RE: Hindi Kamuk Kahani एक खून और
अपनी लम्बी-चौड़ी और खूब भारी एन्टीक चेयर पर बैठे क्लॉड केनड्रिक ने इतनी जोर से सांस छोड़ी कि सामने मेज पर फैले कागज फड़फड़ा गए। बेहद निराश भाव से उसने अपने दफ्तर जिसे वह रिसेप्शन रूम कहता था—में चारों ओर निगाह दौड़ाई। कमरे में एक दीवार पर समंदर की ओर झाँकती एक लम्बी-चौड़ी पिक्चर विंडो थी जिस पर कई कलाकृतियों को सजाया गया था। दफ्तर की बाकी दीवारों पर भी इसी तरह कई मूल्यवान पेंटिंग्स लटकी हुईं थीं।
क्लॉड कैनड्रिक।
पैरेडाईज ऐवन्यु पर मौजूद उस आर्ट गैलरी का मालिक क्लॉड कैन्ड्रिक। उसका खुद का व्यवहार ऐसा था कि वो अपने आप में एक अलग ही शै, एक अलग ही कैरेक्टर माना जाता था।
ऊंचा कद।
लम्बा-चौड़ा थुल-थुल शरीर और उम्र बासठ साल।
और ऊपर से वो होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक और लगा लेता था। साथ में अपने गंजे सिर को ढंकने की गर्ज से एक मिसफिट संतरी रंग की विग और पहनता था। किसी महिला से वार्तालाप के वक्त वो अक्सर अपनी उस बेहूदा विग को ऐसे उठाता था जैसे कोई अपने हैट को उठाता था।
और उसके ये अंदाज ही उसे सबसे अलग—सबसे जुदा दिखाते थे। लेकिन फिर अपने उस हास्यास्पद रखरखाव के बावजूद वो अपने धन्धे में माहिर था और एन्टीक्स, ज्वैलरी और मार्डन आर्ट का लाजवाब पारखी भी।
दुर्लभ बल्कि दुर्लभतम कलाकृतियों से भरी उसकी आर्ट गैलरी—जिसे वो कई नौकरों की मदद से चलाता था—केवल उस शहर की ही नहीं बल्कि आसपास के कई शहरों में खूब ख्यातिप्राप्त थी।
और उसकी उस हासिल ख्याति में इस एक बात का भी दखल था कि वो बेहिचक लेकिन बेहद सावधानी से चोरी की कलाकृतियों की खरीद-फरोख्त भी कर लिया करता था। उसके पास ऐसे कई साहबे दौलत, साहबे जायदाद ग्राहक थे जिन्हें दूसरी जगह मौजूद किसी खास कलाकृति को बकायदा या बेकायदा किसी भी कीमत पर अपने निजी कलैक्शन में लाने का शौक था।
बल्कि सनक थी।
पागलपन था।
ऐसे धनवान ग्राहक कैन्ड्रिक को अपनी इच्छित कलाकृति पर उसकी मांगी मनमानी कीमत अदा करते थे।
उस सुहानी सुबह अपने दफ्तर में बैठा कैन्ड्रिक अपने बिजनेस की छमाही बैलेंस शीट को बार-बार देख रहा था और निराश हो लम्बी सांसें छोड़ रहा था। उसे अपने बिजनेस में अब वो कामयाबी हासिल नहीं थी जैसी वो कभी किसी दौर में सहज ही पा लेता था। उसका बिजनेस घट रहा था और पिछले छः महीने की बैलेंस शीट उसके उस मौजूदा धन्धे में उसके रोते-धोते परफार्मेन्स की दास्तान थी।
लेकिन इसके पीछे वजह भी थी।
उसके कई दौलतमन्द कस्टमर अब मर चुके थे और नई पीढ़ी को उसके पास मौजूद उन एन्टीक्स और क्लासिकल पेंटिंग्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी। आज की नई पीढ़ी ड्रग्स, शराब, महंगी कार और सैक्स में ज्यादा दिलचस्पी रखती थी।
उनके लिए कलात्मक वस्तुएं बोर थीं और ड्रग्स ‘इन’ चीज थी। ऐसे माहौल में कैन्ड्रिक के धन्धे को सिकुड़ना था ही और वो सिकुड़ ही रहा था।
आज वो अपने दौलतमन्द ग्राहकों की फेहरिस्त में उन नामों पर निशान लगा रहा था जो मर चुके थे और उसी प्रक्रिया में जैसे ही उसके सामने साईरस ग्रेग का नाम आया—उसने एक लम्बी आह सी भरी। वो इतना बेहतरीन ग्राहक था कि अक्सर नकली पिकासो की पेंटिंग्स के भी मुँहमांगे दाम देता था। वो बढ़िया ग्राहक था लेकिन अब उसकी मौत के बाद उसका खाता बन्द था।
कैन्ड्रिक अपने उन्हीं जिन्दा-मुर्दा ग्राहकों की लिस्ट में उलझा हुआ था कि जब उसका मुंहलगा हेड सैल्समैन लुईस भीतर दाखिल हुआ।
“डार्लिंग”—लुईस ने भीतर आते हुए कहा—“क्रिसपिन ग्रेग आया है और ऑयल पेंटिंग्स में दिलचस्पी दिखा रहा है। मुझे लगा कि तुम उससे मिलना चाहोगे।”
“हाँ जरूर।”—कैन्ड्रिक ने खुद को कुर्सी से बाहर निकाला और हजारों डॉलर की कीमत वाले बेनेटियन मिरर के सामने खड़े होकर अपना बेहूदा विग दुरुस्त किया, अपनी जैकेट को झटककर सीधा किया, दर्पण में खुद को निहारा और बोला—“किस्मत की बात है कि मैं अभी उसी के बारे में सोच रहा था।”
वह अपने दफ्तर से बाहर निकला और अपनी विशाल आर्ट गैलरी में आ गया।
वहाँ उसका एक कारिन्दा एक लम्बे दुबले-पतले ग्राहक—जिसकी पीठ कैन्ड्रिक की ओर थी—को ऑयल पेंटिंग्स काले मखमली कपड़े पर रखकर कुछ यूँ दिखा रहा था कि मानो वो पेंटिंग्स नहीं हीरे-जवाहरात हों।
“मिस्टर ग्रेग।”—कैन्ड्रिक ने संयमित स्वर में कहा।
लम्बा-पतला आदमी पलटा।
कैन्ड्रिक ने देखा कि उसके ऐश ब्लॉड बाल छोटे-छोटे लेकिन करीने से कटे हुए थे। ठीक-ठाक नयन-नक्श वाले उस आदमी का भावहीन पीला चेहरा ऐसा था कि मानो सालों से सूरज के दर्शन न किए हों।
कैन्ड्रिक हड़बड़ा सा गया।
उसने मिस्टर ग्रेग के पिता के साथ कई डीलिंग्स—बड़ी कामयाब डीलिंग्स—की थीं और उसी रूप में उसे अब जूनियर ग्रेग से वैसे ही व्यक्तित्व की उम्मीद थी।
लेकिन ये ‘मिस्टर’ जूनियर ग्रेग एक अलग शख्सियत के मालिक थे जो उसके पिता से कतई मैच नहीं करती थी।
“वैल”—कैन्ड्रिक ने बोलना शुरू किया—“मेरा नाम क्लॉड कैन्ड्रिक है और आपके स्वर्गवासी पिता भी मेरे बढ़िया ग्राहकों में थे। आपको आज यहाँ देखकर दिल खुश हो गया।”
क्रिसपिन ने सिर हिलाया।
केवल सिर हिलाया—कहा कुछ नहीं।
न चेहरे पर कोई मुस्कुराहट उभरी, न उसने हाथ मिलाने का कोई उपक्रम किया।
लेकिन कैन्ड्रिक निराश न हुआ।
उसे अपने दौलतमन्द ग्राहकों के ऐसे सर्द व्यवहार को बर्दाश्त करने का लम्बा तजुर्बा था।
“मैं सिर्फ कुछ ऑयल पेंटिग्स लेने आया था।”—क्रिसपिन ने कहा।
“मुझे यकीन है कि आपकी जरूरत की हर चीज आपको यहाँ हमारे पास मिलेगी मिस्टर ग्रेग।”
“श्योर”—कहकर क्रिसपिन पुनः पलटा और अपनी पसंद की पेंटिंग्स की ओर इशारा करते हुए बोला—“ये, ये और ये—इन सभी को पैक कर दो।”
“अवर प्लेजर सर”—सैल्समैन ने सिर नवांकर कहा और उन पेंटिंग्स को उठाकर काऊण्टर के दूसरे सिरे पर जाकर पैकिंग में लग गया।
“मिस्टर ग्रेग”—कैन्ड्रिक ने चिकने-चुपड़े स्वर में कहा—“मैं जानता हूँ कि आप खुद एक कलाकार हो लेकिन फिर भी भारी अफसोसजनक बात है आप पहले कभी हमारे यहाँ तशरीफ नहीं लाए। इस बात के बावजूद नहीं लाए कि आपके पिता के साथ हमारे बड़े मधुर संबंध थे और उनकी डिमाण्ड की गईं कई कलाकृतियों का हमने ही इंतजाम किया था।”
“मैं एक आर्टिस्ट हूँ लेकिन मुझे केवल अपनी खुद की कला, खुद के बनाए आर्ट में ही दिलचस्पी है।”—क्रिसपिन ने दो टूक स्वर में कहा—“किसी दूसरे फनकार की आर्ट में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं।”
“जी हाँ जरूर-जरूर”—कैन्ड्रिक यूँ मुस्कुराया जैसे कोई बड़ी मछली अपनी खुराक बनने जा रही किसी छोटी मछली को देखकर मुस्कुराती होगी—“आपके रोशन ख्याल वाकई किसी सच्चे कलाकार के हैं और मुझे बेहद खुशी होगी अगर कभी आपकी बनाई पेंटिंग्स को देखने का मौका हासिल हो सके। मेरी अभी हाल ही में मशहूर आर्ट क्रिटिक लोबेनस्टन से बात हुई थी तो उसने भी मुझे बताया था कि आपकी माँ ने उससे आपके आर्ट वर्क के बारे में सलाह-मशवरा किया था। लोबेनस्टन एक कला पारखी है और इस धंधे में उस जैसी आँख किसी और की नहीं।” जबकि असलियत यह थी कि कैन्ड्रिक की नजरों में लोबेनस्टन एक बेकार, नातजुर्बेकार और आर्ट को परखने में अनाड़ी था—“और उसने मुझे बताया था कि कैसे तुम्हारी बनाई कई पेंटिंग्स अपने आप में एक बेजोड़ आर्ट वर्क हैं।”
यह भी एक झूठ था।
सफेद झूठ।
क्योंकि लोबेनस्टन ने तो उल्टा उसे ये कहा था कि क्रिसपिन का आर्ट बेहूदा था जिसकी कोई कमर्शियल वैल्यू नहीं थी। बाजार में उसकी पेंटिंग्स की कुल बख़त, कुल औकात कुछ कौड़ियों से ज्यादा नहीं थी।
“उसने कहा था कि”—कैन्ड्रिक ने आगे कहा—“आपका टैलेन्ट, आपकी कल्पना और क्रियेटिव आईडियाज अनोखे, अद्भुद और हैरान कर देने वाले हैं। आपके आर्ट वर्क में जिस तरह रंगों का सम्मिश्रण उभरकर आता है वह यूनिक है, बेजोड़ है जो न सिर्फ विलक्षण है बल्कि देखने वाले को एक अलग ही दुनिया में ले जाने का माद्दा रखता है। अब ऐसे धुरन्धर आलोचक की बात सुनने के बाद तो मेरी खुद की बड़ी तमन्ना थी कि कभी आपसे मुलाकात हो तो मैं आपको आपकी उस आर्ट-वर्क को प्रमोट करने का ऑफर दे सकूँ।”
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