RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
सुरेश ने जेब से ट्रिपल फाइव का पैकेट और 'सोने का लाइटर निकालकर सिगरेट सुलगाते हुए कहा— "वह पति खुशनसीब होता है भइया जिसकी पत्नी, पति के एक रात गायब होने पर नाराज हो जाए क्योंकि यह नाराजगी इस बात का द्योतक होती है कि उसकी पत्नी उससे बहुत प्यार करती है।"
"क्या विनी तुझे प्यार नहीं करती?" मैंने जान-बूझकर उसके जख्म को कुरेदा, जाने क्यों यह अहसास मुझे सकून पहुंचाता था कि कोई दुख सुरेश को भी है और मेरे जज्बातों से पूरी तरह नावाकिफ कहीं खोया-सा बोला—"उसे क्लब, पार्टियों और गैरमर्दों के साथ डांस करने से फुर्सत मिले तो मेरे बारे में सोचे.....मेरे लौटने पर वह इतना तक पूछने वाली नहीं है कि रात-भर मैं कहां रहा, खैर छोड़ो—अपनी मुसीबत बताओ मिक्की भइया।"
"मेरे हाथ से एक खून हो गया है।"
"खू.....खून?" सुरेश के हलक से चीख निकल पड़ी, बुरी तरह चौंक पड़ा वह......सिगरेट फर्श पर गिर गई—अपने चेहरे पर ऐसी हवाइयां लिए वह मेरी तरफ देख रहा था जैसे खून स्वयं उसने ही किया हो और मेरे शब्द सुनकर उस पर यही असर होगा, इनका अनुमान मैं पहले ही लगा चुका था—उसने कोशिश जरूर की मगर मुंह से कोई आवाज न निकली, होंठ कांपकर रह गए।
"हां।" मैं बोला— "यकीन मानो, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था—खून करने के बारे में तो जिन्दगी में कभी सोचा भी नहीं, वह तो साला
तेवतिया.....।"
मैंने जान-बूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
"चुप क्यों हो गए, बोलो?" सुरेश गुर्रा-सा उठा।
"पैसे की बहुत तंगी चल रही थी सुरेश।" गढ़ी-गढ़ाई कहानी उसी अन्दाज में सुनाई जिसमें सुनाना मेरी स्कीम का हिस्सा था—"उसे दूर करने के लिए एक चोरी करने की सोची, सेठ तेवतिया की कोठी में घुस गया—उसके कमरे में रखी नम्बरों वाली सेफ खोल चुका था कि जाने कैसे तेवतिया की नींद टूट गई, वह न सिर्फ 'चोर-चोर' चिल्लाने लगा बल्कि मुझ पर झपट भी पड़ा।"
"फ.....फिर?" सुरेश ने धड़कते दिल से पूछा।
"सारी कोठी में जाग हो गई, लोगों के भागते कदमों की आवाज तेवतिया के कमरे की तरफ आ रही थी—मैं भागने का प्रयत्न कर रहा था, किन्तु तेवतिया छोड़ता तभी न—पकड़े जाने के भय से मजबूर होकर मैंने चाकू निकालकर तेवतिया पर वार किया—सच सुरेश, उस
वक्त भी मेरी मंशा उसे कत्ल कर देने की बिल्कुल न थी—कम्बख्त एक ही वार में मर गया—चाकू उसकी छाती में लगा था।"
"उफ!" गुस्से मे भरा सुरेश कसमसा उठा—"चोरी करने की आपको जरूरत क्या थी—क्या मैंने कभी इन्कार किया है, अगर पैसे की तंगी थी आपको मेरे पास आना चाहिए था मिक्की भाइया।"
मैंने गुनहगार की तरह गर्दन झुका ली।
"बोलिए.....मेरे पास क्यों नहीं आए आप?"
मैंने कहा— "तुमसे इतनी बार, इतनी ज्यादा मदद ले चुका हूं सुरेश कि अब और ज्यादा मांगते शर्म आती है।"
"इसमें शर्म कैसी?" वह बिफर पड़ा—"आप मेरे बड़े भाई हैं, अगर बड़ा भाई मुसीबत में हो और छोटा सम्पन्न तो क्या भाई की मदद करना छोटे का कर्त्तव्य नहीं है?"
"इस बहस में पड़ने का समय निकल चुका है सुरेश, वह कोई बुरी घड़ी ही थी जब मैंने तुमसे पैसा न मांगकर चोरी करने की सोची, मगर यदि अब हम उन्हीं बातों में उलझे रहे तो मैं पकड़ा जाऊंगा, कत्ल के जुर्म में फांसी से कम......।"
"कैसे पकड़े जाओगे, वहां किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं है?"
"देखा था।"
"क.....क्या?" सुरेश पसीने-पसीने हो गया।
"तेवतिया को चाकू मारने के बाद जब मैं भाग रहा था तो उसके एक नौकर ने मुझे देखा था, वह पुलिस को मेरा हुलिया बताएगा और हुलिया सुनते ही पुलिस का ध्यान मेरी तरफ जाना स्वाभाविक है।"
"ओह!"
सुरेश के दिमाग में बैठे खतरे का आकार और बढ़ाने की गर्ज से मैंने कहा— "मेरा चाकू वहीं रह गया है, तेवतिया की छाती में गड़ा—निकालने की कोशिश शायद हड़बड़ाहट के कारण कामयाब न हुई थी, उसकी मूठ से पुलिस को मेरी उंगलियों के निशान मिल जाएंगे—पुलिस हुलिए की वजह से यहां किसी वक्त भी आ सकती है, मेरी उंगलियों के निशान लेगी और.....।"
मैंने जान-बूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
सुरेश पर सन्नाटा-सा छा गया। काफी देर तक वह मेरी तरफ देखता रहा, फिर बोला— "मैं हमेशा आपसे कहता रहा भइया कि ये चोरी—चकारी और गुण्डागर्दी से भरी जिन्दगी छोड़ दीजिए, मगर आप कभी नहीं माने, मेरी एक न सुनी आपने!"
"इन बातों की जगह इस वक्त हमें बचाव के बारे में सोचना चाहिए सुरेश।"
सुरेश निराश हो चला था, बोला— "बचाव की सूरत ही कहां है?"
"एक सूरत है।" मैंने कहा।
"क्या?"
"तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।"
"आपके के लिए तो मेरी जान भी हाजिर है मिक्की भइया—मगर नहीं लगता कि मेरे मदद करने से भी अब कुछ हो सकेगा।"
"सब कुछ हो जाएगा, कानून धोखा खा जाएगा सुरेश।"
"कैसे?"
"तुम मेरे कपड़े पहन लो, मिक्की बन जाओ।"
चौंकते हुए सुरेश ने पूछा—"इससे क्या होगा?"
"पुलिस रात के किसी भी वक्त या ज्यादा-से-ज्यादा सुबह दस बजे तक यहां पहुंच जाएगी—बस, तुम्हें उसी वक्त तक के लिए मिक्की बनना है—यहां आकर वे अपनी समझ में मिक्की की उंगलियों के निशान लेंगे, तुम्हें मिक्की समझकर वे तुम्हारे निशान ले जाएंगे और जाहिर है कि वे निशान चाकू की मूठ से बरामद निशानों से बिल्कुल अलग होंगे—यानी पुलिस इस नतीजे पर पहुंचेगी कि जो हुलिया तेवतिया के नौकर ने बताया है, वह मिक्की का नहीं है।"
सुरेश चुप रहा।
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