FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:05 PM,
#32
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
शाम के वक्त।
अस्पताल से छुट्टी के बाद उसे घर पहुंचाया गया, और यह एहसान करने वालों में विनीता भी शामिल थी—मिक्की 'सांध्य दैनिक' पढ़ने के लिए बुरी तरह बेचैन था—उसकी योचना के मुताबिक उसमें एक ऐसी खबर छुपी होनी चाहिए थी, जिसकी मौजूदगी के कारण अपनी बेचैनी को उजागर करना भी उसे घातक नजर आ रहा था।
सो उसने हल्के अंदाज में—कुछ इस तरह 'सांध्य दैनिक' मांगा जैसा बिस्तर पड़े-पड़े मन न लग रहा हो।
दैनिक के हाथ में आते ही उसने अपने मतलब की खबर ढूंढ ली।
तीसरे पृष्ठ पर मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था—'लालकिले पर लोगों को पानी पिलने वाली की लाश रेल की पटरियों पर पाई गई।'
हैडिंग पढ़ते ही मिक्की का दिल धक्-धक् करके बजने लगा।
एक ही सांस में इस शीर्षक से सम्बन्धित समूची न्यूज पढ़ गया, जो निम्न प्रकार थी—
दिल्ली.....आज सुबह, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूर पुलिस ने पटरियों से एक नवयुवती का बुरी तरह क्षत-विक्षत शव बरामद किया—शव का सिर और धड़ अलग थे—कदाचित् रात के समय गुजरने वाली किसी माल या यात्री ट्रेन ने उसकी यह हालत की
है।
इस खबर के प्रेस में जाने तक दिन-भर की भगदौड़ और जांच-पड़ताल के बाद पुलिस यह पता लगाने में कामयाब हो गई कि
लालकिले पर लोगों को पानी पिलाने वाली इस युवती का नाम अलका था—मिक्की नामक जिस गुंडे से यह प्रेम करती थी, कल अपनी जिन्दगी से निराश होकर उसने आत्महत्या कर ली थी—मिक्की की लाश को देखने के बाद से ही अलका ही हालत पागलों जैसी थी—इस युवती के पड़ोसियों के अलावा पुलिस ने भी यह सम्भावना व्यक्त की है कि अपने प्रेमी से मिलने के फेर में ही इस युवती ने रात के किसी वक्त रेल के नीचे कटकर आत्महत्या की है।
पूरी खबर पढ़ने के बाद मिक्की के जेहन में खुशी की तरंगें नाच उठीं।
उसकी योजना पूरी तरह सफल थी।
सो पुलिस वही.....ठीक वही सोच रही थी, जो वह सुचवाना चाहता था, ठीक उसी नतीजे पर पहुंची थी जिस पर वह पहुंचाना चाहता था—मर्सडीज में डालने के बाद अलका के बेहोश जिस्म को रेल की पटरियों तक पहुंचाने के दृश्य चलचित्र की तरह मिक्की की आंखों के सामने तैर गए।
ट्रेन से अलका के जिस्म के दो टुकड़े होते उसने अपनी आंखों से देखे थे—सुरेश की लाश पर, जिसे वह और दूसरे लोग मिक्की की लाश समझ रहे थे—लोगों ने जिस कदर उसे टूट-टूटकर रोते देखा था, उसी रोशनी में मिक्की के दिमागानुसार इस हादसे या हत्या को लोगों से आत्महत्या समझा जाना स्वाभाविक ही था।
उन सब परिस्थितियों पर अच्छी तरह गौर करने के बाद ही तो मिक्की ने अलका नाम की मुसीबत से पीछा छुड़ाने का ये नायाब तरीका निकाला था और अपने उद्देश्य में वह पूरी तरह सफल भी रहा था—पुलिस तक यह नहीं सोच पा रही थी कि अलका ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसकी हत्या की गई है और सच्चाई तो उन्हें कल्पनाओं में भी पता नहीं लग सकती थी कि अलका का हत्यारा सुरेश बनकर घूम रहा मिक्की है, वही मिक्की जिसे सारी दुनिया मृत मान चुकी है—जिसकी मृत्यु को दुनिया अलका की आत्महत्या की वजह समझ रही है।
सबकुछ ठीक था।
उसी तरह जिस तरह मिक्की चाहता था।
इस राज को जानने वाला अब इस दुनिया में उसके अलावा दूसरा कोई नहीं था कि वह सुरेश नहीं मिक्की है—यही तो उसकी योजना थी। यही तो वह चाहता था कि किसी को पता होना तो दूर, भनक तक न लग सके कि वह मिक्की है।
और वास्तव में किसी को भनक तक न थी।
बिस्तर पर पड़ा वह स्वयं को मिक्की से सुरेश में तब्दील करने की प्रक्रिया पर दूर-दूर तक सोचता रहा—बड़ी बारीकी से उसने अपने अतीत के हर कदम पर पुनर्विचार किया.....गौर किया कि कहीं भी उससे कोई चूक तो नहीं हो गई है, जिसका दामन पकड़कर पुलिस उस तक पहुंच सके—जान सके कि वह सुरेश नहीं मिक्की है और काफी माथा-पच्ची करने के बावजूद उसे अपनी स्कीम में कहीं कोई 'लूज पॉइंट' नहीं मिला।
सबकुछ दुरुस्त था, कसा-कसाया।
सोचते-सोचते मिक्की का मस्तिष्क अपने वर्तमान हालातों में आ फंसा—सुरेश बनने के बाद घटनाएं बड़ी तेजी से घटी थीं और इन
घटनाओं ने उसके जेहन को हिलाकर रख दिया था—विनीता के कमरे से चोरों की तरह निकलकर गायब हो जाने वाले साए से लेकर नसीम, मनू और इला आदि सारे नाम उसके लिए रहस्य का बायस थे—नसीम द्वारा फोन पर कही गईं बातें अत्यन्त खतरनाक और रहस्यमय थीं।
अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी में सुरेश ने आखिर क्या चक्कर चला रखा था?
एक पल.....सिर्फ एक पल के लिए मिक्की ने यह सोचा कि मर्डर की वह कोशिश किसके लिए थी?
सुरेश.....या मिक्की के लिए?
'नहीं.....वह कोशिश मिक्की के लिए नहीं हो सकती।' मिक्की के जेहन ने कहा— 'जब कोई जानता ही नहीं कि मैं मिक्की हूं तो भला 'मिक्की' के मर्डर की कोशिश कौन कर सकता है—निश्चय ही वह सुरेश के मर्डर की कोशिश थी।'
किन्तु।
वह कौन है?
सुरेश आखिर ऐसे किस झमेले में उलझा हुआ था जिसकी वजह से कोई उसका मर्डर करना चाहता है?
क्या वह फिर कोशिश करेगा?
क्या वह कामयाब हो जाएगा?
एम्बेसेडर को याद करके मिक्की के मस्तक पर पसीना छलक उठा—इस पल उसे लगा कि सुरेश बनकर कहीं उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल तो नहीं की है—जब वह मिक्की था, तब भले ही दूसरी चाहे कितनी मुसीबतें थीं, परन्तु कम-से-कम उसकी हत्या का तलबगार कोई न था।
मगर अब।
उसने खुद को पूरी तरह एक ऐसी शख्सियत के रूप में तब्दील कर लिया है जिसकी हत्या का तलबगार भी कोई है—दिल के किसी कोने से आवाज उठी—अपने आपको मैंने ये किस मुसीबत में फंसा लिया है?
अगर सुरेश की हत्या का तलबगार कामयाब हो गया तो?
सोचते-सोचते मिक्की के छक्के छूट गए।
ठीक से निश्चय न कर सका कि सुरेश बनकर वह फायदे में रहा या नुकसान में—हां, इस निश्चय पर जरूर पहुंच गया कि अब यदि घबराकर उसने वापस मिक्की बनने की ओर भागना चाहा तो उसकी दौड़ का अन्त सीधा फांसी के फंदे पर होगा, अतः उसे सुरेश ही बने रहना है। उन हालातों को समझना और उनसे टकराना है, जो उसके चारों ओर सिर्फ इसलिए इकट्ठे हुए हैं, क्योंकि अब वह सुरेश है।
सुरेश बनकर ही उसे हर गुत्थी को समझना है, उससे लड़ना है। सारी बातों पर गौर करने के बाद मिक्की इस नतीजे पर पहुंचा कि सुबह हुआ एक्सीडेंट आंशिक रूप से उसके हित में ही रहा। यदि एक्सीडेंट न होता तो ऑफिस में बिजनेस से सम्बन्धित फैसलों के कारण शायद वह पकड़ा जाता—उस वक्त वह सुरेश की हत्या के तलबगार के बारे में सोच रहा था कि फोन की घण्टी घनघना उठी।
मिक्की की तंद्रा भंग हुई।
फोन उसके इतने नजदीक रखा था कि हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठा लिया और अपनी 'हैलो' के जवाब में दूसरी तरफ से नसीम की आवाज सुनाई दी—"मैं बोल रही हूं, सुरेश।"
"ओह, हां।" मिक्की ने संभलकर कहा— "मैंने पहचान लिया।"
नसीम का रहस्यमय स्वर—"पुलिस कुछ देर पहले फिर मेरे पास आई थी।"
"ओह!" मिक्की के मुंह से यही एक शब्द निकल पाया।
"वे मुझ पर बार-बार दबाव डाल रहे हैं—तरह-तरह के सबूत पेश कर रहे हैं कि तुमसे मेरा व्यक्तिगत सम्बन्ध है—बड़ी मुश्किल से मैं
उनके सामने झूठ पर कायम हूं—कुछ करो सुरेश वर्ना शायद मैं टूट जाऊंगी—उधर मनू और इला भी नाक में दम किए हुए हैं—मैंने सुबह भी फोन किया मगर तुमने उनका कोई इलाज नहीं किया—अगर जल्दी ही उनका मुंह नोटों से न भरा गया तो.....।"
"त.....तो?" इस 'तो' से आगे का मामला ही तो मिक्की जानना चाहता था।
"तो वे पुलिस के सामने सबकुछ उगल देंगे।"
मिक्की पूछना चाहता था कि वे क्या उगल देंगे मगर पूछ न सका—जिस ढंग से नसीम से बातें हो रही थीं, उससे जाहिर था कि सुरेश को मालूम था कि मनू और इला क्या उगल सकते हैं और इस सम्बन्ध में पूछना नसीम पर यह जाहिर कर देने के समान था कि वह सुरेश नहीं कोई अन्य है। अतः सारे हालातों पर गौर करने के बाद वह इतना ही कह पाया—"सुबह ऑफिस जाते वक्त मेरा एक्सीडेंट हो गया, वर्ना इस सम्बन्ध में जरूर कुछ करता।"
"मुझे मालूम है, एक्सीडेंट की सूचना मनू और इला को भी है।" नसीम ने कहा— "एक्सीडेंट का हवाला देकर ही मैंने उन्हें अब तक रोक रखा है, मगर जाने उन शैतानों को यह खबर कहां से मिल गई कि तुम्हें मामूली चोटें आई हैं—चल-फिर सकते हो—उन्होंने धमकी दी है कि आज रात दो बजे तक यदि बीस हजार रुपये उन्हें नहीं मिले तो तीन बजे इंस्पेक्टर म्हात्रे को सारी कहानी सुना रहे होंगे।"
"ओह!"
"ओह क्या.....कुछ करो।"
"क्या करूं?"
"रात एक बजे तक बीस हजार लेकर मेरे पास आ जाओ।"
हिम्मत करके मिक्की ने पूछ लिया—"त.....तुम कहां मिलोगी?"
"कैसी अजीब बात कर रहे हो, क्या तुम नहीं जानते कि मैं कहां मिलती हूं?"
मिक्की ने बात संभाली—"म...मेरा मतलब तो ये था कि शायद हमारा वहां मिलना ठीक नहीं है—तुमने खुद ही कहा है कि पुलिस तुम्हारे पीछे पड़ी है, यदि पुलिस ने मुझे 'वहां' तुमसे मिलते देख लिया तो.....?"
मिक्की ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया, क्योंकि इस 'तो' से आगे उसे कुछ पता ही नहीं था, जबकि कुछ सोचती-सी नसीम ने दूसरी तरफ से कहा— "हां, बात तो तुम्हारी ठीक है—इस बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं—मुमकिन है कि पुलिस मेरे 'कोठे' की निगरानी कर रही हो।"
नसीम के अंतिम वाक्य ने मिक्की के जेहन में धमाका-सा किया—'कोठे' शब्द से स्पष्ट हो गया कि नसीम कोई वेश्या है—हां, वेश्या का ध्यान आते ही 'वेश्याओं के रसिया' मिक्की के जेहन में 'नसीम बानो' का चेहरा नाच उठा—अब वह अच्छी तरह समझ गया कि फोन पर दूसरी तरफ कौन है और अभी वह अपने विचारों में गुम ही था कि नसीम ने पूछा—"चुप क्यों हो गए सुरेश—क्या सोचने लगे?"
"आं.....कुछ नहीं।" मिक्की चौंका—"स.....सोच रहा था कि कोठे पर हम मिल नहीं सकते, तो फिर मिलें कहां?"
"कश्मीरी गेट बस अड्डे पर।"
"बस अड्डे पर?"
"हां, ठीक वहां—जहां से लखनऊ के लिए बसें चलती हैं—मैं इस बात से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही वहां पहुचूंगी कि कोई मेरा पीछा तो नहीं कर रहा है—तुम भी होशियार रहना—ठीक एक बजे।"
"ओ.के.।" मिक्की के मुंह से निकला।
दूसरी तरफ से नसीम बानो ने रिसीवर रख दिया।
एक बार रिसीवर क्रेडिल पर रखते वक्त मिक्की के जेहन में मामले की कुछ गुत्थियां खुली थीं—वह अच्छी तरह जानता था कि नसीम बानो कौन है और वेश्याओं के करैक्टरों से वह अच्छी तरह वाकिफ था।
इस फोन के बाद उसके जेहन में जो कहानी बनी, वह इस प्रकार थी, 'विनीता की उपेक्षा से त्रस्त सुरेश ने कोठों पर जाना शुरू किया होगा—दौलतमंदों को अपने जाल में फंसाकर चूसने में माहिर नसीम बानो ने सुरेश को भी फंसाया होगा—सुरेश सरीखे इज्जतदार और धनवान कभी नहीं चाहते कि उनके ऐसे कर्मों की भनक किसी को भी लगे—इसी कमजोरी का लाभ उठाकर वेश्याएं अक्सर अपने किसी दलाल से 'सहवास' के फोटो खिंचवा लेती हैं और फिर यह कहकर धन ऐंठती हैं कि वह बदमाश फोटुओं को सार्वजनिक बनाने की धमकी दे रहा है—सुरेश सरीखे लोग बेवकूफ बनकर ब्लैकमेल होते रहते हैं—सुरेश भी शायद नसीम बानो से इसी तरह ब्लैकमेल हो रहा था।' मिक्की जानता था कि ऐसी वेश्याओं से पीछा कैसे छुड़ाया जाता है सो, उसके होंठों पर नाचने वाली मुस्कान गहरी होती चली गई।
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RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन - by desiaks - 06-13-2020, 01:05 PM

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