RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
बताओ निकाल कर दू क्या?" गुल्लन ने आँखों में अधीरता भर कहा, “उसमें से पन्द्रह हजार रुपया निकाल कर मुझे दे दो."
राणाजी ने अपने पेंट की अंदरूनी जेब से पन्द्रह हजार रूपये निकाल गुल्लन के हाथ पर रख दिए. गुल्लन पैसे ले बोले, "राणाजी दोस्त तुम्हारी शादी की बात तो पक्की हो गयी है. बस ये रुपया बदलू चचा को दे दूँ फिर तुम्हारी शादी का कार्यक्रम बना लेते हैं."
राणाजी को अपने दोस्त पर पूरा भरोसा था. बोले, "तुम जो भी सही समझो वैसा करो. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है."गुल्लन ने दोस्त की तरफ मुस्कुराकर देखा और बाहर चले गये. फिर थोड़ी देर में बदलू और गुल्लन दोनों लोग वापस आ पहुंचे.
गुल्लन तो अपने दोस्त राणाजी के पास बैठ गये लेकिन बदलू अंदर घर में घुसे चले गये. गुल्लन ने इशारा कर राणाजी को बताया कि अपना काम बन गया. राणाजी के मन में था कि एकबार उस लडकी को देख लें जो उनकी दुल्हन बनने वाली है लेकिन सकुचवश कह न सके.
बदलू ने अंदर झोपडी में पहुंच अपनी बीबी को सारी बात बताई. गुल्लन के दिए पैसे भी पकड़ा दिए. पैसों को देख बदलू की बीबी की आखें चमक उठी. बदलू के बच्चे और लडकी भी रुपयों की तरफ देख वावले हो उठे.
राणाजी की इतनी इज्जत थी लेकिन आज उन्हें चोरों की तरह शादी करनी पड़ रही थी. कारण था उनका समाज. जिसने उन्हें बहिष्कृत समझ लिया था लेकिन आज उनका मन गुल्लन को शुक्रिया करते न थकता था जिन्होंने उनकी शादी का भी इंतजाम करवा दिया.
अंदर झोपड़ी में बदलू की लडकी सजाई जाने लगी. गुल्लन ने सावित्री देवी की दी हई साडी और गहने का पिटारा बदलू को दिया और बोले, “चचा ये साड़ी पहनवा देना. ऊपर से ये गहने भी लेकिन गहनों का थोडा ध्यान रखना. असली सोने के हैं. कही एकाध खो खा न जाए."
बदलू ने हाँ में सर हिला दिया और साड़ी व गहनों का पिटारा ले अंदर झोपड़ी में चले गये.बदलू की बीबी और लडकी ने जब इतनी बढिया साड़ी और इतने जेवरात देखे तो आँखें और मुंह फाड़ उन्हें देखने लगी.
आज से पहले इतने गहने इन्होने देखे ही नही थे. हाथ से छू छू कर गहनों को देखा. शरीर पर लटका कर भी देखा. मन आनंद से भर उठा. बदलू के चार लडकियाँ थीं. जिनमे राणाजी के लिए जिसकी शादी हो रही थी ये चौथे नम्बर की थी. जिसका नाम माला था.
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