RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
थोड़ी देर तक पूछ्ताछ के बाद,
‘अच्छा आशा, तुम्हारे जवाबों से मुझे संतुष्टि तो हुई है .... मम्ममम..... (नज़र आशा के बेटे पर गई.....) ... प्यारा बच्चा है... क्या नाम है इसका ...??’
आशा ने खुद जवाब न देकर नीर से कहा,
‘बाबू.. चलो... अंकल को अपना नाम बताओ...’
‘न..नीर.. नीरज... नीरज मुखर्जी...|’
तनिक तोतलाते हुए नीर ने जवाब दिया...
रणधीर उसकी बात सुन हँस पड़ा ... हँसते हुए पूछा,
‘एंड व्हाट्स योर फादर्स नेम?’
‘अ..अभ...अभय मुखर्जी.. |’
जवाब देते हुए नीर एकबार अपनी माँ की तरफ़ देखा और फ़िर रणधीर की ओर...
जब नीर ने आशा की ओर देखा, तब रणधीर ने भी नीर की दृष्टि को फ़ॉलो करते हुए आशा की ओर देखा; और पाया कि नीर से उसके पापा का नाम पूछते ही आशा थोड़ी असहज सी हो गई ... चेहरे की मुस्कान विलीन हो गई .. नीर भी जैसे पापा का नाम बताते हुए अपनी मम्मी से इसकी अनुमति माँग रहा है.... |
रणधीर जैसे मंझे खिलाड़ी को ये समझते देर नहीं लगी कि दाल में कुछ काला है---- इतना ही नहीं, आशा के बॉडी लैंग्वेज से उसे ये डाउट भी हुआ की हो न हो शायद पूरी दाल ही काली है..|
आशा के मन को थोड़ा टटोलते हुए पूछा,
‘पापा से बहुत प्यार करता है न यह?’
आशा ने चेहरे पर एक फीकी मुस्कान लाते हुए धीरे से कहा,
‘जी सर |’
रणधीर हर क्षण आशा के चेहरे के भावों को पढ़ने लगा--- इतने सालों से वो देश-दुनिया को देख रहा है--- इतना बड़ा और तरह तरह के व्यापार सँभालने वाला कोई भी व्यक्ति इतना तो परिपक्व हो ही जाता है की वो सामने वाले के चेहरे पर आते जाते विचारों के बादल को पढ़-पकड़ सके |
‘ह्म्म्म.. देखो आशा ----- मुझे जो भी जानना था----सो जान लिया---तुम्हारा क्वालिफिकेशन लगभग ठीक ही है---दो तीन जगह खाली हैं मेरे आर्गेनाइजेशन में---- देखता हूँ --- क्या किया जाए तुम्हारे केस में ---- .....’
अभी अपनी बात पूरी कर भी नहीं पाया था रणधीर बाबू के अचानक से आशा सेंटर टेबल पर थोड़ा और झुकते हुए, हाथों को आपस में जोड़ते हुए से मुद्रा लिए बोली,
‘प्लीज़ सर, प्लीज़ कंसीडर कीजिएगा---- मेरा एक जॉब पाना बहुत ज़रूरी है--- आई नीड इट--- प्लीज़ सर--- आई प्रॉमिस की आपको मेरी तरफ़ से कोई शिकायत नहीं होगी--- पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करुँगी--- आपकी कभी कोई बात नहीं टालूंगी ---- .............’
‘अच्छा अच्छा ---- रुको----’ रणधीर बाबू ने हाथ उठा कर आशा को चुप करने का इशारा किया
इस बार रणधीर ने बीच में टोका---
आशा की तरफ़ गौर से कुछ पल निहारा ---- आशा के सामने झुके होने की वजह से एकबार फ़िर उसकी दायीं चूची का ऊपरी गोलाई वाला हिस्सा बाहर आने को मचलने लगा है---- रणधीर बाबू की नज़रें वहीँ अटक गईं ----और इसबार आशा ने भी इस बात को नोटिस किया पर --- पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी--- शायद इस भरोसे में की अगर ये बुड्ढा थोड़ा नयनसुख लेकर उसे एक अच्छी नौकरी दे देता है तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?!
‘पर आशा, एक बात मैं तुम्हें अभी से ही बिल्कुल क्लियर कर देना चाहूँगा कि अगर मैंने तुम्हें नौकरी पर रखा तो मैं हमेशा ही इस बात का अपेक्षा रखूँगा की तुम कभी मेरा कोई कहना नहीं टालोगी--- ज़रा सी भी ना-नुकुर नहीं--- और यही तुम्हारा फर्स्ट ड्यूटी --- परम कर्तव्य भी होगा--- ठीक है??’
अंतिम के शब्दों को कहते हुए रणधीर बाबू ने चश्में को नाक पर थोड़ा नीचे करते हुए बड़ी बड़ी आँखों से सीधे आशा की आँखों में झाँका --- रणधीर के इस तरह देखने से आशा थोड़ी सहम ज़रूर गई पर बात को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेते हुए चेहरे पर एक फीकी स्माइल लिए सिर हिलाते हुए ‘बिल्कुल सर..’ बोली |
‘आई प्रॉमिस की मैं आपकी हर आदेश का --- हर बात का पालन करुँगी ---- किसी भी बात में कभी कोई बाधा न दूँगी न बनूँगी--- आपकी हर बात सर आँखों पर--- |’
आशा को बिना इक पल की भी देरी किए; ज़रूरत से ज़्यादा हरेक बात को मानते देख रणधीर मन ही मन बहुत खुश हुआ---चिड़िया खुद ही बिछाए गए जाल को अपने ऊपर ले ले रही है—ये समझते देर नहीं लगी |
‘वैरी गुड आशा... तुम्हारे रेस्पोंस से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ .. वाकई तुममें ‘काम’ करने की एक ललक है (काम शब्द पर थोड़ा ज़ोर दिया रणधीर बाबू ने) --- समझो की तुम लगभग एक जॉब पा गई---- बस, एक बात के लिए तुम्हें हाँ करना है---- एक शर्त समझो इसे--- या--- म्मम्मम--- इट्स लाइक एन एग्जाम--- अ टेस्ट--- टू गेट सिलेक्टेड फॉर द जॉब---’
‘यस सर... एनीथिंग----|’ – आशा जोश में आ कर बोली |
‘हम्म्म्म-----’ ---रणधीर बाबू के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई |
और फ़िर रणधीर बाबू ने वह शर्त बताया--- उस टेस्ट के बारे में जिसे पास करते ही आशा को एक शानदार जॉब मिलेगा----
जैसे जैसे रणधीर बाबू शर्त और उसकी बारीकियाँ समझाते गए---
वैसे वैसे;
आशा की आँखें घोर आश्चर्य और अविश्वास से बड़ी और चौड़ी होती चली गई ---- ह्रदय स्पंदन कई गुना बढ़ गया--- अपने ही कानों पर यकीं नहीं हो रहा था आशा को ----- रणधीर बाबू के शर्त के एक एक शब्द, आशा के काँच सी अस्तित्व पर पत्थर की सी चोट कर; उसके अस्तित्व को समाप्त करते जा रहे थे ----- बुत सी बैठी रह गई सोफ़े पर---- |
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