06-28-2020, 02:02 PM,
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desiaks
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RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
कानों को चूमते हुए ही अपनी जीभ से उसके कान के पत्ते को थूक से भिगोते हुए ; कान के अंदर तक जीभ डाल डाल कर प्यार जताने लगे ---
यह क्रिया ऐसे ही कुछ देर तक चलाने के बाद उन्होंने आशा के दोनों बाँहों को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सीने पर से थोड़ा उठाया और अपने मुँह को उसके एक नंगी चूची पर रख दिया ---
“ओह्हssss --- sssss----- उम्म्म्मsssss ---- sssssउम्माह्हssssss ---- स्लsssर्प्प्पsss --- ssssस्ल्र्रप्प्पssssss --- मम्मssssमsssss--- sssओह्ह्हsssss ---sssss---- कितना नर्म औरsssssस्पोंजीsss है ---- आआउउऊऊमममममsssssssssssss”
आशा के बायीं चूची को चूसते हुए रणधीर बाबू ने सोचा ---- |
चूची चुसाई इतना प्रेम और जबरदस्त तरीके से हो रहा था कि कुछ समय बाद रणधीर बाबू को लगा की कहीं वह चूची चूसते चूसते, अपने चड्डी में ही न झड़ जाए --- इसलिए चूची पर मुँह लगाए ही वह अपने दूसरे हाथ से अपने कमर पर से अपनी भीगी चड्डी किसी प्रकार थोड़ा थोड़ा कर के सरकाते हुए पैरों से निकाल फेंका ---- और --- फ़िर से पूरी तन्मयता से जम गये आशा की चूचियों पर --- वो बारी-बारी से उसके चूचियों को चूसता रहा । “आआssssहाहाssssहाहाssss --- एकदम कड़क --- और मखमल---- sssss ---- उम्म्मssssमम्मssss मक्खन ---- आह्ह्हsssss --- वाह्ह्हsssssssss” ---- रणधीर बाबू उसकी चूची चूसते और मन ही मन तारीफ़ पर तारीफ़ करते जाते ---- पानी और लार से गीले सफ़ेद स्तन और भी ज्यादा लुभावना लग रहे थे --- और इस नज़ारे को देख कर रणधीर बाबू का लंड धीरे धीरे फनफना कर खड़ा होने लगा --- होने नहीं, बल्कि हो गया था --- आशा को थोड़ा और उठा कर अपने और आशा के जिस्मों के बीच से हाथ ले जा कर उन्होंने अपना लंड पकड़ कर आशा को दिखाया --- ।
आशा तो पहले से ही जोश और मस्ती की मारी थी --- और अब कड़क टनटनाता लंड और उसका लाल सुपाडा देख कर तो जैसे उसपे कोई नशा सा छा गया --- रणधीर बाबू ने जल्दी से आशा की पैंटी को उतारने में आशा की मदद की और उतार कर अपने चड्डी के पास ही फ़ेंक दिया ---
रणधीर बाबू का लंड बेतहाशा हिल रहा था --- और आशा के चूत को छू रहा था --- वो दोनों बिल्कुल नंगे थे ; उस बड़े से बेडरूम के बड़े से बेड पर --- नर्म स्तनों को चूसते हुए, गर्म लोहे के रोड जैसे लंड को उसकी मुलायम दूधिया जांघ पर रगड़ना शुरू कर दिया और साथ ही साथ उसके माँसल गदराई चुत्त्ड़ो को भी मसलने लगे --- मस्ती और बेकरारी ऐसी कि अपने हाथों को उस नर्म गांड की दरार पर बुरी तरह फ़ैला रहा था ---
रणधीर बाबू के इन यौन अत्याचारों से बेचारी आशा की तड़पन तिल तिल कर बढ़ रही थी --- और अब तो रणधीर बाबू के उसके गांड के दरार पर हाथ लगा देने से तो वह और भी दोहरी हो गई और ज़ोर से कराह उठी --- रणधीर बाबू उसे उठा बिस्तर पे लिटाए और अब ख़ुद उसपे चढ़ गए --- और फ़िर दोनों की चुम्बन शुरू हो गई --- कई मिनटों के चुम्बनों के बाद रणधीर बाबू धीरे धीरे नीचे आते हुए उसके बिना बालों वाली चूत के पास पहुंचे --- उनको अपनी ओर आमंत्रित करता वह गुलाबी छेद दिखा --- पानी से गीला हुआ , और पानी ही नहीं शायद प्राकृतिक तरल पदार्थ ; दोनों के मिश्रण से गीला लग रहा था वह गुलाबी छेद --- यानि की वह गुलाबी चूत --- बेसुध सा --- होश खोए हुए किसी व्यक्ति जैसा उस प्राकृतिक लुभावनी चीज़ को कुछ देर देखने के बाद स्वतः ही एक कमीना मुस्कान रणधीर बाबू के अधरों पर खेल गया --- चूत पर झुक गए रणधीर बाबू --- अपने नाक को बहुत पास ले जाकर उसकी चूत को सूंघा ---- पेशाब, पसीना और यौन रस मिश्रित एक अजीब सी गंध आ रही थी --- पर रणधीर बाबू के चेहरे पर ऐसे भाव रेखाएं खींच आईं जैसे कि मानो उन्होंने ब्राउन शुगर या कोकेन से भी ज़्यादा नशे वाली किसी चीज़ का स्वाद ले लिया हो --- एकबार फ़िर झुके उस चूत पर और इस बार अपनी जीभ को निकाल कर चूत के एक सिरे पर रखते हुए उसे, चूत की रेखा के किनारों तक दौड़ाया --- उस गंध ने रणधीर बाबू को एक जंगली या यूँ समझे की एक जंगली से भी बद्तर --- एक हैवान बना दिया है --- |
उसने अपनी जीभ को छेद के अंदर गहराई तक धकेला ----
और,
उनके ऐसा करते ही,
आशा के हाथ नीचे हो कर उनके सिर के बालों में घुस गए और उन्हें कस कर जकड़ लिया----
इधर रणधीर बाबू ने भी उसके माँसल, मोटे जांघ वाले पैरों को थोड़ा और फैला कर अपना मुँह और अधिक अंदर कर लिया और अब उसकी चूत को बेतहाशा चाट रहे थे --- उसकी चूत के हर संभव कोने पर काटते हुए आशा को यौन संसार के एक अलग दुनिया में ले जा रहे थे --- |
और,
उनके हरेक ऐसे करतूत पर आशा ज़ोरदार कराहें दे रही थी --- इस बात को भूल कर --- इस बात से बेपरवाह --- की आज उसका बेटा घर पर है और किन्हीं एक रूम में सो रहा है ---
अब तक रणधीर बाबू ने आशा की आँखों में देखते हुए अपने लंड को ऊपर की ओर सीधा कर के पकड़ लिया और आशा की कमर पर अपना बायाँ हाथ रख; आशा को अपने लंड पर बैठने का संकेत किया ----
आशा तो थी ही जोश में पागल, --- संकेत मिलते ही उसने खुद को थोड़ा ऊपर उठाया, रणधीर बाबू के गर्म लोहे को पकड़ लिया और खुद को उसके ऊपर, उस ठरकी बुड्ढे के सांकेतिक निर्देशानुसार व्यवस्थित की और धीरे-धीरे खुद को उस राक्षसी अंग पर बैठा दिया ---
अब,
जब आशा उस बुड्ढे के सख्त अंग पर स्वयं का मार्गदर्शन कर रही थी, तब ठरकी बुड्ढे रणधीर ने अपना दाहिना हाथ आशा के नर्म कूल्हों पर रख दिया था और अपने नज़रों को स्थिर किया आशा के पूरे जिस्म पर जो अभी अभी उस सख्त लौड़े पर बैठी थी, जो खुद को व्यवस्थित कर रही थी उस सख्त गर्म लोहे के ऊपर जो उसकी उस नम, आर्द्र चूत में अभी खुद को सेट कर रहा था ----
आशा ने रणधीर बाबू का गर्म लंड अपने नर्म, गीली, आर्द्रता से पूर्ण चूत में भले ही डाल ली थी, लेकिन एक ऐसी गृहिणी होने के नाते ; जिसके पति का लंबे समय तक कोई अता पता न हो, कोई खबर न हो --- जिसने अपने पति के अलावा सिर्फ़ किसी से सेक्स किया हो तो केवल रणधीर बाबू से, --- वो भी सिवाय काऊ गर्ल वाले पोजीशन को छोड़ अन्य सभी आजमाई हो --- आज पहली बार इस तरह अपने जांघे फैला कर अपने चूत में बैठे बैठे किसी का लंड नामक यौनांग ले कर , उस पर सवार होने के बारे में सोच भी नहीं पा रही थी। रणधीर बाबू ने स्थिति को भांपते हुए, उसे हाथों से पकड़ कर फ़ौरन अपने सीने के ऊपर खींच लिया ---- और धीरे-धीरे आशा की योनी में अपनी मर्दानगी को घुसा कर घूमाने लगा ----
लंड जैसे जैसे योनि में एडजस्ट होता गया , --- वैसे वैसे आशा पर विश्रांति का भाव छाने लगा --- इससे पहले भी बहुत बार इस ठरकी बुड्ढे से चुद चुकी थी आशा ---- पर ऐसा अहसास --- ये पहली बार ऐसा अहसास हो रहा था उसे ---- उसके दिल-ओ-दिमाग में एक ऐसी ख़ुमारी घर कर गई थी कि वह बिल्कुल भी होशोहवास में नही रहना चाहती थी --- बल्कि वह तो चाहती ही नहीं कि ये पल, ये समय --- कभी ख़त्म हो ---
आशा ने अपना सिर रणधीर बाबू के दाहिने कंधे पर रख दिया और फ़िर सिर को अपनी ही दाईं ओर घुमा दी ---
रणधीर बाबू ने अपना बायाँ हाथ आशा के सिर पर रख दिया और अपनी उधर्व चुदाई को जोरदार गति देते हुए, उसके बालों को सहलाने लगे ----
चुदाई की गति बढ़ते ही आशा को गीली चूत के बावजूद भी थोड़ा दर्द का अहसास होने लगा --- दर्द थोड़ा ही हो रहा था --- पर आशा को उस चुदाई ख़ुमारी में वह दर्द एक मीठा दर्द लग रहा था ---
ख़ुद पे और नियंत्रण न कर पाते हुए; आशा धीरे-धीरे कराहने लगी, “आआआआsssssssssआआआआआsssssssssआआआआआsss आआआआआssssss आआssssआआsssss आआआ आआआ आआहहहssssss आआह्ह्ह्हssssssss आआआआआआssssssआआआआह्ह्ह्ह्ह्ssssssssssह्ह्ह्ह्ह्ह्sssssss आआआआsssssssssआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आआआह्ह्ह्ह्ह्हsssss आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् sssssss ---- ssssssssssss ----
रणधीर बाबू ने आशा के स्वागत करती योनि में अपने लंड को और बलपूर्वक धक्के मारते हुए , चूत की गहराईयों में दबाया और फ़िर उसके बालों को सहलाते हुए अपनी बोली में शहद सा मीठास घोलते हुए कहा, "क्या हुआ जान, दर्द हो रहा है ?? --- थोड़ा सह लो --- प्लीज़, --- मेरे लिए --- और सुनो, मुँह क्यों फ़ेरी हो? ज़रा इस ओर देखो ना"
पर आशा को होश कहाँ,
वह तो बेचारी यौन तृप्ति की आनन्द सागर में योनि में रह रह कर उठने वाली मीठे दर्द को सहने की जी तोड़ कोशिशों में लगी है ---
बुड्ढे की बात पर आशा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, ---- लेकिन बेचारी कराहती रही, '' आआआआआआआआआआहहहहहहह, ----- ..आआआआआआआआआआआआआआआ----आआआआआआआआआआआ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हsssssssssह्हह्हह्हह्हह्ह ------ ह्हह्हह्हsssssss -----sssssssss---- ह्हह्हह्हह्हsssssss ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्sssssssssssssss ... (जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही थी)
रणधीर बाबू भी आशा की ओर से किसी जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर लगातार ७-८ धक्के बड़े जोर के मारे ---
और उन धक्को के चोटों को बर्दाश्त न कर पाने की वजह से आशा चिहुंक कर, मदमस्त अंदाज़ में और भी अधिक मादक स्वर में कराहने लगी,
“आआआआआआआआआआआsssssssssssss आआआआsssssssssss ---- आआआआsssssssआआआआआआआsssssssssss ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्ह ------ ह्हह्हह्हह्हsssssssssह्हह्हह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ----- ..आआआआआsssssssssआआआआआआआआआआ----आआआआआआआआआआआ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- ऊउम्मम्मssssssssम्मम्मम--- आआअह्हssssssssss ---- आआआआआआssssssssssssआआआआआआआsssssssssssssआआ----आआआआआआsssssssआआआआआ---- sssssssss--- आआहहहहहहहहहहह---- sssssssssssहहहहहहहहहsssssssssहहहहहह----- हहहहहssssssssssssssssह्ह्ह्ह्ह्हह --- ओह्ह्ह्हहह्ह्ह्हह्ह”
“ओह्ह्ह्हहह्ह्ह--- ssssssss---आह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्ह-----ऊऊऊऊहहहहहहहहहहsssssssssहsssssss----ओह्ह्ह्हह ---- माँआअsssssssssssअआआआआssssss ---- ssssss--- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सsssss ------”
आशा की प्रत्येक कराह रणधीर बाबू के कानों में जैसे शहद घोल दे रही थी --- और मन में यह हार्दिक इच्छा थी की वह धक्के मारते हुए अब आशा की आँखों में देख सके- --- प्रत्येक धक्के पर उसके चेहरे पर बनने बिगड़ने वाले भावों को करीब से देखना चाहते थे ----
इसलिए,
खुद के साँसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार और अनुनय किया उन्होंने,
“आशा ---- जान --- एक बार प्लीज़ मेरी तरफ़ देखो न ---- इधर देखो --- प्लीज़ ---- आँखों में देखो --- आशा ----”
इस बार आशा भी मना नहीं कर पाई और बेहद आहिस्ते से वह रणधीर बाबू की ओर घूम गई --- पर जैसे ही एक सेकंड के लिए उसकी आँखें रणधीर बाबू की आँखों से मिलीं, वह जैसे शर्म के सागर में डूब गई --- तुरंत ही अपने होंठों को सख्ती से भींचते हुए उसने अपने कराहने पर काबू किया और आँखें बंद कर लीं ---
रणधीर बाबू --,
“अरे क्या हुआ?? ओफ़्फ़ो ---- यार, इतना शरमाओगी तो फ़िर कैसे चलेगा --? और आज अचानक से इतना क्यों शर्मा रही हो?? इससे पहले भी तो हम दोनों ने बहुत बार किया --- पर तब तो इतनी न शरमाई थी तुम --- चलो, आँख खोलो और मुझे देखो ---- ”
प्यार भरे इस मनुहार में उन्होंने अपना निर्देश भी दे दिया था ---
आखिर,
आशा को अपनी आँखें खोलनी ही पड़ी ---
और आँखें खोलते ही नज़रें सीधे जा टकराई बुड्ढे के नज़रों से --- हवसी नज़र--- पर आज आशा को बुड्ढे की नजरों में दिखाई देने वाला हवस, हवस नहीं ; एक प्राकृतिक गुण या अवस्था लग रहा था जो कि ऐसे मौकों पर एकदम ही कॉमन होते हैं --- |
हालाँकि अपनी स्त्री सुलभ लाज वाली प्रवृति के कारण वह खुलेआम उनकी वासना से भरी इस पूरी गतिविधि में पूरे मन से भाग नहीं ले पा रही थी, पर फ़िर भी उसकी आँखें वासना की डोरों से लाल होकर भर गई थीं ---- जैसे उसने अपनी आँखें खोलीं और रणधीर बाबू को देखा; रणधीर बाबू ने अपनी शैतानी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने रॉड से लंड को उसकी योनि से बाहर निकाला और दुबारा पूरे ताक़त से जोर से अंदर डाल दिया।
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