RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
ऐसा नहीं की आशा को पता नहीं चला था की ऑटोवाले का ध्यान कहाँ है... पर शायद कहीं न कहीं वो कम उम्र के लड़कों या फ़िर किसी भी मर्द को टीज़ करने में बड़ा सुख पाती है --- मर्दों का बेचैन हो जाना, थोड़ा और – थोड़ा और कर के लालायित रहना ---- यहाँ तक की ज़रा सा देह दर्शन करा देने से आजीवन चरणों का दास बने रहने की मर्दों की मौन सौगंध और स्वीकृति उसे अंदर तक गुदगुदा देती | कॉलेज जीवन में फेरी वालों से २-५ रुपये का कुछ बिल्कुल मुफ्त में लेना हो या फिर चाटवाले से कॉम्प्लीमेंट के तौर पर २ एक्स्ट्रा बिना पानी वाला पानीपूरी खा लेना --- ये सब वह कर लेती थी----सिर्फ़ २ इंच का दूधिया क्लीवेज दिखा कर |
बीते दिनों की यादों ने आशा के चेहरे पर एक कमीनी सी कातिल मुस्कान ला दी | तिरछी आँखों से वह कुछेक बार ऑटोवाले लड़के की ओर देख चुकी है अब तक और हर बार औटोवाला लड़का एक हाथ से हैंडल पकड़े, दूसरे हाथ को नीचे सामने की ओर रखा हुआ मिला--- आँखों को सामने रोड पर टिकाए रखने की असफ़ल कोशिश करता हुआ | ‘फ़िक’ से बहुत धीमी आवाज़ में आशा की हँसी निकल गई | वह समझ गई की लड़का अपने दूसरे हाथ से अपने हथियार को फड़क कर खड़ा होने से रोकना चाह रहा है पर नाकाम हो रहा है | बेचारे लड़के की ऐसी दुर्दशा का ज़िम्मेवार ख़ुद को मानते हुए आशा गर्व से ऐसी फूली समाई कि उसकी दोनों चूचियाँ और अधिक फूल कर सामने की ओर तनने लगीं |
खैर,
रणधीर बाबू के घर के सामने पहुँच कर ऑटो रुका.. घर तो नहीं एक बड़ा बंगला हो जैसे—आशा अपने बेटे को ले कर जल्दी से उतर कर बैग से पैसे निकालने लगी--- पल्लू अब भी यथास्थान न होने के कारण ऑटोवाला लड़का दूध और दूधिया क्लीवेज का नयनसुख ले रहा है---आशा उसकी नज़र को भांपते हुए चोर नज़र से अपने शरीर को देखी और देखते ही एक झटका सा लगा उसे—पल्लू का स्थान गड़बड़ाने से उसका दायाँ चूची और क्लीवेज तो दिख ही रहा था पर साथ ही साथ --- पल्लू बाएँ साइड से भी उठा हुआ होने के कारण बाएँ चूची का गोल आकार और निप्पल का इम्प्रैशन साफ़ साफ़ समझ में आ रहा था ब्लाउज के ऊपर से ही... !! इतना ही नहीं ---- आशा का दूधिया पेट और गोल गहरी नाभि भी सामने दृश्यमान थी ! --- वह लड़का कभी गहरी नाभि को देखता तो कभी रसीली दूध को ...| आशा ख़ुद को संभालते हुए जल्दी से पल्लू ठीक कर उसकी ओर पैनी नज़रों से देखी—लड़का डर कर नज़रें फेर लिया--- पैसे दे कर आशा पलट कर जाने ही वाली थी कि लड़का पूछ बैठा,
‘मैडम..... मैं रहूँ या चलूँ?’
आशा ज़रा सा पीछे सर घूमा कर बोली,
‘तुम जाओ.. मेरा काम हो गया |’
इतना कहकर नीर का हाथ पकड़ कर गेट की ओर बढ़ी --- और इधर वह लड़का आशा के रूखे शब्द सुन और अपेक्षित उत्तर न पाकर थोड़ा निराश तो हुआ पर पीछे से आशा की गोल उभरे गांड को देखकर उसकी वह निराशा पल भर में उत्तेजना में परिवर्तित हुआ और मदमस्त गजगामिनी की भांति आशा के चलने से गोल उभरे गांड में होती थिरकन को देख, एक वासनायुक्त ‘आह’ कर के रह गया |
रणधीर बाबू का गेट से लेकर मेन डोर तक सब कुछ साफ़ सुथरा और चमक सा रहा था | डोरबेल बजने पर एक आदमी आ कर दरवाज़ा खोल गया --- नौकर ही होगा शायद— रणधीर बाबू के बारे में पूछने पर बताया कि, ‘साहब अभी नाश्ता कर रहे हैं--- आप बैठिए ..’
सामने सोफ़े की ओर इंगित कर चला गया वह--- आशा बैठ गई--- नीर बीच बीच में जल्दी घर जाने की ज़िद कर रहा था --- इसी बीच नौकर पानी दे गया—प्यास लगी थी आशा को, इसलिए पानी गटकने में देर नहीं की --- नीर के लिए कुछ बिस्कुट लाया था वह नौकर---जहां तक हो सके—जितना हो सके ---- वह नज़रें घूमा घूमा कर उस आलिशान रूम को देखने लगी ---- टाइल्स, मार्बल्स, दीवार घड़ी, टेबल, चेयर्स,सोफ़ा सेट... इत्यादि.. सब कुछ इम्पोर्टेड रखा है वहाँ | क्या फर्नीचर और क्या खिड़की दरवाज़े--- यहाँ तक की खिड़कियों पर लगे पर्दे भी अपनी ख़ूबसूरती से खुद के इम्पोर्टेड होने के सबूत देना चाह रहे हैं |
कुछ मिनटों बाद ही अंदर के कमरे से रणधीर बाबू आए | कुरता पजामा में रणधीर बाबू काफ़ी जंच रहे हैं—आशा की ओर देख कर एक स्वागत वाली मुस्कान दे कर ठीक सामने वाली सोफ़ा चेयर पर बैठ गए | रणधीर बाबू को नमस्ते करके आशा भी बैठ गई | बैठते समय आशा को आगे की ओर थोड़ा झुकना पड़ा --- और यही झुकना ही शायद उसकी बहुत बड़ी गलती हो गई उस दिन --- आशा के मुखरे की खूबसूरती देख प्रभावित हुआ रणधीर बाबू अब भी उसी की ओर ही देख रहा था कि आशा नमस्ते करके बैठते हुए झुक गई --- और इससे उसका दायाँ स्तन टाइट ब्लाउज-ब्रा कप के कारण और ज़्यादा ऊपर की ओर निकल आया --- यूँ समझिए की लगभग पूरा ही निकल आया था---सुनहरी गोल फ्रेम के चश्मे से आशा की ओर देख रहे रणधीर बाबू वो नज़ारा देख कर बदहवास सा हो गए --- मुँह से पान की पीक निकलते निकलते रह गई ---- यहाँ तक की वह निगलना तक भूल गए--- होंठों के एक किनारे से थोड़ी पीक निकल भी आई --- आँख गोल हो कर बड़े बड़े से हो गए --- हद तो तब हो गई जब २ सेकंड बाद ही आशा नीर के द्वारा एक बिस्कुट गिरा दिए जाने पर झुक कर कारपेट पर से बिस्कुट उठाने लगी----और उसके ऐसा करने से रणधीर बाबू ने शायद अपने जीवन में अब तक का सबसे सुन्दर नज़ारा देखा होगा ---- चूची के वजन से दाएँ साइड से साड़ी का पल्ला हट गया और तंग ब्लाउज में से उतनी बड़ी चूची एक तो वैसे ही नहीं समा रही है और तो और पूरा ही बाहर निकल आने को बस रत्ती भर की देर थी ---- साथ ही करीब करीब सात इंच का एक लंबा गहरा दूधिया क्लीवेज सामने प्रकट हो गया था |
चाहे कितना भी नंगा देख लो पर अधनंगी चूचियों को देखने में एक अलग ही मज़ा है ---- खास कर यदि चूचियों में पुष्टता हो और क्लीवेज की भी एक अच्छी लंबाई हो--- और रणधीर बाबू तो इन्ही दो चीज़ों पर जान छिड़कते थे |
कुछ ही क्षणों में आशा सीधी हो कर बैठ गई — पर पल्लू को ठीक नहीं किया— शायद ध्यान नहीं गया होगा उसका--- इससे दायीं ब्लाउज कप में कैद दायीं चूची ऊपर को निकली हुई अपनी गोलाई के साथ पल्लू से बाहर झाँकती रही और रणधीर बाबू को एक अनुपम नयनसुख का एहसास कराती रही |
रणधीर बाबू तो जैसे अंदर ही अंदर स्वर्गलाभ करने लगे हैं--- और साथ ही यह दृढ़ निश्चय भी करने लगे हैं कि अगर इसी तरह प्रत्येक दिन दूध वाले सौन्दर्य दर्शन करना है तो उन्हें न सिर्फ़ अभी के अभी इसे नौकरी के लिए हाँ करना है बल्कि बिल्कुल भी इंकार न कर सके ऐसा कोई ज़बरदस्त ऑफर भी करना होगा |
गला खंखारते हुए रणधीर बाबू ने पूछा,
“यहाँ आते हुए कोई दिक्कत तो नहीं हुआ न आशा जी?”
“नहीं सर, कोई प्रोब्लम नहीं हुई ... पर आप मुझे ‘जी’ कह कर संबोधित मत कीजिए---- मैं बहुत छोटी हूँ आपसे—तकरीबन आपकी बेटी की उम्र की हूँ --”
आशा के ऐसा कहते ही एक उत्तेजना वाली लहर दौड़ गई रणधीर बाबू के सारे शरीर में--- उसने अब ध्यान दिया--- आशा की उम्र लगभग उसकी अपनी बेटी के उम्र के आस पास होगी--- अपने से इतनी कम उम्र की किसी लड़की के साथ सम्बन्ध बनाने की कल्पना मात्र से ही रणधीर बाबू का रोम रोम एक अद्भुत रोमांच से भर गया |
गौर से देखा उसने आशा को; कम से कम २०-२२ साल का अंतर तो होगा ही दोनों में---रणधीर ने खुद अनुमान लगाया की जब वह खुद 65 का है तो आशा तो कम से कम 35-40 की होगी ही | उम्र का ये अंतर भी काफ़ी था रणधीर के पजामे में हरकत करवाने में |
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