RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी ने मुस्कुरा कर गुल्लन को देखा और बोले, "क्या गुल्लन मियां आज सुबह सुबह लगा आये क्या जो इतनी बहकी बहकी बातें किये जा रहे हो? भला मुझसे कौन अपनी लडकी की शादी कर अपना नाम खराब करेगा?"
गुल्लन अपने दुखी दोस्त का हाथ अपने हाथों में ले बोले, “तुम हाँ तो कर दो मेरे यार. तुम्हारे आगे दस लडकियाँ लाकर खड़ा कर दूँ. बस तुम्हारी मंजूरी की जरूरत है. माँ जी से तो बात हो गयी. अगर तुम कह दो तो आज ही सारा मामला फिट कर दूँ.”
राणाजी ने दुःख भरी जोरदार हंसी हँस कर कहा, “क्यों मजाक बना रहे हो गुल्लन मियां? तुम दोस्त हो और काम दुश्मनों वाले करते हो."
गुल्लन थोडा खींझे लेकिन उन्हें अपने यार की नाउम्मीदी का भी खयाल था. सेकड़ों लोगों ने शादी की मना कर कर के राणाजी जी को इस हाल तक पहुंचा दिया था. गुल्लन फिर से बड़े प्यार से बोले, "राणाजी आपकी कसम खाकर कहता हूँ. अगर आप कहो तो दो दिन में आपकी शादी तय करा कर दुल्हन घर में ला दूं. बस एक बार अपनी रजामंदी दे दो. उसके बाद सारा काम मैं देख लूँगा."
गुल्लन की कसम राणाजी के लिए बहुत बड़ी थी. उन्हें पता था गुल्लन कभी भी उनकी झूठी कसम नही खायेगा. बोले, "गुल्लन अगर तुम सच कह रहे हो तो मैं जिन्दगी भर तुम्हारा एहसान न भूलूंगा. मैं अपने लिए नही बल्कि इस खानदान और अपनी माँ के लिए ये शादी करना चाहता हूँ. अगर ऐसी कोई लडकी है जो मुझसे शादी कर सकती है तो तुम मेरी तरफ से हां समझो. मैं सब तुम पर छोड़ता हूँ."
गुल्लन की आँखें खुशी से चमक उठीं. बोले, “यार तुम ने हाँ कह दी अब तुम्हारा काम खत्म. बाकी मैं सब देख लँगा. लेकिन इस शादी में दहेज नही मिल पायेगा. और हो सकता है कि तुम्हें अपनी जेब से भी काफी खर्चा करना पड़े. तुम्हें इस बात में कोई आपत्ति तो नही है न?"
राणाजी को अपनी शादी करनी थी. उन्हें पैसे को लेकर तो कोई गम था ही नही. बोले, “अरे गुल्लन दोस्त. तुम्हें कुछ भी पूंछने की जरूरत नही. जो भी जरूरत पड़े बता देना. रुपया पैसा की कोई परेशानी नही. जितना भी खर्चा हो बता देना. लेकिन ये लोग हैं कौन जो मुझसे अपनी लडकी व्याहने को राजी हो गये?"
गुल्लन रसिक तो थे ही. सौ तरह के काम हरवक्त उनकी जुगाड़ में रहते थे. उन्होंने राणा जी को बताया, “देखो राणाजी, मैं आपको पहले ही सब बता देना चाहता हूँ. जिस लडकी से आपकी शादी होगी वो मुश्किल से सत्रह अठारह साल की होगी लेकिन माँ बाप बहुत गरीब हैं. उनकी जाति भी वो नही है जो आपकी है. हमें उनको कुछ रुपया भी देना पड़ेगा. बदले में वो अपनी लडकी के साथ आपकी शादी कर देंगे."
राणाजी की उम्र चालीस के पड़ाव को पार कर रही थी और उनकी होने वाली दुल्हन सत्रह अठारह साल की. दूसरा उसकी जाति का कोई अता पता नही. पैसे भी उलटे देने पड़ रहे थे लेकिन राणाजी जिस हालात से गुजर रहे थे उसमें ये भी कम नहीं था.
कोई और दिन होता तो राणाजी अपने यार गुल्लन को फटकार देते लेकिन आज बड़े प्यार से बोले, “यार गुल्लन अगर ये बात गाँव में फैल गयी तो बड़ी बदनामी होगी. मुंह भी दिखाने के काबिल न रहेंगे. वैसे ही इतनी कम इज्जत रह गयी है और इसके बाद तो.."
गुल्लन ने राणाजी की बात को लपकते हुए कहा, “गाँव को बतायेगा कौन? मैं तो मरते मर जाऊंगा लेकिन किसी से कुछ नही कहूँगा. गाँव में तो हम लोग कुछ भी बता सकते हैं. कह देंगे अनाथ लडकी है और अपनी ही जाति की है. बस फिर कोई कुछ भी कहता रहे उससे हमें क्या मतलब? सौ मुंह तो सौ तरह की बातें. ऐसे सुनकर चलोगे तो जी नही पाओगे."
राणाजी ने हां में सर हिलाया और बोले, "लेकिन माताजी? उनको क्या बतायेंगे? वो तो सबसे पहले उस लडकी के खानदान के बारे में ही पूंछेगी. तब क्या बतायेंगे? उनसे तो झूट भी नहीं बोल सकते."
|