RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
भाग २): रणधीर सिन्हा.. एंड फर्स्ट एनकाउंटर विद हिम
‘सिन्हा’... ‘मि० रणधीर सिन्हा...’ शहर के किसी कोने के एक बड़े से हिस्से में एक जाना माना नाम .. कई क्षेत्रों में कई तरह के बिज़नेस है इनका | बहुत कम समय में बहुत बहुत पैसा कमा लिया | ईश्वरीय कृपा ऐसी थी कि जिस काम या व्यापार में हाथ आजमाते , सौ प्रतिशत सफ़ल होते | धर्मपत्नी को गुज़रे कई साल हो गए .. दो बेटे और एक बेटी है और तीनों ही विदेशों में बस गए हैं ... घर में अकेले रहने की आदत सी पड़ गई है रणधीर को .. घर से काम और काम से घर.. यही रोज़ की दिनचर्या रही है रणधीर बाबू की अब तक.. पर पिछले कुछ महीनों से काफ़ी टाइम घर पर बिताना हो रहा है रणधीर बाबू का ... |
ज़ाहिर है की बेशुमार दौलत जिसके पास हो और घर में बीवी ना हो तो ऐसे लोग खुले सांड की तरह हो जाते हैं |
ऐसा ही कुछ हाल था रणधीर बाबू का भी... पिछले कुछ महीनों से उनके घर में महिलाओं और लड़कियों का आना जाना शुरू हो गया है.. और सिर्फ़ शुरू ही नहीं हुआ; बल्कि बेतहाशा बढ़ भी गया है | ये औरतें और लडकियाँ अधिकांश वो होती हैं जो रणधीर बाबू के किसी न किसी बिज़नेस या फर्म में काम करती | रणधीर बाबू ने इतने फर्म्स खोल रखे हैं की शहर में किसी को भी अगर नौकरी की ज़रूरत होती तो वह सबसे पहले सीधे रणधीर बाबू के ही किसी एक ऑफिस में जा कर आवेदन कर आता | रणधीर बाबू अच्छी सैलरी देने के साथ ही अपने एम्प्लाइज को और निखारने के लिए समय समय पर उनका ग्रूमिंग भी करते ... वो भी खुद अपने निरीक्षण में | इससे उसके अंडर में काम करने वालों को डबल फ़ायदा होता .. एक तो अच्छी सैलरी मिलना और दूसरा, भविष्य के लिए खुद को और अधिक योग्य बनाना |
और इसलिए एम्प्लाइज भी हमेशा रणधीर बाबू के कुछ गलत आदतों और बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं .. मसलन, रणधीर बाबू का अक्सर नशे में होना, शार्ट टेम्पर होना, लेडी स्टाफ को ग़लत नज़र से देखना और उनके साथ मनमाफिक छेड़खानी करना इत्यादि.. | ख़ासकर शराब और शबाब का चस्का या कहिए नशा होने के बारे में हर कोई जानता है .. और महिलाओं के प्रति उनकी कमज़ोरी तो जगजाहीर थी सबके सामने |
आशा को अपनी ही एक सहेली से रणधीर बाबू के ऑफिस का नंबर मिला था .. नौकरी के लिए आवेदन करने हेतु.. | ऑफिस में किसी लेडी स्टाफ़ से फ़ोन पर बात हुई थी आशा की, वैकेंसी के बारे में जानकारी लेने के सिलसिले में | दो तीन जगह खाली होने के बारे में बताया गया था और इसी दरम्यान आशा से उसके बारे में भी जानकारी ली गई थी | बाद में उसी दिन शाम को ऑफिस से फ़ोन आया था कि रणधीर बाबू ने ऑफिस से पहले एकबार उसे अपने घर बुलाया है बायोडाटा और दूसरे एकेडमिक सर्टिफिकेट्स के साथ .. ऑफिस में मिलने से पहले रणधीर बाबू हर क्लाइंट से घर में मिलते हैं.. शायद कोई अंधविश्वास या कोई और कारण होता होगा | चूँकि शुरू से ही रणधीर बाबू की यही आदत रही है इसलिए लड़का हो या ख़ास कर महिलाएँ और लडकियाँ; बेहिचक चली जाती है रणधीर बाबू के यहाँ .. |
रणधीर बाबू के यहाँ बुलाए जाने की बात सुनकर ही आशा ख़ुशी से नाच उठी | उसे पूरा भरोसा था कि रणधीर बाबू ने अगर बुलाया है तो फिर जॉब पक्की है | आशा को अपने क्वालिफिकेशन के साथ साथ अपनी ख़ूबसूरती पर भी अडिग विश्वास था ... क्वालिफिकेशन देख कर ना करना भी चाहे कोई अगर तो शायद आशा की सुंदरता के कारण अपने फैसले बदलने को मज़बूर हो जाए | आशा को एक औरत के दो कारगर हथियारों के बारे में बहुत अच्छे से पता है हमेशा से और वो हैं;
१) ख़ूबसूरत देहयष्टि और
२) आँसू
किसी भी औरत के ये दो ऐसे तेज़ हथियार हैं जो दिलों को ही क्या –-- बड़े बड़े सत्ता तक को हिला और मिट्टी में मिला सकते हैं | दिग्गज ज्ञानी और विद्वान भी इन दो हथियारों के अचूक निशाने से खुद को बचा पाने में पूरी तरह विफ़ल पाते हैं | फ़िर रणधीर बाबू जैसे लोगों की बिसात ही क्या |
अगले दिन ही आशा बहुत अच्छे से तैयार हो कर रणधीर बाबू के यहाँ चली गई –-- गोल्डन बॉर्डर की बीटरेड साड़ी, साड़ी पर ही लाल और सुनहरे धागे से छोटे छोटे फूल और दूसरी कलाकृतियाँ बनी हैं---मैचिंग ब्लाउज --- शार्ट स्लीव--- ब्लाउज भी थोड़ा टाइट--- चूचियों को उनके पूरी गोलाईयों के साथ ऊपर की ओर स्थिर उठाए हुए --- सामने से डीप ‘वी’ कट और पीछे काफ़ी खुला हुआ--- डीप ‘यू’ कट--- ब्लाउज के निचले बॉर्डर और कमर पर बंधी साड़ी के बीच काफ़ी गैप है--- और चलने फिरने से उस गैप से आशा का गोरा चिकना पेट साफ़ साफ़ दिख रहा है | बाहर की ओर निकली हुई गोलाकार पिछवाड़ा टाइट बाँधी हुई साड़ी में एकदम स्पष्ट रूप से समझ में आ रही है और हर पड़ते कदम के साथ ऊपर नीचे करती हुई नाच रही है |
नीर को अपने साथ लिए आशा ऑटो से रणधीर बाबू के यहाँ पहुँची | इससे पहले रास्ते भर ऑटोवाला रियरव्यू मिरर से आशा की कसी बदन को ताड़ता रहा | रास्ते भर ऑटो के तेज़ चलने से आने वाली हवा के झोंकों से कभी आशा के दायीं तो कभी बाएँ तरफ़ का साड़ी का पल्ला उड़ जाता .. अगर दायीं तरफ़ का उड़ता तो तंग ब्लाउज कप में कसी आशा की भरी गदराई चूची के ऊपरी गोलाई के दर्शन हो जाते और यदि बाएँ साइड से पल्ला उड़ता तो ब्लाउज कप में कैद आशा का बायाँ वक्ष अपनी पूरी गोलाई के आकार के साथ दिखता---और तो और ब्लाउज के निचले बॉर्डर से शुरू होकर कमर तक करीब ५-६ इंच के गैप में आँखों को बाँध देने वाली गोरी नर्म पेट के दर्शन होते |
जैसे - जैसे जगह मिलते ही ऑटो की स्पीड बढ़ती; वैसे - वैसे चलने वाली हवा भी तेज़ हो जाती---और इन्हीं तेज़ हवा के झोंकों से, रह रह कर आशा का पल्लू उसके सीने पर से हट जाता और उस लाल तंग ब्लाउज के कप में कैद दायीं चूची पूरी और बायीं चूची का थोड़ा सा हिस्सा नज़र आ जाता ... और इसके साथ ही एक लंबी सी घाटी, अर्थात क्लीवेज भी दृष्टिगोचर हो जाती | एक तंग ब्लाउज में कैद पुष्टता से परिपूर्ण एक दूसरे से सट कर लगे दो चूचियों के कारण बनने वाली एक क्लीवेज का आकार क्या और कैसा हो सकता है इसका तो हर कोई सहज ही अंदाज़ा लगा सकता है--- और जब बात बिल्कुल अपने सामने देखने की हो तो ऐसा अलौकिक सा दृश्य भला कौन मूर्ख छोड़ना चाहेगा?! बाएँ कंधे पर साड़ी को अगर सेफ्टी पिन से न लगाया होता आशा ने तो शायद अब तक पूरा का पूरा पल्लू ही हट गया होता | वो गोरी गोरी चूचियाँ जो रोड के हरेक गड्ढे और उतार चढ़ाव के आने पर ऐसे उछलती जैसे की कोई रबर बॉल या बैलून --- या – या फ़िर मानो पानी वाले गुब्बारे हों, जिन्हें भर कर ज़रा सा हिलाने पर जैसा हिलते हैं ठीक वैसे ही ऊपर नीचे हो कर हिल रही थी | चूचियाँ तो कयामत ढा ही रही थीं पर आशा का दुधिया क्लीवेज भी --- जो पत्थर तक को पिघला कर पानी कर दे ---- मदहोश किए जा रही थी |
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