RE: Hindi Kamuk Kahani एक खून और
“क्या बकती हो!”—केन ने चीखते हुए कहा—“क्या पहले ही हम किसी कम मुसीबत में हैं जो तुम्हें ये नया शोशा खड़ा करने की सूझी है। पुलिस ने अगर उसे इस ब्लैकमेलिंग की कोशिश में पकड़ भी लिया तो भी क्या होगा? उसका अंदाज़ बता रहा है कि वो ये काम कोई पहली बार नहीं कर रहा और उसे इस किस्म के गैरकानूनी कामों को करने का तजुर्बा है। पुलिस ने अगर उसे थाम लिया तो वह सबसे पहले मेरे और तुम्हारे सम्बन्धों की बाबत ही मुँह खोलेगा और उसके ऐसा करते ही मैं पूरी तरह बर्बाद हो जाऊँगा।”
“तुम्हारा मतलब है कि हमें उस कमीने को दस हज़ार डॉलर दे देने चाहिए?”
“मेरे पास इतनी बड़ी रकम नहीं है।”
“मेरे पास भी नहीं है और अगर होती भी तो भी मैंने उसे एक नया पैसा नहीं देना था। भेज लेने दो उसे वो चिट्ठियाँ। मेरा बाप इस मामले में जो हाय-हाय करेगा, जो वाही-तबाही बकेगा, मैं उससे निपट लूँगी। मैं रो-धोकर उसके सामने ऐसा ड्रामा करूँगी कि उसे यकीन हो जाएगा कि तुम्हारे-मेरे बीच ऐसा-वैसा कुछ नहीं है।”
केन ने जवाब नहीं दिया।
वो अभी भी सशंकित था।
शायद कॉरेन अपने बाप को संभाल सकती थी, लेकिन क्या वो भी अपनी बीवी को अपने वफादार पति होने का यकीन दिला सकता था?
उसे लगा कि वो ऐसा करने में अक्षम था।
ये उसके बस की बात नहीं थी।
“देखो केन”—कॉरेन ने घड़ी पर निगाह डाली और वहाँ से बाहर निकलते हुए कहा—“मुझे देर हो रही है सो मुझे फौरन निकलना होगा लेकिन जाने से पहले मैं बता दूँ कि ब्लैकमेलर को रकम देने का तो सवाल ही नहीं उठता। अब तुम क्या करोगे, ये तुम जानो, लेकिन बेहतर यही होगा कि तुम अपनी बीवी को भरोसे में लेकर ही कोई काम करो।”
“हूँ—मैं सोचूँगा कि मुझे क्या करना है?”
“ठीक है—सी यू टुमारो।”—कॉरेन ने हाथ हिलाकर कहा और बाहर निकल गई।
पीछे अब दफ्तर में केन अकेला था।
कॉरेन ने उसे सलाह दी थी कि वो अपनी पत्नी को भरोसे में लेकर ही कोई फैसला करे।
लेकिन कैसे?
कैसे वो उसे भरोसे में ले?
वो उससे सच नहीं बोल सकता था।
और उससे झूठ बोलने पर वह उल्टा उस मामले में और गहरा जा फंसता। अभी जो आग उसके घर के बाहर लगी हुई थी, वही आग उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी में उसके घर के भीतर तक पहुँच जाती।
फिर जैसे ही लू का लिखा वो रुक्का उसके हाथ लगता वो फौरन उसका झूठ पकड़ लेती।
ऐसा झूठ बोलने का न उसमें हौसला था और न तजुर्बा।
उल्टा ऐसा झूठ उसे उसकी बीवी की नज़रों में और गिरा देता।
पहले ही वो एक गलती कर चुका और अब झूठ बोलकर एक और गलती नहीं करना चाहता था।
इस ख्याल ने, कि बेट्टी उसके झूठ को पकड़ सकती थी, उसे पश्चाताप् और आतंक ने जकड़ लिया।
उसने बहुत सिर खपाया लेकिन आखिरकार इसी नतीजे पर पहुँचा कि इन हालातों में अब बेहतर यही था कि वो खुद बेट्टी के सामने जाकर सच्चाई कह दे।
और किसी तरह उसकी जान अब इस सांसत से नहीं निकल सकती थी।
उसने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली।
साढ़े छः बजे थे।
बेट्टी अब तक अपने काम से छुट्टी पाकर घर पहुँच चुकी होगी और अब अगर उसे अपनी गलती को सुधारना था तो फौरन घर जाकर बेट्टी के सामने वो कबूलनामा कर लेना चाहिए था।
जितनी जल्दी—उतना बढ़िया।
ब्रैन्डन ने अपना दफ्तर लॉक किया और कार स्टार्ट कर अपने घर की ओर रवाना हो गया।
वो शाम का वक्त था और शहर की सड़कों पर गाड़ियों की लम्बी कतारें रेंगती हुई आगे बढ़ रही थीं।
पूरे रास्ते केन बस यही सोचता रहा कि बेट्टी के सामने जाकर वह किन लफ्ज़ों में अपनी बेवफाई की हामी भरेगा और कैसे अपने किए पर शर्मिन्दा होकर दिखाएगा।
अपने दिमाग पर खूब ज़ोर डालकर भी वो तय नहीं कर पा रहा था कि अपने पश्चाताप् को वो किन शब्दों में कैसे कहेगा।
इसी उधेड़बुन में वह घर पहुँचा।
अपनी कार गैराज में पार्क करते हुए उसने देखा कि बेट्टी की कार पहले ही वहाँ मौजूद थी।
साफ था कि बेट्टी पहले ही घर पहुँच चुकी थी।
उसने कार से बाहर निकलकर उसे लॉक किया, एक गहरी साँस ली और हौसला जुटाता भीतर लॉबी में पहुँचा।
“केन”—बेट्टी ने उसे वहाँ देखते ही कहा—“ओह डार्लिंग, तुम आ गए। मैं बस तुम्हें फोन करने ही वाली थी।”
केन ने महसूस किया कि बेट्टी पहले से परेशान लग रही थी।
“हे भगवान”—उसने सोचा—“क्या वो कमीना लू यहाँ आकर अपनी बकवास कर भी चुका था?”
“क्या बात है हनी”—प्रत्यक्षतः उसने धड़कते दिल से पूछा—“क्या कोई गड़बड़ है?”
“माँ का फोन आया था”—उसने रुआँसी हालत में कहा— “और वो कह रही थीं कि पापा को हार्ट अटैक आया है।”
बेट्टी के माँ-बाप एटलान्टा में रहते थे और उसके पिता शहर के एक जाने-माने अटार्नी थे।
खुद केन को उनसे बहुत लगाव था।
ये केन के लिए एक ऐसी खबर थी जिसके प्रभाव में वह एकबारगी तो अपनी मौजूदा दुश्वारी को भी भूल गया।
“क्या वो सीरियस हैं?”—उसने शॉक से उबरते हुए पूछा।
“हाँ, उन्होंने मुझे बुलाया है।”
“ओह!”
“तुम मुझे एयरपोर्ट छोड़ दो। मैंने अगले घण्टे उड़ने वाली फ्लाइट का टिकट ले लिया है।”
“हाँ....चलो।”
बेट्टी भीतर से अपना सूटकेस निकाल लाई।
केन ने सूटकेस कार में रखा और बेट्टी को एयरपोर्ट छोड़ने चल पड़ा।
“मैं तुम्हें अकेला छोड़कर जाना नहीं चाहती थी लेकिन मजबूरी है”—बेट्टी ने कहा—“तुम्हें परेशानी तो होगी लेकिन....”
“ओह नो—मेरी फिक्र न करो”—केन ने उसे तसल्ली दी—“बल्कि काश मैं भी तुम्हारे साथ चल पाता।”
बेट्टी की आँखों में आँसू आ गए।
केन कार ड्राइव करता रहा।
अब वो इस नए शॉक से उबर चुका था और एक बार फिर अपनी मौजूदा मुश्किल के बारे में सोच रहा था।
वो बेट्टी से इस बाबत बात करना चाहता था लेकिन उस काम के लिए यह सबसे ज़्यादा गैरमुनासिब वक्त था।
और फिर—
अगर बेट्टी एक हफ्ता घर से दूर रहे और इसी दौरान वो चिट्ठी उसके यहाँ डिलीवर हो जाए तो वो बड़ी आसानी से उसे नष्ट कर सकता था।
बढ़िया।
बेट्टी परेशान थी।
उसके पिता हस्पताल में ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहे थे।
लेकिन इसके बावजूद—
केन ने अपार निश्चिंतता अनुभव की।
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