RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
बड़ी होशियारी से रणधीर बाबू ने आशा का नाम नहीं लिया क्योंकि अगर उसने नाम लिया होता तो ‘आशा जी’ कह कर संबोधित करना पड़ता जोकि उसे पसंद नहीं था क्योंकि आशा ने पहले अपने तेवर दिखाते हुए उसे ‘ना’ कर चुकी थी और अगर उसने सिर्फ ‘आशा’ कहा होता तो इससे वहाँ उपस्थित पियून को ये शक हो जाता कि रणधीर इस औरत को पहले से जानता है और ये बात वो पियून दूसरों में फ़ैला देता |
आशा सामने की कुर्सी को सरका के बैठ गई |
पियून जाने जाने को हो रहा था पर जा नहीं रहा देख कर,
रणधीर बाबू ने आँखों के इशारों से पियून को वहाँ से जाने का आदेश दिया |
पियून सलाम ठोक कर चला गया ----
रणधीर ने कुछ देर यूँही मुस्करा कर, चेहरे पर रौनक वाली हँसी लिए आशा के साथ इधर उधर की फोर्मालिटी वाली बातें करता रहा; पहुँचा हुआ खिलाड़ी है वह ऐसे खेलों में--- अच्छे से जानता है की आशा अभी घबराई हुई है और अगर अचानक से ऐसी वैसी कोई बात छेड़ी जाए तो बात शायद बिगड़ जाए--- हालाँकि कोई माई का लाल है नहीं जो रणधीर बाबू से पंगा ले ले --- रही बात स्कूल के लेडी टीचर्स की तो; जितनी भी लेडी टीचर्स हैं--- सब की सब रणधीर बाबू के बिस्तर तक का सफ़र कर चुकी हैं |
आशा ने तिरछि नज़रों और कनखियों से पूरे रूम का जल्दी से मुआयना किया---
आलिशान रूम है रणधीर बाबू का....
चारों ओर सुन्दर नक्काशी वाले मार्बल्स, ग्लास के प्लेट्स, खिड़की पर सुन्दर गमलों में मनी प्लांट्स और ऐसे ही दूसरे प्लांट्स की मौजूदगी, कमरे में फ़ैली एक मीठी भीनी सी सुगंध... सब मिलकर माहौल को एक अलग ही ढंग दे रहे हैं |
टेबल पर रखे एक स्टैंड लैंप को ठीक करते हुए आशा की तरफ़ पैनी निगाह डालते हुए रणधीर ने पूछा,
‘सो...., आर यू रेडी??’
‘ऊंह...’
आशा चिंहुकी... रणधीर बाबू की ओर सवालिया नज़रों से देखी और मतलब समझते ही लाज से आँखें झुका ली.....
आदतन, अपने पल्लू को थोड़ा ठीक की वो..
और उसके ऐसा करते ही,
रणधीर बाबू की नज़रें फ़िर से आशा के पुष्ट वक्षस्थल पर जा टिकीं जो पिछले कुछ दिनों से उसके आशा के प्रति आकर्षण का केंद्र बिंदु रहा है ---
रणधीर बाबू के नज़रों का लक्ष्य समझने में देरी नहीं हुई आशा से...
और समझते ही तुरंत और भी ज़्यादा शर्मा गई...
रणधीर की अत्यंत वासना युक्त निगाहें---
और उन निगाहों से अंदर तक नहाती चली जाती आशा का सारा जिस्म का रक्त तो मानो उफ़ान सा मारने लगा--- चेहरे का सारा रक्त जैसे उसके गालों में इकट्ठा हो कर उसके मुखरे को और भी गुलाबी बना रहा था |
पता नहीं कैसे;
पर एक बाप के उम्र के आदमी के द्वारा खुद के यूँ मुआयना किए जाने से अब आशा के तन-मन में कुछ गुदगुदी सी होने लगी--- ख़ुद को ऐसे विचारों से घिरने से रोक तो रही थी अंदर ही अंदर; पर रह रह कर मन में उठने वाली काम-तरंगों पर उसका कोई नियंत्रण रह ही नहीं रहा था |
‘आई सेड, आर यू रेडी... आशा??’ मेज़ पर अपने दोनों कोहनियों को टिका कर आशा की तरफ़ आगे की ओर झुकते हुए रणधीर बाबू ने पूछा |
यूँ तो दोनों के बीच दो हाथ से भी ज़्यादा की दूरी है, फ़िर भी आशा को ऐसा एहसास हुआ की मानो रणधीर बाबू वाकई उसपर झुक गए हैं ---- |
‘ज..ज.. जी सर... आई एम रेडी... |’
‘पूरी बात साफ़ साफ़ बोलो आशा---’
रणधीर बाबू ने अबकी बार थोड़ा कड़क और रौबीले अंदाज़-ओ-आवाज़ में कहा----
शर्म और डर का मिश्रित भाव चेहरे पर लिए, नज़रें नीचे कर बोली,
‘मैं तैयार हूँ आपके हरेक आदेश को बिना शर्त और बिना के रोक टोक के , अक्षरशः पालन करने के लिए...’
‘मैं यहाँ हूँ आशा--- यहाँ--- मेरी तरफ़ देख कर अभी अभी कही गई बातों को दोहराओ..... |’ उसकी ऐसी स्थिति का और अधिक आनंद लेने के लिए रणधीर बाबू ने कहा |
एक साँस छोड़ते हुए आशा रणधीर बाबू की ओर देखी--- और दोहराई---
‘सर, मैं, आशा मुखर्जी, तैयार हूँ आपके हरेक आदेश को बिना शर्त और बिना के रोक टोक के , अक्षरशः पालन करने के लिए... |’
रणधीर मुस्कराया ---
आशा के शर्म और संकोच की दीवार में थोड़ी ही सही, पर आख़िर में एक दरार डाल पाया | पर उसे एक संदेह यह भी है की कुछ ही दिनों पहले गुस्सैल तेवर दिखाने वाली महिला अचानक से आज समर्पण क्यों कर रही है??
ह्म्म्म,
‘कुछ तो गड़बड़ है—‘ वह सोचा
‘आज यहाँ कैसे?’ --- रणधीर ने पूछा |
काँपते लहजे में नर्वस आशा ने उत्तर दिया,
‘सर... दो काम से आई हूँ---- एक, मुझे जॉब के लिए अप्लाई करना है और दूसरा, अपने बेटे का एडमिशन इस स्कूल में करवाना है--- |’
‘हम्म्म्म, पर उस दिन तो सिर्फ़ जॉब के लिए आई थी?’ चकित रणधीर ने तुरंत सवाल दागा |
‘जी सर, नीर के लिए कोई बढ़िया स्कूल नहीं मिल रहा और इस स्कूल का काफ़ी नाम है--- इसलिए सोची की अगर मेरा जॉब और उसका एडमिशन; दोनों एक ही स्कूल में हो जाए तो बहुत ही अच्छा होगा ---- नज़रों के सामने तो रहेगा --- पढ़ाई और ओवरऑल एक्टिविटीज़ पर ध्यान दे सकूँगी |’
‘उसपे ध्यान देने के चक्कर में कहीं तुम्हारा काम प्रभावित हुआ तो?’ रणधीर ने पूछा |
‘नहीं सर, आई प्रॉमिस--- ऐसा कभी नहीं होगा---- आई कैन वैरी वेल मैनेज इट |’ उतावलेपन पर थोड़ी दृढ़ता से जवाब दिया आशा ने |
‘तुम्हें यहाँ जॉब चाहिए और तुम्हारे बेटे को एडमिशन---- और मेरा क्या??’ इस प्रश्न को अधूरा छोड़ते हुए रणधीर ने आशा की ओर मतलबी निगाहों से देखा |
‘आप जो बोलें सर---’ आशा ने भी अस्पष्ट प्रत्युत्तर दिया |
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