RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
‘कुछ भी हो, मैं नीर का एडमिशन और पढ़ाई एक अच्छे स्कूल से करा कर ही रहूँगी--- (एक फॉर्म को उठाकर देखते हुए)---- जॉब भी और एडमिशन भी--- |’
इतना बड़बड़ाने के तुरंत बाद ही,
आशा के---
दोनों आँखों से लगातार चार बूँद आँसू गिरे---
चेहरा थोड़ा कठोर हो चला उसका---
कुछ ठान लिया उसने---
अपने हैण्डबैग से एक पेन निकाल लाई और फटाफट फॉर्म भरने लगी---
स्पष्टतः उसने एक ऐसा निर्णय ले लिया था जो आगे उसकी ज़िंदगी को बहुत हद तक बदल देने वाला था ---|
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अगले ही दिन,
नहा धो कर, अच्छे से तैयार हो ; माँ बाबूजी का आशीर्वाद ले ऑटो से सीधे ****************** स्कूल जा पहुँची ---- अर्थात रणधीर बाबू का स्कूल--- |
रजिस्टर में नाम, पता और आने का उद्देश्य लिखने के बाद पेरेंट्स कम गेस्ट्स वेटिंग रूम में करीब आधा घंटा इंतज़ार करना पड़ा आशा को |
पियून आया और,
‘साहब बुला रहे हैं’
कह कर कमरे से बाहर चला गया |
सोफ़ा चेयर के दोनों आर्मरेस्ट पर अपने दोनों हाथ टिकाए सीधी बैठ,
एक लंबी साँस छोड़ी और उतनी ही लंबी साँस ली आशा ने –
फ़िर सीधी उठ खड़ी हुई और सधी चाल से उस कमरे से बाहर निकली--- उसको इस बात की ज़रा सी भी भनक नहीं लगी कि उस कमरे में ही दीवारों के ऊपर लगे दो छोटे सीसीटीवी कैमरों से उस पर नज़र रखी जा रही थी ----|
भनक लगती भी तो कैसे, पूरे समय किन्हीं और ख्यालों में खोई रही वह |
पियून उसे लेकर सीढ़ियों से होता हुआ, एक लम्बी गैलरी पार कर एक कमरे के बंद दरवाज़े के ठीक सामने पहुँचा--- बगल दीवार में लगी एक छोटी सी कॉल बेल नुमा एक बेल को बजाया--- २ सेकंड में ही अन्दर से एक मीठी सी बेल बजने की आवाज़ आई--- अब पियून ने दरवाज़े को हल्का धक्का दिया और दरवाज़ा को पूरा खोल कर ख़ुद साइड में खड़ा हो गया और अपने बाएँ हाथ से अन्दर की तरफ़ इशारा कर आशा से मौन अनुरोध किया; अंदर आने को --- आशा कंपकंपाए होंठ और काँपते पैरों से अन्दर प्रविष्ट हुई--- मन में किसी अनहोनी या कोई अनजाने डर को पाले हुई थी |
अन्दर एक बड़ी सी मेज़ की दूसरी तरफ़, रणधीर बाबू एक फ़ाइल को पढ़ने में डूबा हुआ था;
पियून ने एकबार बड़े अदब से ‘सर’ कहा---
फ़ाइल में घुसा रणधीर ने बिना सिर उठाए ही ‘म्मम्मम; हम्म्म्म..’ कहा---
आशा चेहरे पर शंकित भाव लिए सिर घुमा कर पीछे पियून की ओर देखा—पियून भी सिर्फ़ आशा को देखा और कंधे उचकाकर इशारे में ये बताने की कोशिश किया कि वह इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता है |
तब आशा ने ही अपने नर्वसनेस पर थोड़ा काबू पाते हुए अपनी आवाज़ को थोड़ा सख्त और ऊँचा करते हुए कहा,
‘ग... गुड मोर्निंग सर...|’
इस बार रणधीर ने फ़ाइल हाथों में लिए ही आँखें ज़रा सा ऊपर किया--- करीब ५-६ सेकंड्स आशा की ओर अपने गोल सुनहरे फ्रेम से देखता रहा--- आँखों पर जैसे उसे भरोसा ही नहीं हो रहा हो--- उसकी ड्रीमलेडी उसके सामने खड़ी है आज---अभी--- वो ड्रीमलेडी जो कुछ दिन पहले ही उसके घर से गुस्से से निकल आई थी उसका ऑफर सुनकर--- जिसके बारे में इतने दिनों से सोच सोच कर, तन जाने वाले अपने बूढ़े लंड को मुठ मार कर शांत करता आ रहा है--- आशा को सिर्फ़ सोचने भर से ही उसका बूढा लंड न जाने कैसे खुद ही, अभी अभी जवानी के दहलीज पर पाँव रखने वाले किसी टीनएजेर के लंड के माफ़िक टनटना कर, रणधीर बाबू के पैंट हो या लुंगी, उसके अंदर आगे की ओर तन जाया करता है --- सख्त - फूला – फनफनाता हुआ--- साँस लेने के लिए रणधीर बाबू के पैंट या लुंगी के अंदर से निकल आने को बेताब सा हो छटपटाने सा लगता लंड ऐसे पेश आता जैसे की उस समय अगर कोई भी महिला यदि सामने आ जाए तो फ़िर चोद के ही उसका काम तमाम कर दे----|
इसी सनक में रणधीर बाबू ने न जाने इतने ही दिनों में कितनी ही हाई क्लास कॉल गर्ल्स- कॉल वाइव्स – एस्कॉर्ट्स और कितने ही वेश्याओं को रगड़ रगड़ कर चोद चुका था पर वो सुख नहीं मिलता जो उसे आशा के नंगे जिस्म को कल्पना मात्र करते हुए मुठ मारने में मिल रहा था ---
और आज वही स्वप्नपरी उसके सामने उसी के ऑफिस में खड़ी है !
रणधीर के चश्मे का ग्लास हलके ब्राउन रंग का था और कुछ दूरी पर खड़ा कोई भी शख्स इस बात को कन्फर्म कभी नहीं कर सकता कि रणधीर अगर उसे देख रहा है तो एक्सेक्ट्ली उसकी नज़रें हैं कहाँ ......
और यही हुआ आशा के साथ भी----
वो बेचारी ये सोच रही है की रणधीर उसे देख रहा है पर वास्तव में रणधीर की नज़रें सिर्फ़ और सिर्फ़ आशा के सामने की ओर उभर कर तने विशाल पुष्ट चूचियों पर अटकी हुई हैं |
फ़ाइल के एक कागज़ को उसने इस तरह से भींच लिया मानो वो कागज़ न होकर आशा की पुष्ट नर्म गदराई चूचियों में से एक हो----
खैर,
ख़ुद को तुरंत सँभालते हुए रणधीर बाबू ने अपना गला खंखारा और बोला,
‘अरे! इतने दिन बाद... प्लीज हैव ए सीट...’
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