RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
भाग ७: नया कदम .. (अंतिम भाग) (भाग - १)
दो सख्त से हाथों के अपने सुकोमल वक्षों पर पड़ते दबाव से निःसंदेह कसमसा गई वह --- शावर के ठीक नीचे खड़े होने के कारण उससे गिरते पानी सीधे उसके बंद आँखों और चेहरे पर पड़ रहे थे --- और उन कठोर हाथों का मालिक चाहे जो कोई भी हो, पीछे से अडिग रूप से खड़ा था जिस कारण आशा दिल में लाख़ चाहते हुए भी पीछे हट नहीं पा रही थी --- इन्हीं दो कारणों से आशा न आँखें खोल पाई और न ही पीछे हट कर उसके स्तनों के साथ छेड़खानी करने की गुस्ताख़ी करने वाले उन हाथों के स्वामी को देख पाने की स्थिति में रही --- |
पर इतना तो तय है,
कि आशा के सुपुष्ट स्तनों के साथ खिलवाड़ करने वाले वो हाथ किसी अनारी के नहीं हो सकते ---
क्योंकि जिस अनुपम कलात्मक ढंग से वे हाथ और ऊँगलियाँ पूरे स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके निप्पल को छेड़ रहे हैं --- वह किसी खेले – खेलाए ; एक मंझा हुआ खिलाड़ी ही हो सकता है -- |
कोशिश काफ़ी की आशा ने खुद को और खुद के स्तनों को उन हाथों की गिरफ़्त से छुड़ाने की ---
पर छुड़ा न पाई ---
क्योंकि नाकाफ़ी साबित हुए उसके वे कोशिश ---
तर्कों ने लाख़ तर्क दिए ; पर पहले से ही उसपे हावी उसकी काम-क्षुधा ने आशा को उसे, उसके दिल के साथ रज़ामंद होने में देर न होने दी ---
और इसी का प्रतिफल यह रहा कि आशा ने ख़ुद को छुड़ाने की बस इतनी ही कोशिश की कि ज़रूरत पड़ने पर वह खुद को सान्तवना और दूसरों को सबूत दे सके की उसने तो कोशिश की थी ख़ुद को छुड़ाने की, पर बेचारी अबला अकेली नारी ख़ुद को एक मज़बूत हवसी से बचा न सकी --- |
दिल ने गवाही देने के साथ साथ ये माँग करनी भी शुरू कर दी थी कि उसके चूचियों और शरीर के साथ और ज़्यादा से ज़्यादा खेला जाए --- छेड़खानी की गुस्ताख़ी और बढ़े --- सीमाओं के बाँध और टूटे --- अरमानों के बाढ़ और बहे --- शावर से गिरते पानी, सावन की बारिश सी उसकी कामाग्नि को बुझाने में उसकी भरसक मदद करे ----
पर ये सब उसके होंठों से न निकल सके ---
ये बातें दिल में उठ कर दिल में ही दब कर रह गए ---
किसी अनजाने अंदेशों ने इन बातों को उसके होंठों के कैद से बाहर न निकलने दिए ---
सबकुछ जान - समझ रही आशा बस चुपचाप खड़ी रह कर कसमसाते रहने और बीच बीच में ख़ुद को छुड़ाने की एक दिखावटी कोशिश में लगी रही --- |
पर नर्म, सुकोमल, सुपुष्ट चूचियों पर सख्त हाथों के पड़ते दबाव और निरंतर हो रही उनसे छेड़खानियों ने आशा के शरीर को उसके तर्क, लाज, दुविधा और अन्य बातों से बगावत करने को मज़बूर कर ही दिया ---
धीरे धीरे उसके अंदर समर्पण का भाव जन्म लेने लगा ---
गुदगुदी सी हुई पूरे शरीर में --- साथ ही चूत में चीटियाँ सी रेंगने वाली फीलिंग आने लगी ---
कुछ कुछ होने लगा था उसके तन बदन में ----
काम पीड़ा से तो पहले से ही पीड़ित थी वह --- और अब यह पूरा उपक्रम --- ‘उफ्फ्फ़..!’...
वो दोनों हाथ कभी उसके चूचियों को नीचे से ऊपर की ओर उठा कर अच्छे से मसलते, तो कभी मसलते मसलते नीचे बढ़ते हुए कमर तक पहुँचते और थोड़ी देर वहां गोल गोल घूमने के बाद थोड़ा तिरछा हो कर कुछ नीचे और बढ़ते --- चूत के ठीक बिल्कुल ऊपर तक पहुँचते और दो ऊँगलियों से हल्का प्रेशर दे कर एक ऊँगली को दबाए ; दूसरी ऊँगली को उसी तरह दबाए रख कर धीरे धीरे उस हिस्से को गोल गोल घूमाते हुए --- ऊँगलियों के प्रेशर को यथावत बनाए रखते हुए एक सीध में ऊपर उठते हुए कमर तक पहुँचते और फ़िर उसी तरह नीचे चूत तक जाते ----
ठीक उसी तरह प्रेशर को बनाए रखते हुए चूत के ऊपरी हिस्से से खिलवाड़ करते और फ़िर धीरे धीरे उँगलियों से प्रेशर बनाते हुए ऊपर की ओर उठ आते ---
हर दो बार ऐसा करने के बाद तीसरी बार वे हाथ कमर पर पहुँचते ---
गाउन के ऊपर से ही नाभि को टटोलकर पूरे पेट पर घूमते ----
और फ़िर धीरे धीरे चूचियों के ठीक निचले हिस्से पर पहुँच कर गाउन के ऊपर से ब्रैस्ट अंडरलाइन को ढूँढ कर, दोनों अंगूठों से दबाते हुए दोनों चूचियों के नीचे दाएँ बाएँ घूमते ----
और फ़िर दोनों हथेली एकदम से फ़ैल कर उन विशाल मस्त चूचियों को अपने गिरफ़्त में भली प्रकार लेते हुए बड़े प्रेम से मसलने लगते ---- |
आशा तो बस अपनी सारी सुध-बुध खो चुकी थी ---
दिन रात, सर्दी गर्मी ठण्ड, बारिश ---- सब कुछ अभी गौण हो चुके हैं फ़िलहाल उसके लिए ---- |
उसके लिए तो केवल ‘काम’, ‘काम’ , ‘काम’, ‘काम’ और बस..... ‘काम’..... -----
साँसें तेज़ होने लगी उसकी,
धड़कनें तो धीरे धीरे न जाने कब की बढ़ चुकी हैं ---
होंठ काँपने लगे हैं ---
शावर के ठन्डे पानी और तन की गर्मी के मिश्रण से शरीर अजीब सा अकड़ गया है ---
वो हिलना चाहे भी तो नहीं हिल पा रही है ---
पीछे जो भी है,
लगता है बड़ी चूचियों का बहुत दीवाना है ---
तभी तो इतने देर से मसलने के बाद भी अब भी पहले वाले जोश और तरम्यता के साथ मसले जा रहा है ---
गाउन के अंदर ही खड़ी हो चुकी दोनों निप्पल को तर्जनी ऊँगलियों के सहायता से हल्के से छूते हुए ऊपर नीचे और दाएँ बाएँ करके खेलना शायद बहुत पसंद होगा इस शख्स को ---- तभी तो शुरुआत से लेकर अभी तक इस खेल में रत्ती भर का कोई अंतर या परिवर्तन नहीं आया था ---- |
अभी अपने वक्षों पर हो रहे यौन शोषण का आनंद ले ही रही थी कि अचानक से चिहुंक पड़ी आशा ---
कारण,---
कारण था अपने पिछवाड़े पर कुछ सुई सा चुभने का अहसास --- जोकि अभी अभी हुआ उसे --- आशा को ---
कुछ और होगा सोच कर दुबारा मीठे दर्द के अहसास में खोने के लिए तैयार होने जा रही आशा फ़िर से चिहुंक उठी ---
और इस बार चुभने का अहसास कुछ ऐसा था कि वह अपने पैर के अँगुलियों पर ही लगभग खड़ी हो गई --- पर ज़्यादा देर खड़ी न रही आशा ---- क्योंकि वो बलिष्ठ हाथ उसके चूचियों को अच्छे से मुट्ठी में ले अपने ओर --- पीछे की ओर खिंच लिए ---
|