RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
मिक्की अभी अपनी सोचों में गुम था कि काशीराम ने आकर सूचना दी—"पुलिस वाले आपसे मिलने आए हैं, साहब।"
"प.....पुलिस?" मिक्की उछल पड़ा।
"जी।"
मिक्की का दिमाग बड़ी तेजी से घूम रहा था—वह सोचने की कोशिश कर रहा था कि कहीं वह कोई ऐसी गलती तो नहीं कर बैठा है, जिससे पुलिस उसके 'मिक्की' होने का राज जान गई हो—दिल हजारों शंकाओं के साथ धक्-धक् करने लगा, फिर भी उसने संभालकर पूछा—"किसलिए?"
"यह तो उन्होंने मुझे नहीं बताया साहब, सिर्फ इतना ही कहा है कि आपको खबर कर दूं कि इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे आए हैं।"
"म.....म्हात्रे, ओह।" मिक्की को याद आया कि कुछ ही देर पहले उसने यह नाम फोन पर नसीम से सुना है, बोला— "यहीं भेज दो।"
"अच्छा साहब।" कहकर काशीराम चला गया।
मिक्की के दिलो-दिमाग से तनाव काफी हद तक दूर हो चुका था—उसे मालूम था कि यदि पुलिस को उसके 'मिक्की' होने का संदेह होता तो इंस्पेक्टर महेश विश्वास तथा शशिकान्त आते—म्हात्रे के आगमन की वजह सुरेश और नसीम के सम्बन्धों से ही सम्बन्धित हो सकती है—उसे लगा कि म्हात्रे से बातचीत में शायद कुछ और गुत्थियां सुलझेंगी।
कुछ देर बाद।
तीन पुलिस वालों के साथ इंस्पेक्टर म्हात्रे नामक जिस हस्ती ने कमरे में कदम रखा, वह इतना पतला था कि यह सोच कर हैरत होती थी कि पुलिस में भर्ती के वक्त वह मैडिकल फिटनैस टेस्ट को कैसे पास कर सका?
पैन जैसी लम्बी और पतली उंगलियों वाला हाथ मिक्की से मिलाते हुए उसने अपना नाम बताया—मिक्की ने बिस्तर पर लेटे ही लेटे उसे बैठने के लिए कहा—वह बेड के समीप पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
बाकी तीनों सिपाही सावधान की मुद्रा में खड़े थे।
मिक्की चुपचाप लेटकर म्हात्रे के बोलने का इन्तजार करता रहा, जबकि म्हात्रे ने जेब से पतली बीड़ियों का एक बण्डल निकाला, बण्डल
को देखते ही एक बीड़ी पीने की मिक्की की तीव्र इच्छा हुई—म्हात्रे ने बीड़ी उसे ऑफर भी की, परन्तु सुरेश बना रहने की कोशिश में लम्बी सिगरेट सुलगानी पड़ी।
अपनी बीड़ी सुलगाने के बाद म्हात्रे ने पूछा—"अब आपका क्या हाल है?"
"ठीक ही है।" मिक्की का लहजा संतुलित था।
"अलका के बारे में तो आपने अखबार में पढ़ ही लिया होगा?"
उसके मुंह से अलका का नाम सुनकर मिक्की चकरा गया। बोला— "कौन अलका?"
"कमाल है, आप अलका को नहीं जानते?"
"अ.....आप उसी अलका की बात तो नहीं कर रहे, जो मिक्की की लवर थी और अखबार के मुताबिक जिसने रात आत्महत्या कर ली?"
"जी हां।" म्हात्रे ने अर्थपूर्ण ढंग से उसे घूरते हुए कहा— "मैं उसी अलका की बात कर रहा हूं।"
"म.....मगर मुझसे उसके जिक्र का मतलब?"
"मतलब सिर्फ ये है कि वह आपके भाई की लवर थी, जिस तरह से सबकुछ घटा—क्या तुम्हें कुछ अटपटा-सा नहीं लगा मिस्टर सुरेश?"
"मैं समझा नहीं?"
"क्या एक पानी बेचने वाली, एक दस नम्बरी की इतनी दीवानी हो सकती है कि उसके लिए आत्महत्या कर ले?"
"मुहब्बत का अंदाजा प्रेमियों के अलावा किसी को नहीं होता। आपने उसे अगर मिक्की की लाश पर रोते देखा होता तो शायद आपको अलका द्वारा आत्महत्या करना इतना अटपटा न लगता।"
"यानी आप मानते हैं कि अलका ने आत्महत्या की है?"
एकाएक मिक्की को यह ख्याल आ गया कि इस वक्त मैं मिक्की नहीं सुरेश हूं और सुरेश को मिक्की की तरह इंस्पेक्टर के सामने दबा-दबा नहीं रहना चाहिए, बल्कि हावी होना चाहिए। सुरेश के सामने एक पुलिस इंस्पेक्टर की आखिर हैसियत क्या है, अतः थोड़ा अकड़कर बोला— "क्या आप यहां मुझसे अलका की मौत पर विचार-विमर्श करने आए हैं?"
"नहीं।"
"फिर?"
उसके चेहरे पर नजरें गड़ाए इंस्पेक्टर म्हात्रे ने एक झटके से कहा— "हम यहां तुम्हें गिरफ्तार करने आए हैं।"
"ग.....गिरफ्तार करने?" मिक्की के जिस्म का सारा खून जैसे एक ही झटके में निचोड़ लिया गया हो—"म.....मुझे?"
"जी हां.....आपको।" उसे घूरते हुए ये शब्द म्हात्रे ने इतने दृढ़तापूर्वक कहे कि मिक्की के होशो-हवास काफूर होते चले गए, यकीनन
वह एड़ी से चोटी तक का जोर लगाने के बाद पूछ सका—"क.....किस जुर्म में?"
म्हात्रे कुछ बोला नहीं।
कड़ी नजरों से सिर्फ उसे घूरता रहा और उसके यूं घूरने पर मिक्की को अपने समूचे जिस्म पर असंख्य चींटियां-सी रेंगती महसूस हुईं—जब ये चुप्पी और खासतौर पर म्हात्रे की शूल-सी नजरें मिक्की के लिए असहनीय हो गईं तो वह लगभग चीख पड़ा—"बोलते क्यों नहीं मिस्टर म्हात्रे, मुझे किस जुर्म में गिरफ्तार करना चाहते हो तुम?"
"तुमने अपने पिता की हत्या की है।"
"प.....पिता की हत्या?"
"हां......अपने धर्मपिता की हत्या—धर्मपिता शब्द इसलिए इस्तेमाल करना पड़ रहा है, क्योंकि तुम जानकीनाथ के असली पुत्र नहीं हो—उनके मुनीम के बेटे हो—जानकीनाथ ने तुम्हें बचपन में ही गोद ले लिया था—यानी तुम उनके दत्तक पुत्र हो।"
"और मैंने उनकी हत्या की है?"
"बेशक।"
मिक्की हलक फाड़कर चीख उठा—"आप बकवास कर रहे हैं।"
"चीखने-चिल्लाने से आपका जुर्म कम नहीं हो जाएगा मिस्टर सुरेश, लम्बी इन्वेस्टिगेशन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि जिस दुर्घटना के तहत जानकीनाथ की मृत्यु हुई, वह दुर्घटना नहीं बल्कि एक सोची-समझी स्कीम थी और उसे सोचने वाले थे आप।"
"य......ये झूठ है, आप किसी भ्रम का शिकार हैं।" मिक्की पागलों की तरह चीख पड़ा—"म.....मैं भला बाबूजी की हत्या क्यों करूंगा?"
"उनकी दौलत हड़पने के लिए।"
"क......कमाल की बात कर रहे हो इंस्पेक्टर, उनकी दौलत तो हर हाल में मेरी ही थी, भला उसके लिए मैं बाबूजी की हत्या क्यों
करूंगा?"
"धैर्य की कमी के कारण.....ऐसा अक्सर होता है।"
"म.....मैं समझ नहीं।"
"निःसन्देह जानकीनाथ की समस्त चल-अचल सम्पत्ति के वारिस आप अकेले थे—गौर करने वाली बात है—आप सिर्फ वारिस थे, मालिक नहीं—मालिक जानकीनाथ की मृत्यु के बाद बनने थे—वारिस से मालिक बनने के लिए आपसे जानकीनाथ की मृत्यु का इन्तजार न किया गया—आपने उनकी हत्या कर दी।"
मिक्की अवाक् रह गया, मुंह से बोल न फूटे।
होश गुम, पलक तक न झपक रहा था।
जेहन जैसे सुनसान पड़ी घाटियां बन चुका था और एक ही आवाज जैसे घाटी में प्रतिध्वनित होती फिर रही थी—'क्या यह सच है, क्या वास्तव में सुरेश हत्यारा था, क्या सचमुच जानकीनाथ की दौलत का मालिक बनने के लिए वह इतना व्यग्र हो गया था कि जानकीनाथ की मौत का इन्तजार करने की बजाय उनकी हत्या कर बैठा?'
'हे भगवान.....ये मैंने खुद को किस मुसीबत में फंसा लिया है?'
इंस्पेक्टर म्हात्रे अपने ही अंदाज में कहता चला जा रहा था—"हत्या भी तुमने ऐसे ढंग से की कि मामूली दुर्घटना नजर आए—भले ही हत्यारा चाहे कितना चालाक हो मिस्टर सुरेश, एक-न-एक दिन कानून की गिरफ्त में फंसना ही उसकी नियति है।"
मिक्की पसीने-पसीने हो चुका था। टूट चुका था वह और यह सच है कि वह हथियार डालने के-से लहजे में बोला— "क्या आपके पास कोई सबूत है कि मैंने बाबूजी की हत्या की है?"
"हम सारी कहानी जान चुके हैं।"
"कैसी कहानी?"
तुरन्त कुछ कहने के स्थान पर म्हात्रे कुर्सी से उठा। बीड़ी को फर्श पर डालने के बाद जूते से कुचलता हुआ बोला— "पुरानी दिल्ली की मशहूर तवायफ नसीम बानो के यहां सेठ जानकीनाथ का आना-जाना था—नसीम बानो को लेकर सेठजी पिकनिक आदि पर भी जाया करते थे—उनके इसी शौक को तुमने मौत का बहाना बनाया, नसीम बानो से मिलकर तुमने सौदा किया—वेश्या चूंकि बिकाऊ होती हैं, इसीलिए तुमने उसे आसानी से खरीद लिया—जानकीनाथ का मर्डर करने में वह तुम्हारे साथ हो गई।"
म्हात्रे सांस लेने के लिए रुका।
जबकि मिक्की सांस रोके एक-एक शब्द सुन रहा था। उसे पूर्ववत्त् घूरता हुआ म्हात्रे कहता चला गया—"शुरू में नसीम बानो सेठजी को अपना दीवाना बनाकर उनसे नोट ठग रही थी, फिर अपने बाप के मर्डर का प्लान लेकर तुम उसके पास पहुंच गए—तुमने इतनी मोटी रकम उसके सामने पटकी कि वह तैयार हो गई—शायद उसने यह भी सोचा हो कि उस एकमुश्त रकम के अलावा तुम्हें आसानी से जिन्दगी भर चूसती रहेगी—अपने बाप का हत्यारा, कभी भेद न खुलने देने के लिए राजदार को क्या नहीं देता रह सकता—यह सोचकर नसीम बानो जानकीनाथ के खिलाफ तुमसे मिल गई और फिर तेरह नवम्बर को जब जानकीनाथ नसीम बानो को 'बड़कल लेक' ले गए, तब नौका विहार करते वक्त अचानक नाव में पानी भरने लगा—सेठजी और नसीम के साथ-साथ मल्लाह महुआ ने भी नाव में भरे पानी को निकालने की भरसक चेष्टा की, मगर पानी आने के लिए नाव की तली में बनाए गए छेद इतने ज्यादा थे कि पानी की मात्रा बढ़ती रही और बढ़ते-बढ़ते यह इतनी हो गई कि नाव 'बड़कल लेक' में डूब गई—महुआ और नसीम बानो क्योंकि तैरना जानते थे सो, बच गए—तैरना न जानने की वजह से इस दुर्घटना में सेठजी की मृत्यु हो गई।''
"म.....मगर।"
"तुम और नसीम बानो पहले ही जानते थे कि सेठजी को तैरना नहीं आता, इसीलिए उनके मर्डर की ऐसी नायाब योजना बनाई कि जिसके बारे में सुनकर लोग उसे सामान्य दुर्घटना समझें—वास्तव में हुआ भी यही, तुम्हारी योजना पूरी तरह कामयाब रही—यहां तक कि पुलिस ने भी इसे दुर्घटना ही समझा.....लेक से सेठजी की फूली हुई लाश बरामद की—पोस्टमार्टम के बाद लाश अंतिम-संस्कार के लिए तुम्हें सौंप दी गई और फाइल इस जुमले के साथ बंद कर दी गई कि अपनी रखैल के साथ मौज-मस्ती करते सेठ जानकीनाथ नाव डूबने पर तैरना न जानने की वजह से मर गए।"
"फिर?" मिक्की ने अजीब मूर्खतापूर्ण अन्दाज से पूछा।
"फिर मैं इस थाने पर आया, पुरानी फाइलों को उलटते-पुलटते सेठ जानकीनाथ की फाइल पर नजर पड़ी—पूरी पढ़ने के बाद यह सवाल मेरे दिमाग में अटककर रह गया कि नाव आखिर डूबी क्यों.....इस सवाल का फाइल में कहीं कोई जवाब न था—मैं इन्वेस्टिगेशन के लिए निकल पड़ा—पता लगा कि एक हथौड़ी और बताशे वाली कील की मदद से महुआ की नाव में इतने छेद कर दिए गए कि उसका डूबना अवश्यम्भावी था—अब मैंने छेद करने वाले की तलाश शुरू की—सबसे पहले महुआ का बयान लिया और इस नतीजे पर पहुंचा कि कम-से-कम वह हत्या के षड्यंत्र में शामिल नहीं था—सो, नसीम बानो का बयान लिया—एक बार नहीं कई बार.....हालांकि वह खुद को बेहद चालाक समझती है और लगातार झूठ बोल रही है—मगर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह इस षड्यंत्र में शामिल है।"
"यह बात आप किस आधार पर कह रहे हैं?"
"वह लगातार कह रही है कि आपसे उसके कोई व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं हैं, जबकि मैं दूसरे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा चुका हूं कि नाव के बड़कल में डूबने से पहले तुम दोनों की अनेक गुप्त मुलाकातें हुई थीं।"
"कैसे विश्वस्त सूत्र?"
"मेरे पास ऐसे अनेक गवाह हैं, जो अदालत में यह कहेंगे कि जानकीनाथ की मौत से पहले उन्होंने तुम्हें नसीम से कई बार मिलते देखा है।"
"गवाह सिर्फ गवाह होते हैं, मिस्टर म्हात्रे, सबूत नहीं—ऐसे झूठे गवाहों के बूते पर आप अदालत में कुछ साबित नहीं कर पाएंगे।"
बड़ी ही रह्स्यमय मुस्कान के साथ म्हात्रे ने पूछा—"यानी नसीम की तरह आप भी यह कह रहे हैं कि सेठजी की मौत से पहले आप नसीम से कभी नहीं मिले?"
मिक्की ने दृढ़तापूर्वक कहा— "नहीं।"
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