RE: Hindi Kamuk Kahani एक खून और
“वैसे मुझे लगता है आपको शायद स्कॉच पसंद होगी।”
“वैल”—लेपस्कि जो बड़ी मुश्किल से अपना ध्यान सामने बैठी लड़की के शारीरिक सौंदर्य से हटाकर उसकी कही बात में लगा रहा था, अब परेशान होने लगा था।
सामने बैठी लड़की का फिगर, उसकी खूबसूरती उसके होशो-हवास उड़ा रहे थे।
उड़ा चुके थे।
“वैल—मिस डोरोलेस”—लेपस्कि ने अपने मन में उमड़ते भड़कते ख्यालों के भावों को अपने चेहरे पर आने से रोका और कहा—“तो आप अकेली थीं और टी.वी. देख रही थीं।”
“हाँ—और उसे देखते ही मुझे याद आया”—उसने गर्दन घुमाकर जैकोबी की ओर देखा और बोली—“वो आपका दूसरा साथी काफी दमदार लगता है।”
“जी हाँ”—लेपस्कि गुर्राया—“और इसकी खुद की माँ को भी यही खुशफहमी थी। लेकिन वो सब छोड़ो और काम की बात करो।”
“ऑफिसर—आप मुझे मेरे नाम—डोरोलस—से बुला सकते हैं।”
लेपस्कि इस बात को गनीमत समझ रहा था कि उसके सामने मेज के दूसरी ओर बैठी डोरोलस उसे उन दोनों के बीच बिछी मेज की वजह से पूरा नहीं देख पा रही थी। लेपस्कि का निचला भाग मेज की आड़ में था और यूँ वहाँ मचती हलचल—डोरोलस की आँखों से—छुपी हुई थी।
“ठीक है डोरोलस”—लेपस्कि ने नियंत्रित लहजे में कहा—“तो तुम्हें टी.वी. देखते समय क्या याद आया?”
“मुझे याद आया कि वो जैकेट मैंने पहले भी कहीं देखी थी। दरअसल वो जैकेट है ही ऐसी कि एक बार देख लेने के बाद उसे आसानी से भुलाया ही नहीं जा सकता।”
“कब देखी तुमने वो जैकेट?”
“कब देखी....?” बोलते हुए उसने कुछ इस अंदाज में अपना पहलू बदला कि लेपस्कि की हालत बद् से बद्तर हो गई—“….पाँच तारीख को।”
पाँच तारीख।
लेपस्कि को याद था कि इसी तारीख को शाम पाँच बजे जेनी का कत्ल हुआ था।
“तारीख की बाबत क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि उस रोज पाँच ही थी?”
“हाँ—मुझे बखूबी ध्यान है। उसी रोज मेरे पालतू कुत्ते जेमी का जन्मदिन था सो मैं उसे अपने साथ घुमाने ले गई थी। वैसे तुम्हें भी कुत्ते पसन्द हैं न ऑफिसर?”
लेपस्कि ने अपनी खीज दबाई।
उसे कुत्तों से सख्त नफरत थी।
“आप अपने कुत्ते को बाहर किस वक्त ले गई थीं?”
“लंच के वक्त”—वो बोली—“मैं जेमी का बड़ा ख्याल रखती हूँ और वही मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। जब मैं थकी हारी अपने घर पहुँचती हूँ तो पीछे वही मेरा इंतजार करता है। मेरे आते ही मुझ पर छलांग लगाने लगता है.... ही इज़ सो स्वीट यू नो?”
“हूँ….तो आप अपने कुत्ते को लंच के वक्त बाहर लेकर गई थीं….फिर आगे क्या हुआ।”
“वैल—” उसने मुँह बनाते हुए जवाब दिया—“आगे ये हुआ कि एक आदमी मेरे पास आया और तुम जानते ही हो कि मेरे पास आदमी आते रहते हैं।”—अपना आखिरी फिकरा उसने इस हरकती अंदाज में कहा कि लेपस्कि गड़बड़ा गया।
वो अंदाजा लगा सकता था कि उसका क्या मतलब था। अगर वो शादीशुदा न होता तो यकीनन खुद भी उसके पास पहुँच गया होता।
“जिस आदमी की तुम बात कर रही हो उसने वही जैकेट पहनी हुई थी?”—लेपस्कि ने बामुश्किल अपनी भावनाओं को काबू किया और पूछा।
“अरे नहीं”—डोरोलेस ने कहा—“उसने नहीं।”
“लेकिन अभी तो तुमने कहा कि उसने वो जैकेट पहनी हुई थी।”
“मैंने कहा?—मैंने ऐसा कब कहा?”
“अभी तो कहा—यहीं मेरे सामने कहा।”
“नहीं कहा।”
“अरे—आपने अभी कहा।”
“ऑफिसर”—डोरोलेस ने अपने हाथ हवा में उछाले— “अगर आप यूँ ही मुझे हलकान करेंगे तो मुझे लगेगा कि मैंने यहाँ आकर शायद गलती कर दी है।”
“लेकिन....।”
“प्लीज ऑफिसर, मेरी बात को समझिए।”
“ओके….”—लेपस्कि ने एक लम्बी साँस खींची और कहा—“बोलिए क्या बोलना चाहती हैं आप?”
“शुक्रिया”—उसने मुस्कुराकर कहा और आगे बोली— “दरअसल उस रोज जब मैं अपने कुत्ते जैनी को लंच के वक्त अपने साथ बाहर ले गई थी तो रास्ते में एक आदमी ने मुझे अप्रोच किया था।”
“ओके”—लेपस्कि बोला।
“वो आदमी बेहूदा था, घटिया था लेकिन अब चूँकि उसने मुझे अप्रोच किया था सो मैं उससे बातचीत करने लगी। इसी वक्त जैमी को भी हाजत, नेचर कॉल, हुई—सो वो वहीं साईड में अपने काम पर लग गया।”
“हूँ”—लेपस्कि ने नियंत्रित लहजे में कहा—“आगे।”
“आगे ये कि ठीक उसी वक्त, ऐन वही जैकेट पहने एक दूसरा आदमी वहाँ हमारे पास से गुजरा था।”
“अच्छा….”—लेपस्कि सावधान हो गया—“आगे, आगे क्या हुआ?”
“वो एक सजा संवरा आदमी था, ऐन मेरी पसंद का।”
“मैं समझ गया”—लेपस्कि बोला और उसे वापिस ट्रेक पर लाने के मकसद से पूछा—“वो आदमी दिखने में कैसा था?”
“मैंने उसका चेहरा नहीं देखा था।”
“कद? उसका कद कैसा था—ऊँचा, ठिगना या बीच का सा?”
“ऊँचा।”
“कितना ऊँचा?”—लेपस्कि खड़ा होता हुआ बोला—“मेरे जितना?”
“तुमसे भी ऊँचा….”—उसने तीखी निगाहों से लेपस्कि को घूरा—“हालाँकि तुमसे कोई बहुत ज्यादा ऊँचा नहीं था, लेकिन था ऊँचा ही।”
“और उसकी शारीरिक बनावट कैसी थी—मोटा, पतला, दरम्याना?”
“उसके कंधे चौड़े और कूल्हे पतले।”
“कोई हैट वगैरह पहने था?”
“नहीं….उसके बाल छोटे-छोटे कटे हुए थे।”
“कद की बाबत कोई अंदाजा?”
“करीब छः फीट।”
“उसका लिबास।”—लेपस्कि ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।
“जैकेट से मैच करती हल्की नीली पतलून और पैरों में गुक्की के जूते थे।”
“उसकी चाल वगैरह में कोई खास बात नोट की?”
“वैल….”—डोरोलेस ने सोचते हुए कहा—“कुछ खास नहीं। बस यही कि उसके कदम लम्बे-लम्बे पड़ रहे थे।”
उसने सोचने के अंदाज में अपनी उंगलियों को अपने होठों पर ठकठकाया और उसकी इस हरकत से लेपस्कि की हालत एक बार फिर गड़बड़ा गई।
इस लड़की से पूछताछ करना किसी साधारण डिटेक्टिव के वश की बात नहीं थी।
“अच्छा डोरोलेस”—लेपस्कि ने आगे पूछा—“कोई और खास बात जो तुम्हें याद आती हो?”
“वैल”—वो बोली—“उसके हाथ किसी कलाकार, किसी आर्टिस्ट की तरह थे….और उंगलियाँ ऐसी कि मानो किसी पेन्टर की हों।”
“क्या वो अपने रख-रखाव से अमीर लग रहा था?”
“हम्म….वैसे ऐसा अमीर भी नहीं दिख रहा था कि लेकिन हाँ फिर भी अच्छा-खासा खाता-पीता तो यकीनन था।”
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