RE: Hindi Kamuk Kahani एक खून और
वक्त गुजरता रहा।
ठीक दस बजे लिफ्ट ऊपर की तरफ सरकनी शुरू हुई और जल्द ही वो मेरी नजरों से ओझल हो गयी।
जरूर तिलक ने ऊपर से इंडीकेटर पैनल में लगा बटन दबाया था।
मैंने फौरन पिस्तौल की नाल ग्लास—विण्डो की झिरी से बाहर निकाल दी।
मेरी व्याग्रता बढ़ गयी।
तिलक अब नीचे आने वाला था।
उस क्षण मुझे अपनी सांस गले में घुटती अनुभव हो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे हाथ—पांव ठण्डे पड़ते जा रहे हों।
मेरी निगाह लिफ्ट के लाल इंडीकेटर पर जाकर ठहर गयी।
वह अब बुझ चुका था।
कुछ देर इंडीकेटर पर कोई हरकत न हुई।
फिर एकाएक इंडीकेटर की सुर्ख लाइट पुनः जल उठी।
उसके बाद पैनल पर बड़ी तेजी के साथ नम्बर जलने—बुझने शुरू हुए।
नौ।
आठ।
सात।
छः।
लिफ्ट नीचे की तरफ आ रही थी।
मेरी उंगली सख्ती से रिवॉल्वर के ट्रेगर पर जाकर कस गयी।
मेरी निगाह अपलक इंडीकेटर को घूर रही थी।
तभी झटके के साथ लिफ्ट नीचे आकर रुकी। उसमें तिलक मौजूद था। वह सफेद कोट—पैंट पहने था और ब्लू कलर की फूलदार टाई लगाए था, जिसमें उसका व्यक्तित्व काफी खूबसूरत दिखाई पड़ रहा था।
वह लिफ्ट का दरवाजा खोलकर बाहर निकला।
तभी मैंने पिस्तौल का ट्रेगर दबा दिया।
गोली चलने की ऐसी तेज आवाज हुई, मानो तोप से गोला छूटा हो। साथ ही तिलक राजकोटिया की अत्यन्त हृदयग्राही चीख भी वहां गूंजी।
गोली चलते ही मैंने ग्लास विण्डो बंद की और फौरन दरवाजे की तरफ भागी।
दरवाजे तक पहुंचते—पहुंचते मैं पिस्तौल वापस कोट की जेब में रख चुकी थी।
मैंने दरवाजा खोला और बाहर झांका।
तिलक लिफ्ट के पास औंधे मुंह पड़ा हुआ था।
मैं तुरन्त कमरे से बाहर निकल गयी।
दरवाजे को मैंने पहले की तरह ही मास्टर—की से लॉक भी कर दिया।
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