RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
गुल्लन ने थोडा सोचा फिर बोले, "कल सब तैयारी कर लो. परसों चलकर दुल्हन ले आते हैं लेकिन किसी को कानों कान खबर न होने पाए."
राणाजी हैरत में पड़ बोले, "इतनी जल्दी? अरे यार कोई क्या सोचेगा?"
गुल्लन अपने यार को समझाते हुए बोले, “राणाजी ये काम जितनी जल्दी हो सके उतना बढिया है. देर सबेर से नुकसान ही होगा.”
राणाजी ने हाँ में सर हिला दिया लेकिन माता जी की चिंता भी उन्हें थी. बोले, "तो फिर माता जी को भी तुम ही ये सब बताना."
गुल्लन मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है यार तुम वेफिक्र हो रहो."
दूसरे दिन गुल्लन ने सावित्रीदेवी से सारी बात कह डाली लेकिन उन्हें लडकी के बारे में कुछ न बताया. सावित्रीदेवी इतनी जल्दी दुल्हन आने पर सकुचा रहीं थी लेकिन गुल्लन ने उन्हें दिए गये वादे का ध्यान दिला दिया.
सावित्रीदेवी भी बेटे की शादी चाहती थीं. फिर वो चाहे जिस भी प्रकार हो. गुल्लन ने राणाजी को पन्द्रह बीस हजार रुपयों का प्रबंध कर लेने के लिए कह दिया. जो राणाजी ने कर भी लिया था.
तीसरे दिन सुबह सुबह गुल्लन अपने बिलायती से देखने वाले कपड़ों को पहन राणाजी के घर आ पहुंचे.
राणाजी भी तैयारियां ही कर रहे थे. गुल्लन को देखते ही खुश हो गये. बोले, “अरे गुल्लन मियां. तुम्हें देखकर तो लग रहा है कि आज मेरी नही तुम्हारी दुल्हन आने वाली है."
गुल्लन थोडा मुस्कुराये लेकिन कुछ कहते उससे पहले ही सावित्री देवी इन लोगों के पास आ पहुंची. बोलीं, "बेटा तुम लोग कब तक लौट आओगे?"
गुल्लन ने अपने दिमाग पर थोडा जोर डाला और बोले, "माता जी कल सुबह या शाम तक आपकी बहू आपके पैर छू रही होगी. बस घर में तैयारियां करके रखना.”
गुल्लन की बात पर सब लोग हंस पड़े. सावित्री देवी अपने साथ गहनों का पिटारा लेकर आयीं थीं. उस पिटारे में इनके पुश्तैनी गहने थे. गहने के पिटारे को गुल्लन की तरफ बढ़ाती हुई बोलीं, "लो बेटा. ये सम्हाल कर रख लो. बहू को ये सारे गहने पहना कर ही गाँव में लाना. ये तुम्हारी जिम्मेदारी है."
गुल्लन ने साथ में ले जाए जा रहे बैग में गहनों का पिटारा रख लिया. जिसमें सावित्री देवी ने बहू के लिए कई साड़ियाँ पहले से ही रख दी थीं. उसके बाद दोनों दोस्त घर से चल दिए. गाँव से सीधा रेल्वे स्टेशन. वहां से गुल्लन ने दो टिकिट लीं और ट्रेन में जा बैठे. ट्रे
न में बैठे राणाजी ने गुल्लन से पूंछा, "हम लोग जा कहाँ रहे हैं ये बात तो मुझे पूंछने का अधिकार है न?” ___
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