RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
मेरी समझ में उसे इस काम के लिए तैयार करना आसान नहीं था, इसीलिए गिड़गिड़ाया—"बस, अपने बड़े भाई की यही आखिरी मदद कर दो सुरेश—वादा करता हूं कि चोरी-चकारी और गुण्डागर्दी की इस जिन्दगी को हमेशा के लिए छोड़ दूंगा—वह जिन्दगी अपना लूंगा जो तुम कहते रहे हो—मगर उसके लिए खून के इल्जाम से बचना बहुत जरूरी है—और बचने का एकमात्र यही रास्ता है।"
"मैं तैयार हूं।" सुरेश ने कहा।
मुझे झटका-सा लगा।
सोचा था कि इस काम के लिए तैयार करने हेतु मुझे सुरेश के पैर पकड़े होंगे, मगर ऐसी नौबत नहीं आई—आशा के विपरीत बड़ी आसानी से सुरेश की 'हां' सुनकर मैं दंग रह गया, अभी कुछ बोल भी न पाया था कि उसने कहा— "लेकिन यदि वे ताड़ गए कि मैं मिक्की नहीं सुरेश हूं तो?"
"ऐसा नहीं होगा, तुम्हें खूबसूरत एक्टिंग करनी होगी।"
"तुम कहां रहोगे?"
"उसकी फिक्र मत करो, सुबह तक छुपे रहने के लिए मेरे पास कई जगह हैं।"
इस तरह.....।
सुरेश मिक्की बनने के लिए न सिर्फ तैयार हो गया, बल्कि देखते-ही-देखते मेरे कपड़े उसके तन पर और उसके कपड़े मेरे तन पर पहुंच गए—मुझे बचाने की गर्ज से वह बेवकूफ मिक्की बनने के लिए इस कदर आतुर था कि केवल तीन मिनट बाद वह पूरी तरह मिक्की और मैं सुरेश नजर आने लगा।
अपनी हेयर स्टाइल को मेरी हेयर स्टाइल में बदलने के बाद उस वक्त वह दीवार पर एक कील में लटके शीशे में देखता हुआ फाइनल टच दे रहा था कि मैं अदवायन की रस्सी लिए उसके पीछे पहुंचा।
मेरे दोनों हाथ मेरी पीठ पर थे, उनमें थी रस्सी।
दिल जोर-जोर से पसलियों पर चोट कर रहा था।
उस वक्त मेरा सारा जिस्म ठण्डे पसीने से भरभराया हुआ था, जब कंघा शीशे के पीछे फंसाकर सुरेश मेरी तरफ घूमा, बोला— "कैसा लग रहा हूं भइया?"
"कोई माई का लाल नहीं ताड़ सकता सुरेश, मेरी आवाज में बोलकर दिखाओ।"
उसने मुंह खोला ही था कि—
बिजली की-सी गति से मैंने फंदा उसकी गर्दन में डाल दिया।
और।
मेरे खतरनाक इरादों की अभी वह कल्पना भी न कर पाया था कि मैंने पूरी ताकत से रस्सी को झटका दिया।
फंदा कस गया।
चीख घुटकर रह गई।
पूरे साहस से मैंने दूसरा झटका दिया।
वह कुछ भी न कर सका।
अपनी योजना के अनुसार मैंने बचाव का उसे कोई मौका न दिया—जुनूनी अवस्था में रस्सी को उस वक्त तक झटके देता रहा जब तक कि सुरेश की छटपटाहट और मुंह से निकलने वाली गूं-गूं की आवाज रुक न गई।
दो मिनट से पहले ही वह मर चुका था।
हालांकि फंदे में झूल रही उसकी लाश को देखकर मेरे हौंसले पस्त होने लगे थे, किन्तु फिर भी अपनी योजना के अनुसार मैंने उसके खुले हुए मुंह में रूई ठूंसी।
उस पर कपड़ा बांधा।
स्टूल पर चढ़कर रस्सी का दूसरा सिरा कुंदे में बांधने में मुझे लाश के वजन के कारण बहुत मेहनत करनी पड़ी।
लाश के मुंह पर बंधा कपड़ा ढीला किया।
उसके पैरों से ही ठोकर मारकर स्टूल लुढ़काया।
खुली डायरी और पैन खाट पर डाले।
फर्श पर पड़ी ट्रिपल फाइव की सिगरेट ही नहीं बल्कि उसकी राख तक उठाकर मैंने अपनी जेब में डाल ली—जब आश्वस्त हो गया कि पुलिस उससे ज्यादा कुछ पता नहीं लगा पाएगी कि जितना मैं चाहता हूं, तो बाहर निकला।
गली में सन्नाटा था।
अब मैंने आहिस्ता से दरवाजा बन्द किया।
एक तार की मदद से बाहर ही से सांकल लगा दी—दोनों किवाड़ों को लगाने और खोलने की भरपूर प्रैक्टिस मैं पहले ही कर चुका था, क्योंकि जानता था कि पुलिस मिक्की की आत्महत्या पर तब यकीन करेगी जब दरवाजे की सांकल अन्दर से बन्द होगी।
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