RE: Hindi Kamuk Kahani एक खून और
“ठीक है—ठीक है।”—कॉरेन हँसी—“अब अपनी अंतरात्मा की ऐसी भोली आवाज को ब्रेक दो और मुझ पर रहम करो। वैसे भी तुमने रात भर मुझे सोने नहीं दिया।”
“कॉरेन....मैं....दरअसल।”—केन ने शर्मिन्दा होकर दिखाया।
“छोड़ो—मैंने कहा था कि भरने के बाद जाम फिर झलकने लगता है।”
केन और चिढ़ गया।
क्या मनहूस सुबह थी।
बल्कि मनहूस रात के बाद ये अगली सुबह भी मनहूस ही थी।
बिना कुछ कहे—बिना कॉरेन पर निगाह डाले—वो बाथरूम में जा घुसा और दफ्तर चलने की गर्ज से तैयार होने लगा।
जब तक वो बाहर निकला कॉरेन कॉफी तैयार कर चुकी थी।
“आओ—कॉफी लो।”—उसने अपनी कॉफी की चुस्की लेते हुए कहा।
“अरे—तुम अभी यहीं हो।”—केन ने नाराज होते हुए कहा—“अभी गईं नहीं?”
“ओह—शटअप केन”—कॉरेन गुर्राई—“मैं तुम जैसे मर्दों को खूब जानती हूँ। पहले तो सारे पाप करेंगे और फिर मन भर जाते ही साधु होने का ढोंग रचने लगेंगे।”
“मेरा वो मतलब नहीं था।”—केन ने संभलते हुए कहा।
“मुझे मतलब समझाने की जरूरत नहीं। मैं बखूबी जानती हूँ कि तुम्हारा क्या मतलब था।”
“कॉरेन....।”
“छोड़ो—जाओ जाकर बिस्तर ठीक करो और अपनी पिछली रात की उछलकूद की निशानियाँ निपटाओ।”
“हाँ—करता हूँ पर जरा पहले कॉफी पी लूँ—मुझे इसकी ज्यादा जरूरत है।”
“और हाँ”—कॉरेन ने खींसे निपोरते हुए कहा—“चादर लाण्ड्री में भेजनी होगी।”
“ठीक है।”
दोनों ने अगले कुछ मिनट बिना कहे कॉफी समाप्त करने में गुजारे।
“आओ चलो।”—कॉरेन ने अपनी कॉफी खत्म करके कप नीचे रखा।
“मैं तुम्हारी मदद करती हूँ।”
केन को ध्यान आया कि नौ बजे उसकी मेड ने भी आना था। वो फटाफट खड़ा हुआ और आनन-फानन में अपना बैडरूम दुरुस्त करने में लग गया।
पलंग पर नई चादर डाली।
पुरानी चादर का बंडल बनाया।
तकिए वगैरह यथास्थान जमाए और कुछ पल गौर से हर चीज चैक की—कि कुछ रह तो नहीं गया था।
ठीक।
सब बढ़िया था।
अब सब ठीक था।
“अरे—अब चलो भी।”—कॉरेन ने उसे कहा।
“हाँ।”—वो बोला और मेन डोर की ओर चल पड़ा।
“अरे बेवकूफ आदमी!”—कॉरेन ने पीछे से आवाज लगाई— “पहले खिड़की से देख तो लो कि बाहर कोई है तो नहीं।”
केन हड़बड़ाया।
इतनी छोटी सी बात उसे नहीं सूझी थी।
खुद पर शर्मिन्दा होता हुआ उसने खिड़की पर पहुँचकर बाहर झाँका।
उसका एक पड़ोसी अपने बगीचे में क्यारी खोदने में व्यस्त था।
सत्यानाश!
अब कॉरेन को बाहर कैसे निकाले?
वो बाहर निकलते ही उस पड़ोसी की निगाह में आ जाती।
वो सहम गया।
“क्या हुआ?”—कॉरेन ने उसकी हालत देखी और आगे बढ़कर खुद खिड़की के बाहर झाँका।
वो पड़ौसी उसे भी दिखाई दिया।
“मरो मत”—कॉरेन ने कहा—“तुम यहाँ से बाहर निकलो और गैराज में कार तक पहुँचो। तब तक मैं भीतर ही भीतर गैराज में जाकर वहीं कार में ही पिछली सीट के सामने फर्श पर लेट जाऊँगी। मुझे एक चादर दो—मैं उसे अपने ऊपर डाल लूँगी।”
और कोई रास्ता नहीं था।
मजबूरन केन को यह मशवरा मानना पड़ा और यूँ उसके एम्प्लायर—शहर के नामी-गिरामी ऊँची हस्तियों में शुमार उसके बॉस, मिस्टर स्टर्नवुड—की बेटी की वहाँ उस जगह से रवानगी—ऐसी खुफिया रवानगी—का रास्ता बना।
दोनों तय तरीके से बंगले से सुरक्षित—कॉरेन के बिना पड़ोसी की निगाह में आए—बाहर निकले। केन ने कार को हाईवे की राह डाला और कॉरेन को उठकर बैठने को कहा।
कॉरेन ने चादर हटाई और उठकर वहीं पिछली सीट पर ही बैठ गई।
बाकी पूरे रास्ते दोनों ने खामोशी से सफर काटा।
“तुम जाकर दफ्तर खोलो।”—कार के रुकते ही कॉरेन ने कहा—“और मैं इन चादरों को लान्ड्री में दे आती हूँ।”
केन ने हामी भरी और कार से उतर गया।
कॉरेन की प्रेजेन्स ऑफ माईन्ड उससे कहीं बेहतर थी—और केन को इस बाबत कतई कोई मुगालता नहीं था। जहाँ छोटी-छोटी दिक्कतों के आगे वो घबरा जाता था वहीं कॉरेन बड़ी बेबाकी से, बड़ी बहादुरी से उन्हीं परेशानियों के बीच में से अपना रास्ता बना लेती थी।
और वैसे भी—उसका सिर अभी भी दर्द से फटा जा रहा था। ऊपर से उसकी पिछली रात की करतूत पर उसकी कांशिश उसे धिक्कार रही थी।
केन सीधे दफ्तर में पहुँचा और पिछले दिन की डाक थामे अपने टेबल पर पहुँचा।
उसने बड़े मरे मन से काम करना शुरू किया और अभी पहली डाक बस खोली ही थी कि फोन की घण्टी बज उठी।
उसने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठाया।
“हैलो।”—वह बोला।
“केन?”—दूसरी ओर से बेट्टी का स्वर उभरा।
“हॉय बेट्टी।”—वह बोला।
“ओह डार्लिंग—डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है।”—बेट्टी ने अस्थिर स्वर में कहा—“डैडी अपनी आखिरी सांसें ले रहे हैं और लगातार तुम्हें ही याद कर रहे हैं।”
केन का चेहरा फक पड़ गया।
बेट्टी के पिता को वो अपने पिता की तरह मानता रहा था।
“मैं अगली फ्लाईट से वहाँ पहुँच रहा हूँ।”—उसने बेट्टी को ढांढस बंधाया—“आई एम सो सॉरी हनी।”
“मैंने अभी चैक किया था—अगली फ्लाईट साढ़े दस बजे है।”
“ठीक है—मैं आ रहा हूँ।”—कहकर उसने रिसीवर वापिस यथास्थान रखा और उठ खड़ा हुआ।
तभी कॉरेन भीतर दाखिल हुई।
“मैंने वो चादरें वहाँ लान्ड्री में....”—वह बोलते-बोलते रुकी और केन के फक चेहरे को देखकर बोली—“अरे अब कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा?”
“मेरे ससुर मर रहे है।”—केन ने धीमे से कहा—“मुझे जाना होगा।”
“ओह!”
“मैं सोमवार तक लौटने की कोशिश करूँगा।”
“तुम जाने को कह रहे हो और आज यहाँ लू ने भी अपनी दस हजार की रकम लेने आना है।”
“भाड़ में जाए हरामजादा!”—केन ने कहा और दफ्तर के बाहर निकल गया।
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