FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:06 PM,
#35
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
मिक्की ने एक पल सोचा और फिर दिल चाहा कि जोर से ठहाका लगाए—उस बेवकूफ को क्या मालूम कि सुरेश बदल चुका है—यदि हथौड़ी और कील का इस्तेमाल सुरेश ने किया भी हो तो कम-से-कम इस सुरेश की उंगलियों के निशान से वे बिल्कुल नहीं मिलेंगें—निशान देने में बुराई तो दूर, मिक्की को उल्टी भलाई नजर आई—ऐसा होने पर म्हात्रे नामक इंस्पेक्टर को उस पर जो शक है, वह पूरी तरह खाक में मिल जाना था।
अभी वह सोच ही रहा था कि म्हात्रे ने कहा— "किस सोच में डूब गए मिस्टर सुरेश, यदि निशान देने के बारे में आप कोई स्पष्ट जवाब दें तो आप से विदा लूं।"
"आप शौक से मेरी उंगलियों के निशान ले सकते हैं।"
म्हात्रे चकित रह गया, मुंह से कोई आवाज न निकल सकी—मिक्की ने पूछा—"इस तरह क्या देख रहे हो इंस्पेक्टर?"
"अगर आप सच पूछें तो मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप निशान देने के लिए तैयार हो जाएंगे।"
मिक्की ने मुस्कराकर कहा—"उंगलियां नहीं, पूरा हाथ हाजिर है।"
¶¶
मिक्की को म्हात्रे के द्वारा उंगलियों के निशान ले जाने की बिल्कुल परवाह नहीं थी—हां, उसके जाने के बाद काफी देर तक वह उस कहानी पर जरूर गौर करता रहा जो म्हात्रे ने सुनाई थी।
क्या वह कहानी सच है?"
क्या सचमुच वारिस से मालिक बनने के लिए सुरेश ने जानकीनाथ की हत्या की थी?"
यदि ऐसा है तो निश्चय ही सुरेश मुझसे भी बड़ा छुपा रुस्तम निकला।
मिक्की को अब याद आ रहा था कि जानकीनाथ की मृत्यु 'बड़कल लेक' में डूबने से ही हुई थी—यह सोचकर मिक्की हैरान था कि वह मर्डर था और यह बात तो उसे रोमांचित किए दे रही थी कि वह मर्डर सुरेश ने किया था।
हालांकि इंस्पेक्टर म्हात्रे के पास कोई सुबूत न था और फिंगर प्रिन्ट्स के रूप में जो सबूत वह ले गया था, वह झूठ बोलने वाला था—परन्तु उसकी दृढ़ता ने मिक्की को यकीन दिला दिया कि हो न हो, हत्यारा सुरेश ही था।
दूसरी तरफ थी—नसीम बानो।
काफी देर तक फोन पर नसीम से कहा गया एक-एक शब्द मिक्की के कानों में गूंजता हुआ जेहन से टकराता रहा—अब यह ख्याल उसके जेहन से पूरी तरह आउट हो चुका था कि नसीम सुरेश को अवैध सम्बन्धों के आधार पर ब्लैकमेल कर रही थी—निश्चय ही म्हात्रे से सुनाई गई कहानी ही हकीकत है। नसीम की मदद से सुरेश ने जानकीनाथ की हत्या की होगी और अब इंस्पेक्टर म्हात्रे की इन्वेस्टिगेशन से घबराई हुई है।
और।
बीस हजार रुपये के लिए सवा बारह बजे उसने सुरेश की तिजोरी खोली—करेंसी नोटों से वह लबालब भरी थी।
साढ़े बारह बजे।
उस वक्त सब सो रहे थे जब जेब में बीस हजार डाले वह चोरों की तरह अपने कमरे में से ही नहीं, बल्कि चारदीवारी लांघकर कोठी से बाहर निकला।
टैक्सी पकड़ने से पहले वह अच्छी तरह चैक कर चुका था कि उसे चैक नहीं किया जा रहा है—एक बजने में पांच मिनट पर वह बस अड्डे के उस स्पॉट पर था, जहां से लखनऊ के लिए बसें रवाना होती थीं।
ज्यादा भीड़ नहीं थी।
लखनऊ जाने वाली एक नाइट बस में मुश्किल से बीस यात्री थे—चंद लोग बस के इर्द-गिर्द खड़े शायद उसके रवाना होने का इन्तजार कर रहे थे।
अभी मिक्की को वहां पहुंचे दो मिनट भी नहीं गुजरे थे कि एक बुर्कापोश औरत उसके समीप से गुजरती हुई फुसफुसाई—"मेरे पीछे आओ।"
मिक्की ने आवाज पहचान ली।
वह नसीम थी।
अजीब रोमांच में डूबा मिक्की उसके पीछे चल दिया—अपेक्षाकृत बस अड्डे के एक अंधेरे कोने में एक-दूसरे के नजदीक आए।
नसीम ने नकाब उलट दिया।
मिक्की को मानना पड़ा कि अच्छे-अच्छे को दीवाना बना देने वाला हुस्न अभी भी नसीम के पास है। इस वक्त उसके चेहरे पर गम्भीरता ही नहीं, बल्कि खौफ के लक्षण भी थे, बोली— "मनू और इला का मुंह बन्द करने के लिए रकम लाए हो?"
"हां” , मिक्की ने संक्षिप्त जवाब दिया।
नसीम ने हाथ फैला दिया—"लाओ।"
"वह तो मैं दे ही दूंगा।" मद्धिम प्रकाश में नसीम को घूरते हुए मिक्की ने कहा— "मगर सवाल ये है कि यह सिलसिला आखिर कब तक चलता रहेगा?"
"जब तक वो दोनों शैतान जिन्दा हैं।"
"क्या मतलब?"
"मतलब साफ है सुरेश, हथौड़ी और कील से नाव में छेद करते उन्होंने तुम्हें अपनी आंखों से देखा है—इस राज को राज रखने की ही वे बार-बार कीमत मांगते हैं—उस वक्त खतरा कम था, जब पुलिस ने साधारण दुर्घटना समझकर इस केस की फाइल बन्द कर दी थी—बुरा हो इस म्हात्रे का—बेहद कांइया है वह, जाने कम्बख्त को क्या सूझा कि गड़े मुर्दें उखाड़ने निकल पड़ा—जरा सोचो, यदि मनू और इला अपना बयान इंस्पेक्टर म्हात्रे को दे दें तो क्या होगा?"
"म.....मगर सिर्फ उनके बयान देने से कुछ होने वाला नहीं है।"
"उन्होंने मुझे वह फोटो दिया है।" कहने के साथ नसीम ने अपने पर्स से एक पासपोर्ट साइज का फोटो निकालकर उसे पकड़ा दिया।
मिक्की ने धड़कते दिल से फोटो लिया।
रोशनी मद्धिम जरूर थी मगर उसने साफ देखा.....एक हाथ में कील और दूसरे हाथ में हथौड़ी लिए सुरेश नाव की तली में छेद करता साफ नजर आ रहा था—मिक्की की नजर फोटो पर चिपककर रह गई।
"जरो सोचो सुरेश, यदि इस फोटो को वे शैतान म्हात्रे तक पुहंचा दें तो क्या म्हात्रे को किसी अन्य सबूत की जरूरत रह जाएगी?"
"ल...लेकिन ये फोटो उन्होंने लिया कब?"
"फोटो ही बता रहा है कि यह उस वक्त लिया गया, जब तुम नाव में छेद कर रहे थे।"
"मेरा मतलब ये है कि क्या वे हर समय अपने साथ कैमरा लिए घूमते हैं?"
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