RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
गुल्लन सावित्री देवी से पहले ही सब बातें कर चुके थे. बोले, "उसकी चिंता तुम मत करो राणाजी. मैं जब माता जी से बात कर रहा था तो मैने उनसे ये वादा लिया था कि शादी मेरे तरीके से होगी और हर बात मेरी ही चलेगी. तो अब तुम माताजी की चिंता भूल जाओ."
राणाजी अपने यार की चतुराई के मुरीद हो बोले, “यार गुल्लन मियां मैं जितना समझता था तुम उससे बहुत आगे हो. तुम सच में मेरे पक्के दोस्त हो. अब तुम जो भी करो अपने मन से करो मुझे तुम पर पूरा भरोसा है लेकिन हमें ये सब करना कब है?"
गुल्लन ने थोडा सोचा फिर बोले, "कल सब तैयारी कर लो. परसों चलकर दुल्हन ले आते हैं लेकिन किसी को कानों कान खबर न होने पाए."
राणाजी हैरत में पड़ बोले, "इतनी जल्दी? अरे यार कोई क्या सोचेगा?"
गुल्लन अपने यार को समझाते हुए बोले, “राणाजी ये काम जितनी जल्दी हो सके उतना बढिया है. देर सबेर से नुकसान ही होगा.”
राणाजी ने हाँ में सर हिला दिया लेकिन माता जी की चिंता भी उन्हें थी. बोले, "तो फिर माता जी को भी तुम ही ये सब बताना."
गुल्लन मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है यार तुम वेफिक्र हो रहो."
दूसरे दिन गुल्लन ने सावित्रीदेवी से सारी बात कह डाली लेकिन उन्हें लडकी के बारे में कुछ न बताया. सावित्रीदेवी इतनी जल्दी दुल्हन आने पर सकुचा रहीं थी
गुल्लन सावित्री देवी से पहले ही सब बातें कर चुके थे. बोले, "उसकी चिंता तुम मत करो राणाजी. मैं जब माता जी से बात कर रहा था तो मैने उनसे ये वादा लिया था कि शादी मेरे तरीके से होगी और हर बात मेरी ही चलेगी. तो अब तुम माताजी की चिंता भूल जाओ."
राणाजी अपने यार की चतुराई के मुरीद हो बोले, “यार गुल्लन मियां मैं जितना समझता था तुम उससे बहुत आगे हो. तुम सच में मेरे पक्के दोस्त हो. अब तुम जो भी करो अपने मन से करो मुझे तुम पर पूरा भरोसा है लेकिन हमें ये सब करना कब है?"
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