RE: Maa Sex Kahani माँ का मायका
(Episode 6)
रात को खाना खाने के वक्त मैं पूरा शांत था बस किसी ने पूछा तो थोड़ा मुस्करा के हा या ना में सर हिलाक़े जवाब दे रहा था।मैं आज ऑफिस गया था।नाना और दोनो मामा ने खुशी जाहिर की उन्हें अच्छा लगा की मैं उनके व्यापार में दिलचस्पी ले रहा हु क्योकी रवि भैया का उसमे कुछ दिल नही था वो फोटोग्राफर बनना चाहते थे।पर नाना और मामाओं के खुशी से छोटी मामी खुश नही थी।और ओ होगी ही नही।क्योकि अगर मैं व्यापार में जुड़ गया तो उन्हें बहोत ही घाटा होगा न।पर मेरे से दुश्मनी हमेशा घाटे की ही रहती है ये वो समझ नही पाई।
पूरे खाने के दरमियान मैं बोलना तो दूर आंखे भी नही मिलाई।मेरा गुस्सा बहोत ज्यादा हो गया था।क्योकि ये थोड़ी बात हो जाती है की हवस है तो कुछ भी कही भी।वो भी सगे बेटे के रूम में।
दूसरे दिन सुबह मैं लेट उठा,करीब 11.30 बजे।गुस्सा मुझे बहोत आता है पर उतना सहन नही हो पाता।रात को सर थोड़ा दर्द होने लगा तो गोली ली तो नींद ज्यादा आ गयी थी।इसलिए उठने में देरी हो गयी।तैयार होकर खाना खाने नीचे गया।खाना खत्म होते ही बड़ी मामी बोली की नाना और मामा लोग को खाना देदो।ये अभी मेरी दैनंदिनि हो गयी थी।
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◆बड़ी मामी-सीमा,उम्र 40 से 45,बाकी तो आप जानते ही हो।
बड़ी मामी:ये खाना ऑफिस पहुचा दे।और हा मैं पूछना भूल गयी,कल भी गए थे तो क्या पसन्द आया ऑफिस अभी रोज जाना है?
मैं:ठीक है मामी,आप कहती है तो चला जाऊंगा वैसे भी घर में कुछ करता भी नही हु।
माँ:तुम्हारे लिए भी कुछ बांध दु ,उधर भूख लगी तो,ऑफिस में रुक कर काम भी सिख लेना।
मैंने मा को अइसे नजरअंदाज किया जैसे वो वह ओर है ही नही।
मैं:बड़ी मामी,और कुछ नही है तो क्या मैं निकलू,नही तो देर हो जाएगी नानाजी नाराज ही जाएंगे।
बड़ी मामी :नही कुछ नही बस इतनाही तुम निकलो ऑफिस के लिए।
मैं ऑफिस के लिए शिवकरण अंकल के साथ निकल गया।
इधर घर(किचन)में-
माँ रो रही थी।बड़ी मामी ने उन्हें संभालते हुए गले से लगा लिया
बड़ी मामी:अरे क्यो रो रही हो।ओ अभी गुस्सा है,रोने से कुछ नही होगा,शांत हो जाओ।
माँ:पर भाभी उसका ये बर्ताव मुझे सहन नही हो रहा।
बड़ी मामी:जैसे उसे तुम्हारा बर्ताव ठीक नही लगा वैसे ही न।जैसे तेरा दिल दुखना सही है वैसे उसका भी दिल दुखना सही है।
माँ को मामी का ताना कस के लगा।म
मा:पर उस गलती का अहसास है मुझे,मैं माफी भी मांग लुंगी।पर वो बात करे तो सही न।
बड़ी मामी:देख तुझे बताने या सलाह देने के लिए मैं भी साफ चरित्र की नही हु।पर तुझे क्या जरूरत थी घर में ये सब करने की।वो भी उसके ही कमरे में।
मा:मैं क्या करू।वीरू के पापा रोज चोदते थे।यहाँ आने के बाद आदत छूट जाती पर कान्ता के भाई के लपेटे में आ गयी।अभी ये आग सहन नही होती।
(बड़ी मामी को अभी छोटी मामी के उपर गुस्सा आ रहा था।उन्होंने शांत होकर बोला।)
बड़ी मामी:ठीक है तुम्हारी भावनाएं समझ रही हु।पर आजसे थोड़ा धीरज लो।
माँ:पर कल आप रूम में उसे समझाई न,क्या बोला वो,बोलो न।
(बड़ी मामी ने मेरे और उनमे हुई सब बाते मा को बताई।मा झट से खुर्ची पर बैठ गयी।उनको झटका सा लगा।)
मा:मतलब पति भी मर गया और बेटा भी।सच में इतनी बड़ी गलती कर दी।और वो डायन (छोटी मामी)उसने इतना बड़ा खेल खेला।
(मा जोर जोर से रोने लगी।मा की आवाज सुन के कान्ता जो बाहर थी वो भी अंदर आ गयी।)
बड़ी मा:सुशीला देख संभाल खुद को अभी हम तुम कुछ नही कर पाएंगे।तुझे तो मालूम ही होगा ना उसका गुस्सा।और ये बात भी अइसी नही की किसी और की हेल्प ली जाए।तुम जाओ रूम में जाके आराम करो।
मा अपने रूम में चली जाती है।
कान्ता:क्या हुआ बड़ी मेमसाब।दीदी रो क्यों रही है।
(बड़ी मामी ने सारा मसला शुरू से अभी तक का कान्ता को बता दिया।)
कान्ता:मुझे मालूम था ये कभी न कभी होने वाला था।इसलिए भाई को दूर भेज दिया।पर दीदी को ये सब करने की क्या जरूरत।सब एकसाथ फस जाएंगे।बाबूजी ने मुह नाना के पास खोला तो।
बड़ी मामी:मतलब तुम्हे मालूम था तो पहले क्यो नही बताया,इतना बड़ा झमेला नही होता।
कान्ता:देखो मेमसाब,आप बड़े घर के लोग अगर मैं बाबू जी से धोका करती तो मेरी खैर नही।उनका गुस्सा बहोत खतरनाक है।
बड़ी मामी:वो तो है।अब जो होना है सब वीरू के ऊपर है।
कान्ता(नटखट आवाज में ):बाकी मेमसाब ओ रात कैसी गयी?
बड़ी मामी:चुप बेशर्म कोई सुन लेगा तो आफत आ जाएगी।
कान्ता(धीमे आवाज में):बोलो ना प्लीज?!?!?!?!?
बड़ी मामी(शर्माते हुए):सच बोलू तो बहोत मजा आया।क्या तगड़ा लन्ड पाया है।चोदता भी मस्त है।
कान्ता:एकदम सही बात फरमाई।मेरे भाई से भी अच्छा चोदता है।
बड़ी मामी कान्ता को:ये तुमने ही बोल दिया ,सही किया।मैं बोलती तो बुरा मान जाती।
और दोनो हसने लगी।आज वैसे भी घर में वो दो और मा ही थी।बाकी लोग बाहर थे क्योकि।घर में कोई उनकी आवाज नही आयी,बाकी ओ की नही पर छोटी रंडी मामी उस टाइम जरूर किचन में होती थी,पर आज नही थी।
दृश्य गाड़ी में-
मैं:शिवकरण चाचा ये बलबीर के बारे में कुछ बता देंगे?
शिवकरण:अरे कुछ नही बाबू जी उम्र हो गयी उसकी।बस दारू के पैसे के लिए काम करता है।बाकी तो बीवी कमाती है।
मैं:बीवी क्या करती है?
शिवकरण:अपने ही फैक्टी में मजदूर है।कम पढ़े लिखे लोग है मजदूरी से पेट पाल लेते है।और बलबीर का खानदान तो नाना जी के पिताजी के पास से अपने यह पर काम करते आया है जैसे मेरा खानदान।
मैं:अच्छा मतलब कोई संतान नही है उसकी!?!
शिवकरण:नही बाबूजी है न एक बेटी है जिसकी शादी हो गयी।वो भी अपने ही फैक्टी में है।
मैं थोड़ा चौक सा गया।
मैं:अपने फेक्ट्री में क्या नाम है?
शिवकरण:अरे क्या नाम है उसका ,?????एकदम मुह पे है मेरे बस अभी याद नही आ रहा!!?!!?!!!!अरे हा याद आया उसका नाम है"रेखा"।
मैं:पर उसकी उम्र बहोत है।
शिवकरण:बीवी उसकी बहोत दयालु है भोली है।मंदिर पाठ वैगरा करती है।किसी मंदिर में मिली थी तो घर पे लेके आयी।इनको कोई बच्चा नही था न।पर आप कैसे जानते हो उसको।
मैं:कल फेक्ट्री में मिली थी।वो जाने दो बड़ी कहानी है।
हम फेक्ट्री में पहोच गए थे।मैं मुख्य ऑफिस में खाना रखने गया।उधर मुझे नानाजी मिले।
नाना जी:वाह बेटा अच्छा है तुम्हे देख सुकून मिला।
मैं मुस्कुराते:वो नाना जी खाना!!!!
नानाजी :अरे खाना वाना होता रहेगा पहले तुम्हारी पहचान करवा दु।
ऑफिस के स्टाफ और मैनेजमेंट स्टाफ से मेरी नानाजी ने पहचान करवाई।फिर फेक्ट्री गए।वहा एक स्टेज था (पब्लिक मीटिंग के लिए बनाया गया होगा)।मजदूरों का खाना खत्म हो चुका था।आखरी 5 मिनिट बचे होंगे।सबको वही बुला लिया और मेरी पहचान करवाई।सभी ने मेरा स्वागत किया।
नानाजी:देख वीरू,अभी से यह के कामकाज को सिख ले समझ ले,बहोत टाइम है पर अभी से सीखोगे तो आगे तकलीफ कम होगी।
(इसका मतलब था की जायदाद के पेपर पर मेरा भी नाम रोमन फॉन्ट में लिखा होगा।छोटी रंडिया अभी तेरे रेस में ये भी घोड़ा दौड़ेगा भी और जीतेगा भी।)
नाना ने एक आदमी को मुझे सब दिखाने के लीए बोला और वो अपने काम के लिए निकल गए।उन्होंने जो आदमी छोड़ा था वो वही था"सुपरवाइजर"।मैं उसको देख हस दिया जैसे कोई मजाक हुआ हो,उसके साथ।क्योकि उस बंदे के सारे बदन से पासिना बह रहा था।
मैं:फेक्ट्री का ऑफिस कहा है?
उसने उँगली दिखा के इशारा किया।मैं उधर जाने लगा तो वो भी मेरे पीछे आने लगा।
मैं:तुम्हे बोला है आने को।
वो ना में सर हिलाता है।
मैं:तो फिर क्यो पुंछ की तरह आ रहे हो।रेखा को अंदर भेजो और उसका काम तुम करो।
उसने हा में सर हिलाया और चला गया।
मैं अंदर ऑफिस में खुर्ची पर बैठा रेखा की राह देखने लगा।वो जैसे ही आयी।उसकी वही दरवाजे पे रोक कर उसकी मा को बुलाने बोला।वो चिंतित होकर मा को बुला लायी।दोनो मा बेटी मेरे सामने खड़ी थी।
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◆सीता:बलबीर की बीवी रेखा की मा,उम्र करीब 45 फेक्टरी में मजदूरी का काम करती है
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◆रेखा -बलबीर सीता की बेटी ,शादीशुदा ,करीब 30 से 35 की उम्र,फेक्ट्री में मजदूर
मैं बलबीर के बीवी से:जी आपका नाम?
वी:जी मेरा नाम सीता है बाबूजी।र
मैं:अच्छा तो सीता जी आपको मालूम है की आपके घर के लोग दुनिया में क्या गुल खिला रहे है।
सीता(रेखा को घूरते हुए):क्या हुआ साब कुछ गलती हुई क्या।
मैं:आपका पति मेरी मा के साथ रंगरेलियां मनाता है और आपकी ये पराये घर गयी बेटी आफिस के स्टाफ के साथ रंगरेलिया मानती है।क्या रंडीखाना बना रखा है क्या?
सीता (आंखे चौड़ी और डरी हुई ):माफ करना बाबूजी,आगे से ध्यान रखेंगे।अगर आप सजा देना चाहते हो तो दे सकते हो।
मैं:चलो आप नंगी हो जाओ।
सीता को लगा नही था की अइसा कुछ सुनने को मिलेगा
सीता:जीईईईई !!!!!
मैं:सीता जी आपने सही सुना ।नंगी हो जाओ।
सीता:पर बाबूजी ये कैसे सम्भव है।मैं आपके मा के उम्र की हो।
मैं:फिर क्या सजा कम करू क्या?!!!! आपके पतिदेव ने मेरे मा के साथ ही बिस्तर गर्म किया।उसका प्रायश्चित तो करना पड़ेगा।
सीता थोड़ी मायूस हो जाती है।उसका मन नही था पर उसको करना पड़ता है।
मैं:तुम्हे अलग से बोलू।आज चुत में खुजली नही हो रही।
मेरे डांटने से रेखा भी नंगी हो गयी।दोनो का शरीर कसा हुआ नही था।पर मादक और बहोत कमाल का था।
मैं भी नंगा होकर खुर्ची पे बैठा।पूरा कमरा बन्द किया।
मैं:रेखा चल मा के चुचे चूस।
रेखा ने अपने मुह को मा के चुचे पे रखा और चुसना चालू किया।सीता बस मुह से सिसकिया छोड़ रही थी।मैं सीता के पीछे गया और उसके गांड पे हाथ घुमाने लगा।उसके बाद रेखा की गांड का भी जायजा लिया।और जगह पर जाके बैठा।और लन्ड हिलाने लगा।
मैं:रेखा जी आपकी माताजी को अपने मुह से आझाद कर दो।और सीता जी आप यहाँ आइए और मेरे लन्ड पर आसान ग्रहण कर ले।
सीता मेरे तरफ पीठ करके मेरे लन्द पे बैठ गयी।काफी पुरानी और खुली चुत थी।लन्ड पूरा अंदर तक गया।
मैं:सीता जी बस आसान ग्रहण ही नही करना।थोड़ा ऊपर नीचे भी करलो।
सीता अपनी गांड हिलाते हुए ऊपर नीचे होने लगी।वो धीमे धीमे हो रही थी तो मैंने उसकी कमर पकड़ के उठा उठा के पटकना चालू किया।जिससे वो जोर से सिसकने लगी
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"आआह उम्म मैया आआह बाबू जी धीरे से आआह उम्मम आआह मममम आआह उम्म सीईआह उम्ममहह आआह"
सामने रेखा अपनी चुत सहला रही थी।
मैं :आये रंडी की बच्ची इधर आ। सीता जी थोड़ा अपनी बच्ची की चुत का भी खयाल कर लो।उसकी बहु खुजली बढ़ रही है।चाट लो थोड़ा।
सीता अपने जीभ को अपनी बेटी रेखा के चुत में डाली घुमाने,चाटने लगी।मैं सीता जी के चुचो को मसलने लगा।पर सीता जी जितनी भोली थी उससे भी ज्यादा ढीली निकली।
जितना चाहता था उससे ज्यादा जल्दी झड़ दी।अभी क्या एक ही रास्ता था,जिसको मैंने अपनाया।
मैं:आ रंडिया बैठ लण्ड पे तुझे स्वर्ग की सैर कराता हु।और सीता जी आओ आप मेरे बाजू में खड़े हो जाओ।
रेखा मेरे लन्ड पे बैठ गयी और उछलने लगी।ओ तो पक्की खिलाड़ी लग रही थी।
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"आआह मर गयी आआह उम्म आआह आउच्च...आआह.आआह मममम आआह उम्म सीईआह उम्ममहह आआह"
उसकी आवाजे मुझे और उत्तेजित कर रही थी।मैं एक हाथ से सीता जी के चुचे मसल रहा था।अभी खेल में रंग ही आने वाला था की रेखा ने भी हथियार डाल झड़ दिया और मेरा लन्ड भी अपना लाव्हा रस बाहर छोकने को आया था।
मैं:सीता जी आइए थोड़ा अमृत ले लीजिए।
सीता घुटनो पे बैठ गयी और लन्ड को मुह में लेके चुसवा रही थी।मेरे लन्ड ने भी ज्यादा समय नही लेते हुए उसके मुह को अमृत लाव्हा रस से भर दिया।उसने डर के मारे गटक भी लिया।
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मैं:आज की पाठशाला खत्म।अभी जाओ काम कर लो।
वो दोनो चली गयी।मैं फेक्ट्री घुमा।पर मूझे आज बलबीर नही दिखाई दिया।जाने दो बीवी तो मिली।अभी उसको सिखाऊंगा सबक की बडो के फाटे में टांग नहीं अडानी होती है वरना
"बीवी रंडी की माफिक चोदी जाती है"
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