RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
विनीता कह उठी—"मुझे लगता है कि हमने नसीम की बातों में आकर गलती की।"
"क्या मतलब?" नसीम गुर्राई।
"जानकीनाथ की हत्या तक का मामला ठीक-ठाक निपट गया था, तुम्हारी ही सलाह पर हमने सुरेश को फंसाने के लिए पुलिस को पत्र लिखकर इस दबे-दबाए मामले को पुनः उखड़वाया और आज हम मुसीबत में फंस गए हैं।"
"हां, दूध पीते बच्चे हो तुम लोग तो कि जो मैंने कहा, तुमने मान लिया।" नसीम बिगड़ गई—"अपने पति का मर्डर करके उसकी दौलत पर अपने यार के साथ रंगरेलियां मनाने का सपना तो तुमने देखा ही नहीं था।"
"यह सपना तुमने देखा, मैंने तो उसे पूरा करने का रास्ता दिखाया था।"
"जैसे उसमें तुम्हारा अपना कोई लालच ही नहीं था।"
नसीम गुर्राई—"मैंने कभी नहीं कहा कि मैं बिना किसी लालच के कभी कोई काम करती हूं—सुरेश को फंसाने के लिए वादामाफ गवाह के रूप में ही सही मगर मैंने खुद को पुलिस के सामने हत्यारिन के रूप में प्रस्तुत करने का फैसला किया तो क्या इसकी कोई कीमत भी न लेती, दस लाख इस काम के लिए ज्य़ादा नहीं थे।"
विनीता के कुछ कहने से पहले ही हस्तक्षेप करते हुए विमल ने कहा— "इन बेकार के मुद्दों पर हमें आपस में लड़ने की जगह आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए।"
कुछ देर खामोशी रही। फिर नसीम ने कहा— "मेरे ख्याल से जब तक सुरेश की स्वीकारोक्ति की सही वजह पता नहीं लग जाती, तब तक हमें वह नाटक जारी रखना चाहिए, जो सुरेश के साथ चल रहा है।"
विमल बोला— "इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है।"
¶¶
अगले दिन।
शाम के वक्त।
ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी नसीम बानो मुजरे के लिए खुद को सजाने-संवारने में व्यस्त थी कि एक साजिन्दे ने आकर सूचना दी- "रहटू आया है मोहतरमा।"
"रहटू......रहटू?" वह हल्के से चौंकी।
"जी।"
"क्या तुम चांदनी चौक वाले रहटू की बात कर रहे हो.....वह गुट्टा?"
"जी हां।"
बुरा-सा मुंह बनाकर नसीम ने कहा— "फक्कड़ आदमियों के लिए मेरे पास टाइम नहीं है, तुमसे कह रखा है कि ऐसे लीचड़ लोगों को बगैर पूछे दरवाजे से टरका दिया करो।"
"मैंने कोशिश की थी मगर टला नहीं—कहता है कि बहुत जरूरी बात करनी है। आपसे मिलकर ही जाऊंगा।"
"हुंह.....कह दो हमारी तबीयत नासाज है, फिर कभी आए।"
"तुम भूल गईं नसीम बानो कि रहटू जहां जिस लिए जाता है, वहां से अपना काम किए बगैर लौटता नहीं है।" इन शब्दों के साथ
अत्यन्त नाटा रहटू कमरे के दरवाजे पर नजर आया, कुटिल मुस्कराहट के साथ वह कह रहा था—"मुझे सामने देखकर अच्छे-अच्छों की नासाज तबियत दुरुस्त हो जाती है।"
"अरे रहटू, तुम.....आओ.....आओ.....बैठो।" नसीम बानो ने गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसका स्वागत करते हुए कहा—"बहुत दिनों बाद हमारी याद आई?"
रहटू अजीब ढंग से मुस्कराया।
आगे बढ़ते हुए उसने साजिन्दे की तरफ देखकर चुटकी बजाई, यह उसके लिए कमरे से बाहर चले जाने का हुक्म था।
यहां रहटू के खौफ का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साजिन्दा नसीम बानो की इजाजत लिए बिना ही कमरे से बाहर चला गया—उसकी अनुपस्थिति में भले ही नसीम बानो ने चाहे जो कहा हो, मगर फिलहाल वह भी बटरिंग कर रही थी, बोली— "बैठो रहटू।"
"मैं खड़ा हुआ भी उतना ही ऊंचा हूं, जितनी तुम बैठकर हो।"
नसीम ही-ही करके हंसने लगी।
उस पर ध्यान देने के स्थान पर रहटू ने कमरे का दरवाजा बन्द किया और उस वक्त सांकल लगा रहा था, जब नसीम ने पूछा—"ये क्या कर रहे हो, रहटू?"
"क्यों?" वह पलटकर बोला— "क्या मैं ऐसा कुछ कर रहा हूं जो यहां कोई नहीं करता?"
"न.....नहीं, ये बात नहीं है।"
"फिर क्यों कुंवारी कन्या की तरह मरी जा रही हो, दरवाजा बन्द कर लेना यहां कोई नई बात तो नहीं है—माना कि तुम्हें दरवाजा खुला रखने में भी कोई शर्म नहीं आती होगी, मगर यहां आने वालों को कम-से-कम इतनी शर्म तो होती है।"
"तुम गलत समझ रहे हो रहटू।" नसीम गिड़गिड़ा-सी उठी—"दरअसल तुम जानते हो....यह टाइम मुजरे का है।"
रहटू ने सपाट स्वर में कहा— "आज तुम मुजरा नहीं कर सकोगी।"
"क.....क्यों?" वह चिहुंक उठी।
"सबसे पहली बात ये कि दरवाजा मैंने उसके लिए बन्द नहीं किया है जिस लिए तुम समझ रही हो।" निरन्तर उसकी तरफ बढ़ रहे रहटू ने कहा— "दरअसल मैं तुमसे कुछ ऐसी बातें करने आया हूं, जिन्हें किसी अन्य ने सुन लिया तो शायद तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं होगा और वे बातें ऐसी भी हैं कि सुनने के बाद तुम्हारा मूड इतना उखड़ जाए कि आज के बाद मुजरा भी न कर सको।"
"ऐसी क्या बात है?"
"मैं सुरेश के बारे में बात करने आया हूं।"
"स.....सुरेश।" नसीम बानो उछल पड़ी—"क.....कौन सुरेश?"
"करोड़पति सेठ जानकीनाथ का लड़का सुरेश, मेरे मरहूम दोस्त मिक्की का भाई सुरेश, बल्कि यह कहूं तो ज्यादा उचित होगा कि मिक्की का हत्यारा सुरेश।"
"म.....मगर मेरा उस सुरेश से क्या संबंध?"
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