FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:09 PM,
#48
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"यानी उसके बाद तू आराम से सुरेश की दौलत को भोग सकेगा?"
"उसमें तेरा हक भी मेरे बराबर ही होगा रहटू।" मिक्की ने भावुक स्वर में कहा— "असल में तो यह तेरी जीत होगी दोस्त, किन्तु
नसीम के अलावा एक और व्यक्ति है, जिसका इलाज किए बगैर शायद हमें चैन न मिलेगा।"
"वह कौन?"
"सुरेश की हत्या का तलबगार।"
"ओह हां।”
“मगर मुझे लगता है अभी हमें अपने ध्यान को नसीम पर केन्द्रित रखना चाहिए।"
"हत्या ऐसे ढंग से हो कि हममें से कोई पकड़ा न जाए और यदि हत्या दुर्घटना या स्वाभाविक मौत नजर आए तो निहायत ही बेहतर होगा।"
"नसीम को वहां लाना मेरा काम है जहां तू कहेगा, यह सोचना तेरा काम है कि हत्या कैसे होनी चाहिए—करूंगा मैं, मौजूद तू भी वहां
रहेगा और नसीम के साथ ही आएगा, क्योंकि मैं तो नियत स्थान पर उसे यह कहकर पहुंचाऊंगा कि तुम्हें लेकर वहां पहुंचे—उसकी नजर में तो मैं तेरा ही कत्ल करने वाला होऊंगा न?"
¶¶
मिक्की ने विजयी मुस्कान के साथ कहा— "अब भी आपका सन्देह दूर हुआ या नहीं, इंस्पेक्टर म्हात्रे?"
"नहीं।" उसे घूरते हुए गोविन्द म्हात्रे ने शुष्क स्वर में कहा।
"अब भी नहीं, क्यों?" मिक्की के मस्तक पर बल पड़ गए।
"क्योंकि यह बात मेरी समझ में अब आ रही है कि तुम इतनी आसानी से अपने फिंगर प्रिन्ट्स देने के लिए तैयार हो गए थे?"
"क्यों भला?"
"कील-हथौड़ी से नाव में छेद करते वक्त तुमने प्लास्टिक फिंगर प्रिन्ट्स का इस्तेमाल किया होगा, तुम जानते थे कि वे निशान तुम्हारी उंगलियों के निशान से नहीं मिलेंगे, सो बिना हुज्जत किए अपने फिंगर प्रिन्ट्स देने के लिए तैयार हो गए।"
"तुम मेरी उंगलियों के निशान इसलिए ले गए थे न कि उन्हें कील-हथौड़ी से बरामद निशानों से मिलाने पर दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा?"
"सोचा तो यही था।"
"वे निशान एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं?"
"आपको यही बताने तो मैं यहां आया था।"
"तो फिर?" मिक्की गुर्रा उठा—"मुझ ही पर सन्देह करते रहने की आपके पास अब आखिर क्या वजह रह गई?"
"मजे की बात ही यह है मिस्टर सुरेश कि इस सारे मामले में तुमने फिंगर प्रिन्ट्स को जरूरत से ज्यादा अहमियत दे दी, जबकि
आधुनिक अपराध-जगत में फिंगर प्रिन्ट्स को इतनी अहमियत नहीं दी जा सकती।"
"क्यों?"
"क्योंकि अपराध-जगत में अब प्लास्टिक सर्जरी वाले फिंगर प्रिन्ट्स का इस्तेमाल बढ़ गया है, पहले जुर्म करते वक्त मुजरिम इसलिए हाथों में दस्ताने का इस्तेमाल करते थे ताकि घटनास्थल पर उंगलियों के निशान न छूटें—और अब जब से मुजरिम जुर्म करते वक्त उन्हें पहनने लगे हैं ताकि वहां डुप्लीकेट निशान छूटें, पुलिस किसी तरह यदि असली मुजरिम तक पहुंच भी जाए तो वह अपने वास्तविक निशान देकर साफ चकमा दे दे, क्योंकि वे निशान आपस में मेल तो खाएंगे नहीं।"
"और मैंने ऐसा किया है?" मिक्की गुर्राया।
"यकीनन।"
मिक्की झुंझला उठा—"कोई सबूत है तुम्हारे पास?"
"सबूत होता तो आपसे बात न कर रहा होता।"
"तो क्यों मेरे पीछे पड़े हो, मेरे पीछे पड़ने का हक तुम्हें किसने दिया है—या किसी से पैसे खाकर मेरे पीछे पड़े हो?"
म्हात्रे ने मोहक मुस्कराहट के साथ कहा— "किसी पर रिश्वत का आरोप लगाने से पहले बेहतर है कि आप उसका सर्विस रिकॉर्ड देख लें और मेरे सर्विस रिकॉर्ड में ये पंक्तियां अण्डरलाइन हैं कि इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे एक ऐसी शख्सियत है जिसे कम-से-कम खरीदा नहीं जा सकता।"
"अगर वे लाइन सच होती तो.....।"
"तो?"
"बगैर किसी सबूत के आप बार-बार मुझे ही हत्यारा न मान रहे होते।"
"मैं फिर कहूंगा मिस्टर सुरेश कि हत्यारे आप ही हैं—मेरे इस विश्वास का आधार वे गवाह हैं जिन्होंने तेरह नवम्बर से पहले आपको नसीम बानो से मिलते देखा है। उस वक्त तक बेशक आप सड़कों पर दनदनाते रहिए, जब तक मैं सबूत नहीं जुटा लेता, क्योंकि उसके बाद आपको यह मौका नहीं मिलेगा।" कहने के बाद मिक्की के जवाब का इन्तजार किए बगैर गोविन्द म्हात्रे फुर्ती के साथ अपनी एड़ियों पर घूमा और टक्-टक् करता हुआ कमरे के बाहर निकल गया।
अपने बेड पर मिक्की अवाक्-सा बैठा रह गया था।
म्हात्रे के अन्तिम शब्द हथौड़े की शक्ल अख्तियार करके उसके जेहन पर जोरदार चोट कर रहे थे—अब मिक्की को लग रहा था कि गोविन्द म्हात्रे नाम का ये इंस्पेक्टर बेहद खतरनाक है—अगर उसे न रोका गया तो किसी-न-किसी मामले में वह उसे फंसा ही लेगा—फिंगर प्रिन्ट्स पृथक होने के बावजूद कम्बख्त उस लाइन से नहीं भटक रहा, जिस पर मिक्की उसे नहीं चाहता था।
जाने कितनी देर तक मिक्की उसके बारे में सोचता रहा। चौंका तब जब फोन की घंटी ने घनघनाकर तंद्रा भंग की, रिसीवर उठाकर उसने कहा— "हैलो।"
"यस माई डियर, मिक्की, मैं रहटू बोल रहा हूं।"
"कहो, क्या रिपोर्ट है?"
"रिपोर्ट बड़ी धांसू है प्यारे, क्या अभी तक नसीम बानो ने तुमसे सम्पर्क करके कल का प्रोग्राम सेट नहीं किया?"
"नहीं तो।"
"कर लेगी।"
"वहां हुआ क्या, कुछ तो बता।"
"मैं कुछ देर पहले उसके कोठे से लौटा हूं।" रहटू ने बताया, "जाते ही मैंने उसे वह प्लान सुनाया जो तूने सैट किया था—पहले तो आनाकानी करती रही, फिर मेरे दबाव के सामने उसे घुटने टेकने ही पड़े—तेरे कत्ल की कल्पना से शायद उसे डर लग रहा है।"
"कत्ल की कल्पना से डर लगता ही है, रहटू।"
"क्या तुझे भी उसके कत्ल की कल्पना से डर लग रहा है?"
“मुझे....?” मिक्की हंसा—“नहीं तो।”
"हां, तुझे क्यों डर लगने लगा......पक्का जो हो चुका है।"
मिक्की हंसा और इस हंसी में दूसरी तरफ से रहटू ने भी साथ दिया। हंसी के बाद वह बोला— "मैं सोच-सोचकर हैरान हूं कि अगर नसीम बानो को यह पता लग जाए कि कल बुद्धा गार्डन में जहरयुक्त आइसक्रीम तेरे नहीं, उसके हिस्से में आनी है तो उसकी क्या हालत हो?"
"बुद्धा गार्डन पहुंचने से पहले ही मर जाएगी।"
"खैर।" रहटू ने कहा— "आज रात तक किसी समय तेरे पास नसीम बानो का ये पैगाम पहुंच जाएगा कि कल वह तेरे साथ बुद्धा गार्डन की सैर करना चाहती है—जाहिर है कि थोड़ी बनावटी ना-नुकुर के बाद तुझे यह ऑफर स्वीकार कर लेनी है—उसके बाद, कल बुद्धा गार्ड़न में तेरे रास्ते का सबसे बड़ा कांटा साफ हो जाएगा—उसके बाद न तुझे कोई जानकीनाथ का हत्यारा साबित कर सकेगा और न ही यह जान सकेगा कि तू वास्तव में सुरेश है ही नहीं—ये राज सिर्फ हम दोनों तक ही सीमित रहेगा कि सुरेश का कत्ल तो मिक्की के हाथों उसी दिन हो चुका था जिस दिन दुनिया ने मिक्की को मृत मान लिया—वाकई तेरे दिमाग में जबरदस्त प्लानिंग आई दोस्त.....कोई सोच भी नहीं सकता कि जो मर चुका है, वह सुरेश बना घूम रहा है और जो घूम रहा है, वह मर चुका है।"
"ये बातें फोन पर करने की नहीं हैं, रहटू।"
"सॉरी यार, खैर......कल बुद्धा गार्डन में मिलेंगे।"
"फिक्र मत कर, नसीम की लाश पुलिस को तब मिलेगी जब मैं अच्छी तरह उसी की नहीं, बल्कि उसके कोठे की भी तलाशी ले चुका हूंगा।"
"ध्यान से।"
"ओ.के.।" इन शब्दों के साथ रहटू ने रिसीवर रख दिया।
¶¶
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RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन - by desiaks - 06-13-2020, 01:09 PM

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