RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
रणधीर बाबू अब धीरे धीरे अपने जीभ को बाहर निकाल आशा के होंठों पर फ़िराने लगे ----
जीभ के अग्र भाग से आशा के होंठों पर हल्का दबाव डालते और फ़िर जीभ को होंठों पर ऊपर नीचे घूमाते हुए हलके दबाव डाल कर होंठों के बीच घुसा कर आशा के दांतों पर फ़िराने लगते --- रणधीर बाबू को आशा के सफ़ेद, पंक्तिबद्द, मोतियों से चमकते दांत हमेशा से ही पसंद थे --- और मौका मिलते ही अपने जीभ से उसके उन दांतों को छूते ज़रूर थे --- अजीब फेटिश थी उनकी --- खैर, सबकी अपनी अपनी फेटिश और फंतासी होती है |
और रणधीर बाबू तो हैं ही एक नंबर के रसिया ---
रणधीर बाबू के दोनों हथेलियों के दबाव को अपने गीले गाउन के ऊपर से अपने वक्षों पर साफ़ साफ़ महसूस कर रही थी आशा --- रेसिस्ट तो करना चाह रही थी पर मन चाहे जो भी कहे, शरीर ने हरकत करना छोड़ दिया था ---
समर्पण ---
केवल समर्पण ही करना चाह रहा था उसका जिस्म --- मखमल --- कोमल ---- गोरी त्वचा वाली जिस्म --- जिसने न जाने कितनी ही रातों ; और यहाँ तक की दिनों में भी रणधीर बाबू के हाथों का स्पर्श खुद पर बर्दाश्त किया --- दबी गई, दबाई गई, कुचली गई , पुचकारी गई ---- जैसा रणधीर बाबू ने चाहा --- वैसा ही उन्होंने किया --- और आशा सहती गई --- |
पर हमेशा जो आशा के साथ होता है --- वही इस बार --- इस वक़्त हुआ ---
लाख न चाहने पर भी ---
आशा शनै: शनै: उत्तेजित होने लगी !!
मन के सभी भावों – विकारों, चिंता – दुश्चिंताओं को साइड कर,
अपने दिल – ओ – दिमाग,
और तन बदन में,
ऐसी परिस्थितियों में परम अपेक्षित, परम यौन उत्तेजनाओं को फ़ैल जाने दी --- फ़ैल जाने दी सृष्टि के सबसे पेचीदा पर साथ ही सबसे आकर्षणीय अद्भुत उन विचार और भावनाओं को --- जो इस सृष्टि चक्र को चलाने में सदा ही परम सहायक रहा है --- “काम-भावना” ---- फ़िर चाहे वो मनुष्य हो, या जानवर, या पक्षी ---- सबके मामले में सदैव एक सा |
और केवल सृष्टि चक्र को चलाने में ही नहीं,
अपितु,
ह्यूमन बीइंग्स अर्थात मनुष्यों के मामलों में विपरीत लिंग को देख कर जब तब, सदैव यौन तृष्णा को जगाने और तृप्त करने की आस जगाने में भी महत्ती भूमिका रही है --- |
अधिक देर तक बुत न बनी रह सकी वह ---
अपने हाथों को रणधीर बाबू के सिर के पीछे तक ले जा कर अपनी अँगुलियों को आपस में फंसाई और बाँहों का एक घेरा बना कर खुद को पैरों के अँगुलियों के सहारे खड़ी कर ; और भी बढ़ा दी अपने होंठों को उनके तरफ़ --- |
रणधीर बाबू उसकी मंशा को तुरंत ही समझ गए ---- स्पष्ट संकेत था कि उन्हें अब और विलम्ब नहीं करना चाहिए ---
हथौड़ा गर्म है --- चोट तुरंत करनी होगी ---
उन्होंने तुरंत ही अपने हाथों को नीचे कर आशा के कमर के दोनों ओर रखा और थोड़ी देर वहाँ रखने के बाद धीरे से हाथों को पीछे से नीचे ले जा कर उसकी गोल उभरी हुई माँसल गांड को दबाने और पुचकारने लगे |
आशा मारे जोश के गंगानाने लगी --- वाकई अपने जिस्म पर हो रही रणधीर बाबू के हरेक छेड़खानी उसके सहनशक्ति के पार जा रही थी |
वह मस्ती भर कर दोनों हथेलियों से रणधीर बाबू के सिर पीछे से अच्छे से पकड़ कर अपने तरफ़ और खिंची और जीभों की क्रिया लीला को छोड़ सीधे होंठों पर आक्रमण कर उनके निचले होंठों को बेइंतेहाई रूप से चूसने लगी ---- |
रणधीर बाबू की ख़ुशी का तो जैसे अब कोई पार नहीं है ----
आशा को कस कर अपनी ओर खिंच कर ज़बरदस्त तरीके से बाँहों में भर कर उसके नर्म होंठों का रसीला आनंद लेने लगे ---- अपनी आज तक की ज़िंदगी में उन्होंने कभी ऐसी कड़क और जोशीली माल नहीं देखी थी --- जो शुरू में बाधा तो देती है पर तुरंत ही हथियार भी डाल देती है --- और पूरे यौन क्रिया का मज़ा दूसरे को देने के साथ ही साथ ख़ुद भी जम कर लेती है |
आशा की मुँह से सिर्फ़,
“ऊँहहह... आःह्ह .... ओह्ह्ह ... मम्मम्मम”
की आवाजें आ रही थीं ---
रणधीर बाबू ने हाथ बढ़ा कर शावर को बंद किया ----
फ़िर आशा को एक ही झटके में बड़े ख़ूबसूरत तरीके से अपने गोद में उठा लिया और होंठों पर चुम्बनों की बौछार को बदस्तूर जारी रखते हुए ही किसी तरह बाथरूम से निकले --- और ---- आशा को गोद में उसी तरह उठाए ही सीढ़ियों से ऊपर उसके कमरे की तरफ़ बढ़ चले ---- एक सेकंड को आशा का ध्यान इस तरफ़ गया और उसे इस तरह उठाए ऊपर सीढ़ियाँ चढ़ते देख कर वह मन ही मन, इस उम्र में भी रणधीर बाबू के ताक़त का कमाल देख कर बेहद हतप्रभ हुई ---- और साथ ही बहुत ख़ुश और यौनोत्तेजित भी ---- आशा तो अब और भी ज़ोरों से रणधीर बाबू के सर को अपने होंठों के पास खिंच कर उनके होंठों को खा जाने वाले तरीके से चूसने लगी ---- |
इस उम्र में करीब ५५ किलो उठा कर चलने से निःसंदेह ही रणधीर बाबू का दम फूलने लगा था ---- पर किसी भी कीमत पर आशा को यह पता चले ; यह उनको गवारा नहीं था --- |
आशा का बेडरूम का दरवाज़ा अब भी पूरा खुला था ---
रणधीर बाबू अंदर घुसने के साथ ही सीधे बिस्तर के पास पहुंचे और आशा को ‘ध्प्प्प’ से पटक कर उस पर चढ़ बैठे --- पर अब तक तो आशा के अंदर का यौनेत्तेजना नाम का जानवर भी जाग कर बहुत बुरी तरह से खूंखार हो चुका था --- आशा ख़ुद को थोड़ा ऊपर कर रणधीर बाबू को धक्का दी --- धक्का बहुत जोर का तो नहीं पर था कुछ ऐसा कि रणधीर बाबू ख़ुद को संभाल नहीं सके और वहीँ आशा के बगल में ही बिस्तर पर धराशायी हो गए ---
उनके गिरते ही अब आशा उन पर चढ़ बैठी ---- और ---- अपने नाखूनों से रणधीर बाबू के सीने पर आघात करते हुए उनके होंठों पर टूट पड़ी --- बहुत बहुत और बहुत ही बुरी तरह से रणधीर बाबू के होंठों को चूस रही थी ---- लगभग काटते हुए ---- सीने, कंधे, ऊपरी बाँहों पर अपने नाखूनों से आघात कर निशान छोड़ रही थी ---- बेशक, रणधीर बाबू को पीड़ा हो रहा थी पर एक ऐसी सुंदरी, सम्पूर्ण यौवनयुक्त, उत्कट इच्छाओं से भरी एक महिला के हाथों कुछ पलों तक चोट खाना उन्हें सहर्ष स्वीकार था ---
रणधीर बाबू भी अपने काम वेग के सामने हार मानते हुए आशा के गले के पास से गाउन को पकड़ कर दो विपरीत दिशाओं की ओर खींचा --- और इससे नाईट गाउन कुछ फट कर --- और कुछ लूज़ हो कर बिल्कुल आजू बाजू और नीचे की ओर झूल गई --- आशा को बुरा न लगा --- लगता भी तो कैसे ---- कामाग्नि में जलते हुए आँखें बंद कर रखी है उसने --- रणधीर बाबू के हाथों दंड पाना चाहती है इस वक़्त --- पीड़ित होना चाहती है --- टॉर्चर होना चाहती है --- हर बाँध --- हर सीमओं --- को तोड़ देना चाहती है -- |
आशा के बड़े बड़े दूधिया दूध अब उन्मुक्त हो चुके थे ---- और दूध से भी अधिक जो सबसे मोह लेने वाला दृश्य था, वो था आशा के विशाल दूधों के बीच का ६ इंच लंबी दरार (क्लीवेज) --- आँखें और मुँह लोलुपता से भरने की देर भर थी कि उन्होने (रणधीर बाबू ने) उसे पास खींच लिया और उसकी दरार को चूमते-चूसते हुए, उसके नर्म मुलायम कूल्हों को दबाया ।
‘शशशssssशशशशशsssss ........’
आशा कराह उठी ---
सिर को ऊपर सीलिंग की ओर उठा कर --- आँखें बंद कर ---- अपने नर्म चुत्तड़ो पर उनके सख्त हाथों के दबाव को महसूस की ---- वह उसके नरम कूल्हों को दबाते हुए महसूस कर रहे थे ---- फ़िर उन्होंने अपना हाथ आशा के कूल्हे की दरार के बीच रख दिया और उसे दरार पर बड़े आहिस्ते से -- प्रेमपूर्वक चलाते रहे ।
पहले से ही काम-पीड़ित आशा अब धीरे धीरे जंगली होती जा रही थी --- उसने अपने जाँघों को, रणधीर बाबू की टांगों व जाँघों पर रगड़ना शुरू कर दिया ---- पर रणधीर बाबू तो आशा के काम प्रतिक्रियाओं से बेख़बर रह, ---- उसकी दूधिया छह इंच लंबे क्लीवेज को चूसे जा रहे थे --- बिल्कुल मगन हो कर --- सब बातों से बेख़बर हो कर --- बस ‘लप्प लप्प’ और ‘स्ल्लर्पssssस्ल्लsssर्र्पsss’ की आवाजें करते हुए क्लीवेज चूसने के काम में मगन थे ---
जल्द ही,
उन्होंने आशा के कूल्हों को छोड़ दिया और अपने सख्त हाथों से उसके नरम स्तन को अच्छे से पकड़ कर पंप करना शुरू किया ----
और पंप भी कुछ ऐसा करना चालू किया रणधीर बाबू ने कि देख कर लग रहा था मानो आशा के बूब्स में जो कुछ भी है इस वक़्त वह सब निकाल लेना चाहते हों --- आशा भी कुछ इस तरह से आहें भर रही थी जैसे की वह भी आज सब कुछ लुटाने को तैयार हो कर आई है ----
काफ़ी देर तक पागलों की तरह दबाने के बाद रणधीर बाबू कुछ सेकंड्स के लिए रुके ---- फटा हुआ गाउन अब बाधा बन रहा था ---- रणधीर बाबू ने आँखों के इशारे से अपनी बात आशा को समझाई --- और --- आशा भी बात को समझते ही तुरंत गाउन को जाँघों के पास से पकड़ कर कमर से होते हुए बहुत ही सिडकटिव तरीके से अपने दोनों हाथों के ऊपर से होकर निकाल फेंकी ---
“वाऊ !!”
सीने से लेकर कमर तक का नंगा जिस्म देख कर रणधीर बाबू के होंठ स्वतः ही गोल हो कर एक सीटी बजाते हुए ये बोल निकले |
आशा के गदराए शरीर को तो कई महीनों से भोग रहे हैं रणधीर बाबू पर आज तो रूप ही अलग है आशा का ---- और रूप ऐसा कि वासना की लहरें हिलोरें मार मार कर दिल और दिमाग को सुन्न किये दे रहा था और लंड को चुस्त और सख्त पर सख्त ---- |
अपने हथेलियों को आशा के चूचियों के बिल्कुल नीचे रख कर ऊपर से उठाते हुए उन्होंने आशा के गोरे स्तनों के गुलाबी निपल्स को देखा ---
इतनी देर में उसकी चूचियों को इतनी यातनाएँ दे चुके हैं रणधीर बाबू की दोनों ही जगह जगह से बुरी तरह लाल हो चुकी थीं और निपल्स भी एकदम कड़क हो कर खड़े थे ---
कामेच्छा की तीव्रता ने रणधीर बाबू के आँखों को सुर्ख लाल कर दिया था और अपनी उन्हीं सुर्ख लाल आँखों से वे आशा के आँखों में आँखें डाल कर उन लाल हो चुकी चूचियों को हौले से दबाया --- हालाँकि आशा भी काम वासना से बुरी तरह पीड़ित हो तड़प रही थी पर रणधीर बाबू का इस तरह उसके आँखों में आँखें डाल कर उसकी नंगी चूचियों के साथ खेलने के उपक्रम ने उसे लजाने को मज़बूर कर दिया --- रणधीर बाबू ने भी अब उसके वक्षों को दबाते – पुचकारते हुए उसके निपल्स पर उत्तेजक ढंग से अँगुलियों को रगड़ा --- और इस पर वह तनिक कराह उठी ---
पहले से ही अधनंगे रणधीर बाबू ने आशा को अपनी ओर नीचे की तरफ़ खींचा ; अचानक के खिंचाव से आशा ख़ुद बचाव न कर सकी और सीधे रणधीर बाबू के सीने पर जा गिरी --- उसके स्तन उनके बालों वाली छाती में दब गए |
दब क्या गए ; यूँ समझिये की कुचल गए !! ---
अब रणधीर बाबू ने बड़े प्यार से आशा के सिर के भीगे बालों को सहलाया और करीब पांच-छह बार सहलाने के बाद बड़े लुभावने- ललचाई ढंग से उसके गर्दन और कानों को चूमने लगे ---
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