RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"अजीब जमाना आ गया है।" वह बड़बड़ाया—"अब तो बाजार में कोई चीज खाने का धर्म नहीं रहा, जब गुण्डे-बदमाश वस्तुओं में जहर मिलाकर बेचने लगे हैं तो बाकी बचा क्या?"
"मेरा दम तो अभी तक यही सोच-सोचकर सूखा जा रहा है कि जो कप वह हमें दे रहा था, यदि उन्हीं में से किसी में जहर होता तो क्या होता?" नसीम बानो ने उसी के सुर में सुर मिलाया।
अपने मन का चोर छुपाने के लिए मिक्की ने कहा— "जाने वह किसे मारना चाहता था?"
"ये गुण्डे-बदमाश मारने के तरीके भी अजीब-अजीब निकाल लेते हैं।"
इस तरह।
एक-दूसरे को बेवकूफ बनाते हुए वे टहलते रहे, एक स्थान पर ठिठककर मिक्की ने ट्रिपल फाइव सुलगाई और सुलगाने के बाद अभी चेहरा ऊपर उठाया ही था कि चौंक पड़ा।
ठीक सामने से चले जा रहे इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे पर नजर पड़ते ही उसका समूचा जिस्म इस तरह सुन्न पड़ता चला गया जैसे अचानक लकवे ने आक्रमण कर दिया हो।
म्हात्रे इस वक्त सादे लिबास में था।
बगैर पुलिसवर्दी के हालांकि मिक्की उसे पहली बार देख रहा था, परन्तु उस अत्यन्त पतले व्यक्ति को पहचानने में वह कतई भूल नहीं कर सकता था।
सोने का लाइटर हाथ में रह गया।
सिगरेट होंठों पर झूल रही थी। कश तक लगाने का होश नहीं था उसे और इस कदर होश गुम होने की वजह थी, म्हात्रे की यहां मौजूदगी।
म्हात्रे को सीधा अपनी ओर आता देखकर मिक्की के होश उड़ गए और उस वक्त तक गुमसुम ही था, जब उसके अत्यन्त नजदीक पहुंचकर म्हात्रे ने अपनी पतली उंगली वाला हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा— "हैलो मिस्टर सुरेश!"
"हैलो!" मजबूर मिक्की को हाथ बढ़ाना पड़ा।
कुटिल मुस्कराहट के साथ उसने कहा— "तो बाग में सैर हो रही है? ये मोहतरमा कौन हैं?"
मिक्की ने संभलकर कहा— "हैं कोई, आपको मेरी व्यक्तिगत जिन्दगी में दखल देने का कोई हक नहीं है।"
"मैं सिर्फ इन मोहतरमा के हसीन चेहरे को देखने का ख्वाहिशमन्द हूं, इसमें भला आपकी निजी जिन्दगी में दखल देने वाली क्या बात है?"
"ये मेरी गर्लफैड है और नहीं चाहती कि कोई इसे मेरे साथ देखे, आप हमारी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती इसका नकाब नहीं हटा सकते।"
"आज मैं यहां सिर्फ इनके चेहरे से ही नहीं, आपके चेहरे से भी नकाब हटाने के लिए हाजिर हुआ हूं बन्दानवाज।" एक-एक शब्द को चबाते हुए म्हात्रे कहता चला गया—"आज सारे पर्दे हट जाएंगे।"
मिक्की के पसीने छूट गए, मुंह से बोल न फूटा।
जबकि आंखों में चमक लिए, मिक्की को लगातार घूरता हुआ म्हात्रे बोला— "ये वही मोहतरमा हैं न जो स्वयं भी आपसे अपनी किस्म के व्यक्तिगत सम्बन्धों को नकारती रहीं और आप भी बार-बार यह कहते रहे कि नसीम बानो से आपके कोई व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं हैं।"
"य......ये नसीम नहीं है।" मिक्की गला फाड़कर चीख पड़ा।
म्हात्रे ने उतने ही आहिस्ता से कहा— "ये नसीम बानो ही हैं।"
"मैं कहता हूं होश में रहो इंस्पेक्टर वर्ना.....।"
"होश तो तुम्हारे ठिकाने लगाने हैं, मिस्टर सुरेश।" मिक्की की दहाड़ को बीच ही में काटकर म्हात्रे ने इस बार पुलिसिए स्वर में कहा— "तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी होगी कि एक तरफ मुझसे लगातार कहते रहे कि नसीम से तुम्हारा कोई व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं है, दूसरी तरफ इसके साथ बागवानी भी कर रहे हो।"
"मैं फिर कहता हूं, इंस्पेक्टर......।"
"खामोश!" दहाड़ने के साथ ही इस बार म्हात्रे ने अपना रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया—"जितनी बकवास कर रहे हो, कुछ देर बाद वह सारी तुम्हें उल्टी पड़ने जा रही है।"
"क.....क्या मतलब?" मिक्की हकला गया।
इस बार म्हात्रे ने सीधा नसीम से कहा— "नकाब हटाओ नसीम बानो।"
नसीम ने उसकी बांदी के समान हुक्म का पालन किया।
ऐसा देखकर मिक्की के रहे-सहे होश भी उड़ गए। यह बात उसी कल्पनाओं से एकदम बाहर थी कि नसीम तनिक भी विरोध किए बिना ऐसा करेगी।
"इसकी तरफ देखो मिस्टर सुरेश और फिर कहो कि यह नसीम नहीं है।"
मिक्की गुम-सुम हो गया।
काटो तो खून नहीं।
इंस्पेक्टर म्हात्रे ने दूसरा हाथ हवा में उठाकर दो बार चुटकी बजाई और ऐसा होते ही दाईं-बाईं झाड़ियों से दो वर्दीधारी पुलिसमैन निकलकर उनकी तरफ लपके—उनमें से एक के पास हथकड़ी देखकर मिक्की का मस्तिष्क सुन्न पड़ गया।
"तुम्हें याद है न मिस्टर सुरेश कि मैंने क्या कहा था?" एक-एक शब्द पर जोर देता म्हात्रे बोला—“ किसी को गिरफ्तार कर लेता हूं तो, सजा तो उसे होती ही है—खासियत ये है कि पूरे केस के दरम्यान मैं उसकी जमानत भी नहीं होने देता और आज, इस क्षण मैं आपको गिरफ्तार कर रहा हूं—याद रखना, इस क्षण के बाद आप अपनी कोठी की सूरत नहीं देख पाएंगे।"
मिक्की बड़ी मुश्किल से कह पाया—"इतने सबूत हैं तुम्हारे पास?"
"सबसे बड़ा सबूत तो तुम अपने साथ ही लिए घूम रहे हो बेवकूफ—नसीम बानो, जानकीनाथ के मर्डर में तुम्हारी पार्टनर—फिलहाल तुम्हारे बचे-खुचे इरादों को धराशायी करने के लिए शायद इतना काफी है कि नसीम बानो ने सबकुछ स्वीकार कर लिया है—और अब, यह इस केस में सरकारी गवाह बन गई है।"
मिक्की का दिलो-दिमाग सचमुच धराशायी हो गया।
"करीब एक घण्टे पहले थाने में तुम्हारी मर्डर-पार्टनर सबकुछ स्वीकार कर चुकी है, इसी की योजनानुसार मैं यहां तुम्हारा इन्तजार कर रहा था।"
मिक्की का जी चाहा कि घूमे और नसीम की गर्दन पर अपने पंजे जमा दे।
¶¶
सुरेश के सेक्रेटरी के रूप में विमल मेहता का कोठी में आना-जाना था ही, अतः न उसे दरबान में रोकने की ताकत थी, न ही काशीराम कुछ कह सकता था। सो सबसे पहले उसने विनीता के कमरे में जाकर उसकी पर्सनल सेफ का लॉकर खाली किया।
कम-से-कम पच्चीस लाख की डायमंड ज्वैलरी थी वहां।
लॉकर को खाली करने के बाद अपना एयर बैग संभाले बीच का दरवाजा खोलकर सुरेश के कमरे में आया—वह घर का भेदी था। यह बात इसी से जाहिर है कि बिना किसी उलझन के उसने सुरेश की नम्बरों वाली सेफ खोल ली।
सौ-सौ के नोटों की अनेक गड्डियां उसमें ठुंसी थीं।
सभी को एयर बैग में डालने के बाद वापस विनीता के कमरे से होता हुआ गैलरी में पहुंचा.....इस रोमांच से कांपते हुए उसने जानकीनाथ के कमरे में कदम रखा कि अब तक वह कितने का मालिक बन चुका है?
जानकीनाथ की तिजोरी खाली करते-करते उसका बैग ठसाठस भर गया, चेन बन्द करके अभी खड़ा हुआ ही था कि—जानकीनाथ की रिवॉल्विंग चेयर की चूं-चां उसके कानों में पड़ी।
मुंह से आतंक में डूबा स्वर निकला—"क.....कौन है?"
रिवॉल्विंग चेयर विद्युत गति से घूम गई।
और।
विमल के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई हो, चेहरे पर दुनिया भर की हैरत लिए, आँखें फाड़े वह चेयर पर बैठी शख्सियत को देखता रह गया।
वे जानकीनाथ थे।
हां, जानकीनाथ।
बड़ी-बड़ी सफेद मूंछों, चौड़े और रुआबदार चेहरे वाले जानकीनाथ—उनके दोनों कानों से स्पर्श होते सफेद बाल परम्परागत अन्दाज में चांदी के मानिन्द चमक रहे थे—बाएं हाथ की मोटी उंगलियों के बीच सुलग रहा था एक सिगार।
दांए हाथ में रिवॉल्वर था।
वह रिवॉल्वर, जिसकी नाल का मुंह विमल को साक्षात् मौत के जबड़े के रूप में नजर आया—टांगें ही नहीं बल्कि समूचे अस्तित्व के साथ उसके दिलो-दिमाग भी किसी सूखे पेड़ के पत्तों के मानिन्द कांप रहे थे।
मुंह से आवाज न निकल सकी, जुबान तालू में जा चिपकी थी।
"क्यों?" फिजा में जानकीनाथ की रौबीली आवाज गूंजी—"हमें जिन्दा देखकर हैरान हो, सोच रहे हो कि ये अनहोनी हो कैसे सकती है?"
विमल अवाक्।
"अपनी तरफ से हमारा मर्डर करने में तुमने कोई कमी नहीं छोड़ी, हम तैरना नहीं जानते, इस जानकारी का तुमने खूब फायदा उठाया, मगर जिसकी मौत नहीं आई उसे कोई नहीं मार सकता विमल मेहता.....हमें महुआ ने बचा लिया था, बेहोश अवस्था में वह हमें अपने घर ले गया—होश में आने पर उसने बताया कि वह दुर्घटना नहीं, बल्कि हमारे मर्डर की कोशिश थी—इसकी जानकारी उसे नाव से पानी उलीचते वक्त तली में बनाए गए छेद देखकर हुई—हम उलझन में पड़ गए कि हमारे मर्डर की कोशिश कौन कर सकता है—सोचा कि पता लगाने का इससे बेहतर रास्ता नहीं कि अपने मर्डर को हुआ 'शो' कर दें—तब एक लावारिस लाश खरीदकर हमने उसे जानकीनाथ बनाया—हां, विमल मेहता, वह एक भिखारी की लाश थी, जिसे बुरी तरह फूली और वीभत्स होने के कारण तुम्हीं ने नहीं बल्कि पुलिस ने भी हमारी लाश समझ लिया था।''
हक्का-बक्का विमल सुन रहा था।
जानकीनाथ ने पूरी सतर्कता के साथ सिगार में कश लगाया और बोले—"गायब होने के बावजूद यह पता नहीं लगा पा रहे थे कि हमारे मर्डर का षड्यन्त्र किसने रचा और एक दिन महुआ ने बताया कि उसके पास नसीम बानो आई थी, नसीम ने उससे जो बातें कीं उन्हें सुनकर हम इस नतीजे पर पहुंचे कि जल्दी-से-जल्दी हमारी सम्पत्ति का मालिक बनने के लिए सुरेश ने यह कोशिश की—हमारे तन-बदन में यह सोचकर आग लग गई कि जिसे गोद लेकर हमने अपना वारिस बनाया, वह इतना खतरनाक सपोला निकला—उसी वक्त हमने सुरेश को मजा चखाने का फैसला किया, महुआ को निर्देश दिया कि यदि इस बारे में पुलिस कुछ पूछे तो सचमुच उसे हर घटना से अनजान बने रहना है—हां, शुरू में हम यह समझे थे कि नसीम बानो के साथ सुरेश मिला है, इसीलिए एक बार उसके कत्ल की कोशिश की—भगवान का शुक्र है कि वह नाकाम हो गई, वर्ना तुम्हारे फैलाए षड्यंत्र में फंसकर हम सचमुच अनर्थ कर चुके थे—बस अड्डे पर सुरेश और नसीम के बीच होने वाली बातों से तो हमारे दिमाग में पूरा खाका ही स्पष्ट हो गया था कि हमारे मर्डर का प्लान क्या था—यदि उस वक्त हम नसीम बानो की जगह सुरेश का पीछा करते तो शायद हकीकत से वंचित रह जाते, परन्तु नसीब अच्छा था कि बस अड्डे से हमने नसीम का पीछा किया—नसीम को उसकी करनी का मजा चखाने का निश्चय हम उसी दिन कर चुके थे—सो, गुप्त तरीके से कोठे में घुसे और तब हमने नसीम, विनीता और तुम्हारी वे बातें सुनीं जिन्हें करते वक्त तुम लोग सुरेश की स्वीकारोक्ति पर हैरान थे—वहां हमें अपने असली हत्यारों के चेहरे देखने को मिले और साथ ही यह भी पता लगा कि हमारे मर्डर के जुर्म में हमारे ही बेटे को फंसाने की लगभग सारी तैयारी पूरी हो गई है—यह सोचकर हम भी हैरान हो उठे कि सुरेश नसीम के साथ हमारी हत्या में शामिल नहीं था तो बस अड्डे पर वह ऐसी बातें क्यों कर रहा था, जैसे वही हत्यारा हो—फिर हमें लगा कि वास्तव में वह अपने अन्दाज में तुम्हें चकमा देने की कोशिश कर रहा है—हमें उसकी नादानी पर प्यार आया, सोचा कि तुम लोगों को धोखा देने की वह कितनी बेवकूफाना हरकत कर रहा है—लगा कि यदि जल्दी ही हमने कुछ न किया तो वह मासूम तुम्हारे जाल में फंस जाएगा।"
विमल की तंद्रा अभी तक नहीं टूटी थी।
"अरे.....तुम तो जरूरत से ज्यादा हैरान हो, हमारे ख्याल से तुम्हें हैरान होना तो चाहिए था, मगर इतना ज्यादा नहीं—कम-से-कम विनीता की मौत के बाद तो यह अहसास हो ही जाना चाहिए था कि हम दुनिया में कहीं हो सकते हैं।"
विमल को लगा कि जानकीनाथ अभी तक इस रहस्य से वाकिफ नहीं है सुरेश, सुरेश नहीं बल्कि मिक्की है।
जानकीनाथ अपनी ही धुन में कहते चले गए—"आज तुम लोगों का खेल खत्म हो जाएगा विमल मेहता, कुछ देर बाद मेरे कमरे में तुम नहीं बल्कि तुम्हारी लाश पड़ी होगी और नसीम.....गन्दी नाली की उस दुमई को अपने हाथों से मारना भी हम पाप समझते हैं, उससे पुलिस ही निपटेगी।"
"प.....पुलिस?" विमल के मुंह से पहला शब्द निकला।
"हां पुलिस......जो कुछ तुम्हें अभी-अभी बताया, वह सब एक लिफाफे में बंद करके हम हम थाने में, इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे के एक सिपाही को यह कहकर दे आए हैं कि म्हात्रे के आते ही लिफाफा उसे दे—तुम्हारी हकीकत बताने के साथ वह लिफाफा—हमने वहां इसलिए भी दिया है ताकि म्हात्रे को पता लग जाए कि हमारा बेटा निर्दोष है, वह धाकड़ इन्वेस्टिगेटर भी आज तक यही समझ रहा है कि हमारी हत्या हमारे बेटे सुरेश ने की है।"
विमल का जी चाहा कि वह चीखे।
चीख-चीखकर जानकीनाथ को बताए कि वह तेरा बेटा सुरेश नहीं, बल्कि मिक्की है। तेरे बेटे का हत्यारा। मगर यह बात जानकीनाथ को बताने में उसे दूर-दूर तक अपना कोई फायदा नजर नहीं आया।
जानकीनाथ की मौजूदगी ने सारे समीकरण ही बदल दिए थे।
यह बात भी विमल की समझ में आ रही थी कि जो लिफाफा जानकीनाथ थाने में म्हात्रे के लिए छोड़कर आया है, वह उनकी समूची साजिश और थाने में चल रहे ड्रामें को एक ही झटके में धराशायी कर देगा।
अब की तरकीब उसे या नसीम को नहीं बचा सकती।
नसीम पूरी तरह फंस चुकी है।
मगर मैं.....।
मेरे पास अभी मौका है।
इस विचार ने बड़ी तेजी से उसके दिमाग में सरगोशी की—'फिलहाल मेरे रास्ते में एकमात्र अड़चन वह रिवॉल्वर है, अगर किसी तरह मैं उसे धोखा दे दूं तो साफ बचकर निकल सकता हूं—भाड़ में जाए नसीम बानो और मिक्की—साथ ही बूढ़ा भी, जो यह समझे कि सुरेश, उसका बेटा सुरेश ही है।'
इस वक्त विमल को सिर्फ खुद को बचाने की पड़ी थी।
बोला— "अगर आप मुझे बख्श दें सेठजी तो मैं एक ऐसा राज बता सकता हूं, जो आपको तबाह होने से बचा लेगा।"
"अच्छा!" कुटिल मुस्कराहट के साथ जानकीनाथ ने व्यंग्य-भरे स्वर में कहा— "अब भी कोई ऐसा राज है जो हमें तबाह कर सके?"
"हां सेठजी।" विमल ने बाएं जूते के पंजे से दांए पैर की ऐड़ी जूते से बाहर निकलते हुए कहा— "मुझे इस बात पर हैरत है कि वह राज अभी तक आपको पता क्यों नहीं लगा—क्या आपने कल वे बातें नहीं सुनीं जो आपकी सुईं का शिकार होने के बाद नसीम के कोठे पर आकर विनीता ने हमें बताई थीं?"
"हमें बार-बार छुपकर बातें सुनने की आदत नहीं।"
बिना फीते के दाएं जूते को अपने पैर के पंजे में झुलाते हुए विमल ने पूछा—"इसका मतलब आपने कभी सुरेश और रहटू की बातें भी नहीं सुनीं?"
"र.....रहटू?" जानकीनाथ चौंके।
"हां रहटू।" ये शब्द कहने के साथ ही अच्छी तरह निशाना तानकर विमल ने दाएं पैर से अपना जूता जानकीनाथ के हाथ में दबे रिवॉल्वर पर मारा।
जानकीनाथ हड़बड़ा गए।
जूता चूंकि सही निशाने पर लगा था, अतः रिवॉल्वर उनके हाथ से निकल गया, जानकीनाथ को कोई मौका नहीं देने की गर्ज से जूते के पीछे ही पीछे विमल ने स्वयं भी जम्प लगा दी।
परन्तु—
तब तक रिवॉल्विंग चेयर पर बैठे जानकीनाथ घूम चुके थे।
झोंक में विमल कुर्सी की पुश्तगाह से टकराकर एक चीख के साथ पीछे उलट गया, जबकि जानकीनाथ सीधे फर्श पर पड़े रिवॉल्वर पर झपटे।
रिवॉल्वर हाथ में आया ही था कि विमल ने उन्हें दबोच लिया—विमल का एक हाथ जानकीनाथ की उस कलाई को जकड़े हुए था जिसमें रिवॉल्वर था।
उनमें संघर्ष होने लगा।
पांच मिनट की जद्दो-जहद के बाद जानकीनाथ अपने हाथ में दबे रिवॉल्वर की नाल का रुख कमरे की छत की ओर करने में कामयाब हो गए—उन्होंने यह महसूस किया कि विमल उन पर भारी पड़ रहा है—इस उम्मीद के साथ ट्रिगर दबा दिया कि फायर की आवाज से कोई उनकी मदद के लिए आ सकता है।
परन्तु।
गोली चलने के साथ ही कमरे में विमल के हलक से निकलने वाली चीख गूंज गई। गाढ़े खून के छींटों ने उछलकर उनके चेहरे को रंग दिया।
उनके ऊपर पड़े विमल का जिस्म निर्जीव हो चुका था।
जानकीनाथ बौखलाकर फर्श से उठे। उनके साथ ही विमल का जिस्म भी एक कलाबाजी-सी खाता वापस 'पट्ट' से फर्श पर गिरा।
वह लाश में तब्दील हो चुका था।
|