RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"अच्छा!" रहटू ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा— "उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं है?"
धाड़-धाड़ करते दिल पर काबू पाने का प्रयास करती नसीम ने कहा— "सेठ जानकीनाथ तो मेरे पास आता था, एक दिन हम बड़कल लेक में नौका विहार कर रहे थे कि नाव डूबने से उसकी मृत्यु हो गई—उस दौरान एक-दो बार सुरेश से मुलाकात हुई थी, इससे ज्यादा मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं है।"
उसे घूरते हुए रहटू ने अजीब स्वर में कहा— "सच?"
"स...सच।" नसीम बानो बड़ी मुश्किल से कह पाई।
“ ये है कि तुम अपने रसभरी गुलाबी होंठों से कुछ और बता रही हो और तुम्हारा ये हसीन चेहरा, नशीली आंखें और सुर्ख गाल कुछ और ही कह रहे हैं।"
"क.....क्या मतलब?"
"शीशे के सामने बैठी हो, जरा पलटकर गौर से अपना अक्स देखो—अपने हसीन मुखड़े पर तुम्हें हवाइयां उड़ती नजर आएंगी, आंखें शेर की मांद में फंसी हिरनी-की-सी लग रही हैं—और ये सब लक्षण इस बात के गवाह हैं कि मुझसे सरासर झूठ बोलते वक्त तुम बेहद डरी हुई हो।"
"न.....नहीं तो।" वह कुछ और ज्यादा बौखला गई।
"खैर.....न सही, थोड़ी देर के लिए उसी को सच मान लेता हूं—जो तुम होंठों से कह रही हो।" रहटू अपने एक-एक शब्द पर इतना जोर डालता हुआ कह रहा था कि नसीम के होश उड़े जा रहे थे—"यह तो मानती हो कि सेठ जानकीनाथ के लड़के सुरेश से तुम अपरिचित नहीं हो?"
"हां।" नसीम बानो का हलक सूख गया था।
"मुझे उसका मर्डर करना है।"
"क्या!" नसीम अन्दर तक हिल उठी।
"हां।"
नसीम बानो हक्की-बक्की रह गई।
बोले भी तो क्या?
जबकि रहटू ने पुनः कहा— "तुमने पूछा नहीं, पूछो.....क्यों?"
"क.....क्यों?" उसके मुंह से मानो जबरदस्ती निकला।
"क्योंकि वह मेरे यार का हत्यारा है, मिक्की की मौत का जिम्मेदार वही है—अगर उस कमीने ने मिक्की को दस हजार रुपये दे दिए होते तो मेरे यार ने आत्महत्या न की होती....दस हजार रुपये लोग उसके हाथ के मैल के दे सकते हैं।"
"म.....मगर इन सब बातों का मुझसे क्या मतलब?"
रहटू ने साफ शब्दों में कहा— "इस मर्डर में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"
"म.....मेरी मदद?" नसीम बानो के छक्के छूटे जा रहे थे, काटो तो खून नहीं, इतनी ज्यादा नर्वस हो चुकी थी वह कि बड़ी मुश्किल से
कह पाई—"भला मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं?"
"क्यों, जब जानकीनाथ के मर्डर में तुम उस हरामजादे की मदद कर सकती हो तो उसके मर्डर में मेरी मदद क्यों नहीं कर सकतीं?"
नसीम बानो हतप्रभ।
जैसे लकवा मार गया हो उसे।
होश उड़ गए, मस्तिष्क में धमाके से हो रहे थे—नसों में दौड़ता समूचा खून जैसे पानी में तब्दील होता चला गया—सामने खड़े अत्यन्त नाटे रहटू को वह ऐसी नजरों से देख रही थी मानों वह उसे कुतुबमीनार से कई गुना ज्यादा लम्बा नजर आ रहा हो, उसके मुंह से बोल न फूटा, जबकि उस अत्यन्त नाटे शैतान ने कहा— "यह कहकर टाइम बर्बाद करने की चेष्टा मत करना नसीम बानो कि मैं गलत कह रहा हूं।"
"क.....क्या मतलब?" बुत बनी खड़ी नसीम बानो के मुंह से निकला।
"मैं जानता हूं कि वह दुर्घटना नहीं, बल्कि सुरेश और तुम्हारी साजिश थी, जानकीनाथ क्योंकि तैरना नहीं जानता था, अतः सुरेश ने पहले ही उस नाव की तली में छेद कर दिए थे जिसमें तेरह नवम्बर को तुम्हें नौका-विहार करना था।"
"य.....ये झूठ है, गलत है।" तंद्रा टूटते ही नसीम चीख पड़ी—"तुम्हें किसी ने गलत इन्फॉरमेशन दी है, रहटू, इस बात में रत्ती बराबर भी सच्चाई नहीं है।"
"तुम्हारी ये कोशिश बिल्कुल बेकार है।" रहटू ने आराम से कहा।
"क्यों?"
"क्योंकि सच्चाई मुझे ठीक उसी तरह पता है जिस तरह तुम्हें.....इस काम के सुरेश से तुमने पांच लाख तय किए थे, चार मिल चुके थे—एक अभी बाकी है—मनू और इला का नाम लेकर जो रुपये तुम उससे ऐंठ रही हो, वह इस हिसाब से अलग है।"
"क.....कहना क्या चाहते हो?"
"सुरेश भले ही तुम्हारे झांसे में आया हुआ हो मगर मैं नहीं आ सकता। जानता हूं कि दिल्ली के इस छोर से उस छोर तक मनू और इला नाम के बदमाश कहीं नहीं पाए जाते और यदि बाहर से बदमाश दिल्ली में कदम रखता है तो उसका नाम रहटू को सबसे पहले पता
लगता है—मनू और इला वास्तव में तुम्हारे दिमाग की कल्पनाओं से पैदा हुए ऐसे बदमाश हैं, जिनका नाम लेकर तुम अपने गुर्गों से खिंचवाए हुए एक फोटो के जरिए सुरेश से नम्बर दो की कमाई करती हो।"
नसीम बानो को सांप सूंघ गया।
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