RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
बदलू पर दो लडके भी थे जो अभी बहुत छोटे छोटे थे. पहले तीनों लडकियों में से किसी भी लड़की की शादी में गहने और साड़ियाँ आये ही नही थे. बस लोगों ने पैसा दिया और उन्हीं कपड़ों में उन्हें विदा करा ले गये. बदलू की लडकी माला को गुल्लन की दी हुई साड़ी और ऊपर से गहने पहनाये गये.
बदलू की पत्नी अपनी बेटी की किस्मत पर ख़ुशी के आंसू बहा रहीं थी. सोचती थी जिस घर में जा रही है वो बहुत अमीर लोग हैं. उसकी बेटी जिन्दगी भर सुखी रहेगी. बैठकर खाएगी. उसने चूल्हे की कालिख से लडकी के माथे पर हल्का काला टीका लगा दिया. सोचतीं थीं कि कही उसे नजर न लग जाए. उन्हें इस बात का कतई गम न था कि उनकी सत्रह अठारह साल की बेटी चालीस साल से ऊपर के व्यक्ति से व्याह दी जा रही है.
थोड़ी ही देर में पंडित आ पहुंचा. वो आते ही बाहर की झोपडी में हवनकुंड सजाने लगा. ये पंडित बदलू की जाति का ही था. इस तरह से होने वाली शादियाँ ऐसे ही पंडितों के द्वारा सम्पन्न होती थीं. पंडित ने हवन तैयार किया और बदलू की तरफ देखकर बोला, “लाओ जी दूल्हा दुल्हन को बुलाओ. मुझे और भी शादियाँ करवानी हैं."
बदलू ने गुल्लन की तरफ इशारे में देखा और फिर अंदर चले गये. गुल्लन ने राणाजी को देख कर कहा, “चलो दोस्त. चलकर उस हवन कुंड के पास बैठ जाओ."
राणाजी को बहुत आश्चर्य हुआ. बोले, "ऐसे ही?"
गुल्लन राणाजी की बात का मतलब समझते थे. उन्हें पता था राणाजी शादी के लिवास और सेहरे की बात कर रहे हैं. बोले, “राणाजी यहाँ का यही रिवाज है. बस दस मिनट में सब काम हो जाएगा.”
राणाजी ने लम्बी साँस ली और पंडित के पास जा वहां बिछी हुई बोरी पर बैठ गये और तभी अंदर से बदलू और उनकी बीबी अपनी लडकी माला को ले पंडित के पास आ पहुंचे.
पंडित की नजर जैसे ही बदलू की लडकी पर पड़ी तो हैरत के मारे उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं. वो दो साल से इस इलाके में शादियाँ करवा रहा था लेकिन इतना जेवरात किसी लडकी को पहने नही देखा था. गहनों का विस्तार देख उसे जजमान की अमीरी का अंदाज़ा हो गया था.
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