FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:03 PM,
#22
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"अपनी यह लम्बी-चौड़ी सुदृढ़ और 'आला' योजना मैंने करीब पांच महीने पूर्व बनाई थी—बचपन में जानकीनाथ द्वारा सुरेश को गोद लिये जाने की वजह से मुझमें और सुरेश में आकाश के तारे और कीचड़ में पड़े कंकड़ जितना फर्क आ गया था—अक्सर यही सोच-सोचकर कुढ़ा करता था कि यदि जानकीनाथ ने मुझे गोद लिया होता तो आज मैं सुरेश की जगह होता और सुरेश मेरी जगह—यह जानते हुए भी कि इसमें सुरेश का कोई दोष नहीं है, उससे 'डाह' करता था, जबकि सच्चाई ये है कि वह मुझे प्यार नहीं करता था, बल्कि छोटा होने की वजह से आदर भी करता या—जरूरत पड़ने पर मैं उसके पास मदद के लिए जाता, उसने हमेशा मदद की.....कभी इंकार नहीं किया।"

"आज से दो महीने पहले भी नहीं?"

"नहीं।"

"क्या मतलब?"

रहस्यमयी मुस्कान के साथ उसने बताया—"उसने कभी इन्कार नहीं किया बल्कि मैंने ही अपने परिचितों में यह अफवाह फैलाई कि सुरेश ने मुझे यह कहते हुए दो हजार रुपये देने से इन्कार कर दिया है कि वह मुझे सुधारना चाहता है।"

हैरत से आंखें फाड़े अलका ने पूछा—"ऐसी अफवाह तुमने क्यों फैलाई?"

"क्योंकि यह अफवाह फैलाना ही मेरी स्कीम का पहला 'पग' था।"

"कौन-सी स्कीम?"

"पांच महीने पहले आदत के मुताबिक जब मैं अपने और सुरेश के फर्क की तुलना कर-करके कुढ़ रहा था तो दिमाग में यह बात आई कि कीमती कपड़े पहनकर, जेब में ट्रिपल फाइव का पैकेट और सोने का लाइटर रखकर मैं विदेशी कारों में क्यों नहीं घूम सकता, सुरेश क्यों नहीं बन सकता—लगा कि मैं बड़ी आसानी से सुरेश बन सकता हूं.....उस पासे को उलट सकता हूं जो जानकीनाथ से सुरेश को गोद लिए जाने की वजह से पड़ा था।"

अलका सांस रोके सुन रही थी।
“ धीरे-धीरे मेरे दिमाग में सारी स्कीम कौंध गई।" वह कहता चला गया—"और जो योजना बन रही थी, उसने स्वयं मुझे 'दंग' कर दिया—सोचने लगा कि यह 'आला' विचार आज से पहले मेरे दिमाग में क्यों नहीं आ गया था—मुझे कोई कमी नजर न आई—सुरेश बनने के लिए जो कमियां मुझमें थी, उन्हें दूर कर सकता था, अतः जुट गया।"
"कैसी कमियां?"
"वे जो मेरी और सुरेश की भिन्न परवरिश ने पैदा कर दी थीं—मैं साधारण कॉलेज में पढ़ा था जबकि वह 'कान्वेण्ट' में, मेरे और उसके बात-चीत के अन्दाज, लहजे और स्टाइल में बहुत बड़ा अन्तर था—अगर यूं कहा जाए तो गलत न होगा कि शारीरिक तौर पर भले ही हम एक थे, किन्तु मानसिक तौर पर बहुत फर्क आ गया था—इस मामले में मैं उससे बहुत पिछड़ गया था।"
"तो क्या वे सब कमियां तुमने दूर कर लीं?"
"पूरी तरह तो शायद मानसिक रूप से कभी सुरेश के स्तर तक न पहुंच सकूं, परन्तु उसकी इतनी नकल करने में स्वयं को दक्ष कर लिया है कि सामान्य अवस्था में उसका कोई भी परिचित नहीं ताड़ सकता कि मैं सुरेश नहीं हूं।"
"क्या मतलब?"
"आज मैं उसके अन्दाज, लहजे और स्टाइल में बात कर सकता हूं—सुरेश के ऐसे साइन बना सकता हूं—पांच महीने तक मैंने बड़ी बारीकी से सुरेश की हर एक्टीविटी नोट ही नहीं की, बल्कि उसे अपने अभिनय में उतारने में भी महारत हासिल कर ली—तुमने देखा ही है कि बहुत से लोगों के साथ-साथ मैंने पुलिस को भी धोखा दे दिया है, उन्हें गुमान तक न हो सका कि मैं सुरेश नहीं, मिक्की हूं।"
अलका अवाक्।
सबकुछ सुन रही थी वह, मगर मुंह से बोल न फूटा।
जबकि उसने आगे कहा— "सुरेश बनने के लिए उसका खात्मा करना जरूरी था और यदि दुनिया की नजरों में सुरेश मर जाता तो मैं सुरेश कैसे बन सकता था, अतः उसका खात्मा करने की स्कीम इस ढंग से बनाई कि लोग उसकी लाश को मिक्की की लाश समझें—तरीका एक ही था—यह.....कि मिक्की आत्महत्या कर ले और मेरी आत्महत्या पर लोग तभी यकीन मान सकते थे जब कोई ठोस वजह होती.....मुझ जैसे गुण्डे की आत्महत्या की वजह केवल पैसे की कमी ही हो सकती थी और वह मेरे पास नहीं थी—सभी परिचित जानते थे कि मैं जब जितने पैसे चाहूं सुरेश से ला सकता हूं सो—सबसे पहले यह अफवाई फैलाई कि सुरेश ने मुझे किसी भी किस्म की मदद देने से इन्कार कर दिया है—यह अफवाह फैलाने के बाद खुद को कर्ज में डुबोना शुरू किया—धीरे-धीरे अपने इर्द-गिर्द के लोगों से इतना कर्ज ले लिया, जितना ज्यादा-से-ज्यादा मिल सकता था—खुद को सिर तक कर्ज में डुबोने के बाद मेरठ में ठगी की योजना बनाई।"
"उस ठगी का इस योजना से क्या मतलब?"
वह इस तरह मुस्कराया जैसे अलका ने कोई बचकानी बाद कह दी हो, बोला— "यह 'एलिबाई' भी तो तैयार करनी थी कि मिक्की ने खुद को कर्ज से निकालने की कोशिश की।"
"क्या मतलब?"
"आत्महत्या पर लोग तभी यकीन मानते हैं, जब वजह बहुत पुख्ता हो.....कर्ज में घिरा व्यक्ति परेशान जरूर रहता है, मगर एकदम से आत्महत्या नहीं कर लेता—उसकी पहली और पुरजोर कोशिश खुद को कर्जमुक्त करने की होती है—आत्महत्या तब करता है, जब कर्जमुक्त होने की हर कोशिश में नाकाम हो जाए—अतः यह दर्शाना जुरूरी था कि मैंने ठगी से कर्जमुक्त होने की कोशिश की।"
"तो क्या बस में तुमने जान-बूझकर खुद को पकड़वाया?"
"यकीनन।" उसने रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा, "क्या मुझे मालूम नहीं था कि 'सीट पार्टनर' मेरी हरकत देख सकता है, मालूम था—वह देख ले, इसीलिए तो मैंने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और जब उसने टोका तो मैंने वो हरकत की कि बात का बतंगड़ बन जाए.....सो बन गया, मैं पकड़ा गया—यदि वहां न पकड़ा जाता तो आगे कहीं ऐसी हरकत करनी थी कि मैंने जान-बूझकर स्वयं को पकड़वाया है।"
"क्या तुम्हें उम्मीद थी कि सुरेश जमानत करा लेगा?"
"हमेशा कराता आया था तो इस मामले के क्यों नहीं कराता?" वह मुस्काराया—"मेरे और उसके बीच कोई झगड़ा थोड़े की हुआ था जो न कराता।"
"तो कोर्ट में ऐसा क्यों किया जैसे तुम सुरेश से नफरत करते हो, उसके वकील से जमानत नहीं कराना चाहते?"
"जो नाटक सुरेश के द्वारा दो हजार रुपये देने के इन्कार करने की अफवाह उड़ाकर शुरू कर चुका था, उसे 'प्रूव' करने के लिए—इस गुत्थी ने रहटू को भी चकरा दिया कि जब सुरेश ने मुझे रुपये देने से इन्कार कर दिया था तो जमानत क्यों कराई—सो, मैंने इस गुत्थी को सुलझाने तथा सुरेश से दस हजार रुपये मांगे जाने का जिक्र रहटू से किया।"
"क्यों?"
"ताकि मेरी आत्महत्या के बाद वह पुलिस को बताए कि 'मिक्की' बहुत परेशान था—अपने किसी प्रयास में उसे कामयाबी मिलने की उम्मीद न रही थी—कर्जमुक्त होने के लिए उसे सुरेश ही अन्तिम सहारा चमक रहा था—जब सुरेश ने भी मदद न की तो हर तरफ से निराश होने की वजह से उसने आत्महत्या कर ली—आत्महत्या के बाद उसके मुंह से यही सब पुलिस को बताए जाने के लिए मैंने ठेके में उससे बातें की थीं और यही सब उसने पुलिस से कहा था।"
"इस सबकी क्या जरूरत थी, डायरी में तो लिखना ही था?"
"डायरी में 'सच' लिखा है, इसके गवाह की भी तो जरूरत थी?" अपनी सफलता पर खुलकर मुस्कराते हुए उसने कहा।
"ठेके से तुम सीधे सुरेश बाबू से मिलने उनकी कोठी पर गए?"
"नहीं।"
"क.....क्या मतलब.....पुलिस तो कह रही थी?"
"पुलिस बेचारी तो वही कहेगी न जो मैंने अपनी डायरी में लिखा है।"
हैरत में डूबी अलका के मुंह से निकला—"मैं कुछ समझी नहीं।"
"सुसाइड नोट के रूप में छोड़ी अपनी डायरी के अनुसार मैं ठेके से सीधा सुरेश की कोठी पर गया, उससे झगड़ने, दस हजार रुपये मांगने और उसके इन्कार कर देने का मैंने पूरा वृत्तांत लिखा, परन्तु वह सिरे से झूठ है, ठीक उसी तरह जैसे उसका दो हजार रुपये देने से इन्कार करना झूठ था, मैं वहां गया ही नहीं—ठेके से सीधा कमरे में आकर डायरी तैयार करने लगा।"
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RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन - by desiaks - 06-13-2020, 01:03 PM

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