सुरेश खड़ा हुआ।
तीन फुटे पर नजर पड़ने के बाद उसे अपने कपड़ों से धूल तक झाड़ने का होश न रहा.....गुस्से से तमतमाए रहटू के चेहरे और अंगारा बनी उसकी आंखों पर नजर पड़ते ही सुरेश के समूचे जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
मौत की सिहरन।
लगा कि ये छोटे-से कद का व्यक्ति उसे कच्चा चबा जाएगा।
उसके पहले हमले से सुरेश का होंठ कट गया था, वहां से खून बह रहा था—रहटू को विचित्र निगाहों से देख रहा था वह—और तीन फुटा अब भी अपने उक्त शब्द दोहराता हुआ मुक्त होने की पुरजोर कोशिश कर रहा था।
रहटू के शब्द सुनकर अलका रोना भूल गई।
वह भी इधर ही देख रही थी।
शायद ठीक से अभी कुछ समझ भी न पाई थी कि कमरे के दरवाजे के प्रकट हुए शशिकान्त ने ऊंची आवाज में पूछा—"क्या बात है, क्या हो रहा है वहां?"
"रहटू मिस्टर सुरेश को मिक्की का हत्यारा बता रहा है, सर।" कांस्टेबल ने कहा— "इसने मिस्टर सुरेश पर हमला भी किया है।"
सन्नाटा छा गया।
सुरेश अब भी अजीब नजरों से उस तीन फुटे आफत के पुतले को देख रहा था कि शशिकान्त ने कहा— "रहटू को भी अंदर ले आओ।"
कांस्टेबल ने हुक्म का पालन किया।
सुरेश ने जेब से रूमाल निकाला, होंठों से बहता हुआ खून पोंछने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
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"खामोश!" इंस्पेक्टर महेश विश्वास इतनी जोर से दहाड़ा कि लगातार चीख रहे रहटू की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई—समूचा अस्तित्व कांप उठा उसका—चुपचाप, एकटक महेश विश्वास की ओर देखता रह गया।
"होश में आओ।" महेश विश्वास ने अपेक्षाकृत शांत स्वर में कहा— "और आदमी की तरह बताओ कि किस आधार पर मिस्टर सुरेश को हत्यारा कह रहे हो?"
"स.....साहब—ये आदमी उसका भाई नहीं दुश्मन है—भला ऐसा भी दुनिया में कोई भाई होगा जो खुद मौज उड़ाता रहे, बड़ा भाई कंगला बना घूमता रहे और छोटा उसकी मदद न करे?"
"मगर हमें पता लगा है कि मिस्टर सुरेश मिक्की की मदद करते थे। "
"वह पुरानी बात है साहब, मैं मिक्की का दोस्त हूं—वह अपने दिल की सारी बातें मुझे बताता था—करीब दो महीने पहले वह इससे दो हजार रुपये मांगने गया था, मगर इसने नहीं दिए, जबकि ये कमीना करोड़पति है, दो हजार की इसके लिए कोई अहमियत नहीं है।"
"हम ये पूछ रहे हैं कि तुम इन्हें मिक्की का हत्यारा क्यों कह रहे हो?"
"कल मिक्की बहुत परेशान था साहब.....वह अपनी घटिया और जुर्म से भरी जिन्दगी को छोड़कर शराफत और ईमानदारी की जिन्दगी अपनाना चाहता था—वह अलका से शादी करना चाहता था साहब।"
"फिर?"
"दिक्कत यह थी कि वह लोगों का कर्जमन्द था, कर्जमुक्त होने के लिए उसने अपने जीवन का अन्तिम गुनाह मानकर मेरठ में ठगी की, परन्तु पकड़ा गया—उस तरफ से निराश होने के बाद पूरी तरह निराशा में डूबा वह आत्महत्या की बात कर रहा था, यह उसकी आखिरी उम्मीद थी साहब, आज जब मेरे यार की लाश आंखों के सामने पड़ी है तो मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इस जलील आदमी ने मिक्की की मदद न की होगी—इसकी तरफ से निराश होने के बाद ही मिक्की ने आत्महत्या की है, अगर इसने दस हजार रुपये दे दिए होते तो मिक्की कभी न मरता।"
डायरी का कोई जिक्र न करते हुए महेश विश्वास ने सुरेश से कहा— "क्यों मिस्टर सुरेश, क्या रहटू ठीक कह रहा है?"
"जी हां।" अजीब से स्वर में एक झटके से कहने के बाद मुकेश की लाश की तरफ देखा, फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट्स विभाग का कार्य पूरा होने के बाद लाश को कुन्दे से उतारकर फर्श पर लिटा दिया गया था—चेहरे पर दर्द-ही-दर्द लिए वह लाश के समीप पहुंचा, घुटनों के बल उसके नजदीक बैठा और निरन्तर मिक्की के निस्तेज चेहरे की ओर देखता हुआ बोला— "ये आदमी ठीक कह रहा है इंस्पेक्टर, मिक्की का हत्यारा मैं ही हूं।"
"क.....क्या मतलब?" महेश विश्वास उछल पड़ा।
"कल ये मेरे पास दस हजार रुपये मांगने आए थे—वह सब भी कहा था जो रहटू कह रहा है, मगर मैंने सच नहीं माना, अपने ही नशे में रहा मैं—सोचता रहा कि मुझसे शराब और जुए के लिए दस हजार ठग रहे हैं.....मैंने इनकी एक न सुनी, जो सुनी उस पर यकीन न मानकर अपनी ही सोचों को सही माना—और न सिर्फ रुपये नहीं दिए, बल्कि अपने घर से निकल जाने के लिए भी कहा।"
"इसका अपमान क्यों किया आपने?"
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