RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
उसने सोच लिया कि दुल्हे से ज्यादा से ज्यादा रुपया एंठेगा. राणाजी के बगल में जैसे ही वो लडकी बैठी तो राणाजी की नजर बरबस उस पर पड गयी. ये लडकी तो वही थी जो थोड़ी देर पहले गंदे से कपड़ों में उन्हें पानी का गिलास दे गयी थी लेकिन इस वक्त वो किसी स्वप्नसुंदरी से कम प्रतीत नही होती थी.
राणाजी की नजर उस लडकी के मुख से हटने का नाम नही लेती थे. उन्हें नही पता था कि इस कोयले की खान में ऐसा हीरा भी हो सकता है. उन्हें यकीन था कि जब उनकी माताजी इस लडकी को देखेंगी तो देखती ही रह जाएँगी.
सुंदर दुल्हन पा किसे ख़ुशी नही होती? राणाजी भी वैसे ही खुश थे. थोड़ी ही देर में शादी सम्पन्न हो गयी. पंडित ने राणाजी से पांच सौ रूपये मांगे. राणाजी ने विना हीलहुज्जत के पांच सौ रूपये उस पंडित को दे दिए. पंडित की बांछे खिल गयी. आज से पहले कभी उसे मुंह मांगी दक्षिणा न मिली थी और आज भी राणाजी उसे तीन सौ भी देते तो पंडित चुपचाप रख लेता.
दरअसल ये वो पंडित नही था जो रीतिरिवाज से शादी करवाते हैं. ये तो सिर्फ पोंगा पंडित था जो लोगों के दिमाग में सिर्फ शादी का भूत बिठाने का काम करता था. शादी सम्पन होते ही लडकी माला को उसकी माँ अंदर झोपडी में ले चली गयी.
शाम होने को आ रही थी. बदलू ने गुल्लन से धीरे से पूंछा, “आज जावोगे कि सुबह को? आज जावो तो थोडा जल्दी निकलो और कल जावो तो आराम से सोवो?"
गुल्लन ने अपने यार राणाजी की तरफ देख इशारा किया कि चलें या आज ठहरोगे.
राणाजी को दुल्हन मिल गयी थी. अब उनका यहाँ और रुकने का मन नही था. बोले, “चलो आज ही चलते हैं."
गुल्लन ने बदलू से कहा, "ठीक है चचा तुम लडकी को तैयार करो, हम लोग आज ही चले जायेंगे."
बदलू ख़ुशी ख़ुशी अंदर चले गये. गुल्लन अपने जिगरी यार राणाजी के पास सरक कर बैठ गये और मुस्कुरा कर बोले, “कहो राणाजी कैसी लगी अपनी दुल्हन? बुरी लगी हो तो अभी बता देना?"
राणाजी ने एकदम से गुल्लन की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोले, “यार कमी निकालने की कोई गंजायस ही नही है और फिर तुम कोई काम करवाओ वो गलत हो ऐसा तो हो ही नही सकता. ये तो मुझपर तुम्हारा एहसान हो गया. कसम से गुल्लन मियां.”
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